निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 25 सितम्बर 2020 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। यह मामला एक सेवानिवृत्त कार्यपालक अभियंता से जुड़ा था, जिनकी पेंशन का 50% स्थायी रूप से काट लिया गया था। विभाग ने यह कार्रवाई तब की जब विभागीय जांच अधिकारी ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया था।
मामले के तथ्य इस प्रकार थे: अभियंता 2005 से 2006 तक मुजफ्फरपुर क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण में प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत थे। इस दौरान कई ग्रामीण और शहरी विकास योजनाओं में गड़बड़ियों की शिकायत सामने आई। 2008 में उन पर विभागीय कार्यवाही शुरू की गई और 9 आरोप लगाए गए।
जांच अधिकारी ने 2007 में रिपोर्ट देकर कहा कि सभी आरोप साबित नहीं हुए हैं और अभियंता निर्दोष हैं। लेकिन अनुशासनिक प्राधिकारी ने इस रिपोर्ट से असहमति जताई और बिना कारण बताए तथा बिना अभियंता को नोटिस दिए सीधे दोषी ठहरा दिया। इसके बाद 2011 में आदेश पारित कर उनकी पेंशन का आधा हिस्सा काट लिया गया और निलंबन अवधि में केवल निर्वाह भत्ता दिया गया।
अभियंता ने इस आदेश को 2011 में पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी। 2017 में एकल न्यायाधीश ने यह आदेश रद्द कर दिया और कहा कि जब जांच अधिकारी ने बरी कर दिया था तो अनुशासनिक प्राधिकारी को असहमति के कारण लिखित रूप से बताकर सुनवाई का अवसर देना चाहिए था।
राज्य सरकार ने 2018 में अपील की लेकिन यह 281 दिन देर से दायर की गई, जिसे बाद में स्वीकार कर लिया गया। खंडपीठ ने राज्य की दलील को ठुकरा दिया कि मामला दोबारा खोलकर प्रक्रिया वहीं से शुरू हो। न्यायालय ने कहा कि अभियंता 9 साल पहले रिटायर हो चुके हैं, इसलिए इतने वर्षों बाद फिर से कार्यवाही शुरू करना न्यायसंगत नहीं होगा।
इस प्रकार अपील खारिज कर दी गई और अभियंता की पेंशन बहाल कर दी गई।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- सरकारी कर्मचारियों के लिए: यह फैसला सुनिश्चित करता है कि बिना उचित सुनवाई के पेंशन या अन्य सेवा लाभ नहीं छीने जा सकते। पेंशन वेतन का ही हिस्सा है और यह कानूनन अधिकार है।
- विभागों के लिए संदेश: यदि विभागीय प्राधिकारी जांच अधिकारी की रिपोर्ट से असहमत होते हैं तो उन्हें कारण स्पष्ट कर लिखित रूप से बताना और कर्मचारी को जवाब देने का अवसर देना अनिवार्य है।
- सार्वजनिक महत्व: इस फैसले से सरकारी सेवाओं में निष्पक्षता और पारदर्शिता को बढ़ावा मिलता है तथा मनमाने ढंग से कार्रवाई करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या अनुशासनिक प्राधिकारी बिना नोटिस दिए जांच अधिकारी की रिपोर्ट से असहमति जता कर सजा दे सकता है?
निर्णय: नहीं। प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार पहले कारण बताना और कर्मचारी से जवाब लेना अनिवार्य है। - क्या सेवानिवृत्ति के कई साल बाद कार्यवाही फिर से शुरू की जा सकती है?
निर्णय: नहीं। कर्मचारी रिटायर हो चुका था और 9 वर्ष बीत चुके थे। इतने समय बाद कार्यवाही फिर से शुरू करना न्यायसंगत नहीं है।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Punjab National Bank v. Kunj Behari Misra, (1998) 7 SCC 84
- Yoginath D. Bagde v. State of Maharashtra, (1999) 7 SCC 739
- SBI v. K.P. Narayanan Kutty, (2003) 2 SCC 449
- Canara Bank v. Debasis Das, (2003) 4 SCC 557
- S.P. Malhotra v. Punjab National Bank, (2013) 7 SCC 251
- Institute of Chartered Accountants v. L.K. Ratna, AIR 1987 SC 71
- ECIL v. B. Karunakar, AIR 1994 SC 1074
मामले का शीर्षक
State of Bihar & Ors. बनाम सेवानिवृत्त अभियंता (Letters Patent Appeal)
केस नंबर
LPA No. 936 of 2018 in CWJC No. 8876 of 2011, दिनांक 25.09.2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 36
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह
माननीय श्री न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- राज्य की ओर से : श्री रवि भारद्वाज, ए.सी. टू जीए-13
- अभियंता की ओर से : दर्ज नहीं है
निर्णय का लिंक
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