निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया कि किसी सरकारी कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने के बाद अगर उसके खिलाफ विभागीय और आपराधिक (विजिलेंस) दोनों तरह की कार्यवाही लंबित हैं, तो विभाग को कानून के निर्धारित दायरे में ही कार्रवाई करनी चाहिए। कोर्ट ने उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें एक सेवानिवृत्त अधिकारी की 100 प्रतिशत पेंशन स्थायी रूप से जब्त कर दी गई थी, और यह निर्देश दिया कि अस्थायी (provisional) पेंशन छह हफ्तों के भीतर बहाल की जाए। साथ ही पेंशन की गणना उस वेतनमान पर की जाए जो अधिकारी के सेवानिवृत्ति के समय लागू था।
यह मामला एक जिला सहकारिता पदाधिकारी से जुड़ा था जिन पर 2008 में विजिलेंस ने रिश्वत लेने का आरोप लगाया था। उनके खिलाफ ₹11,000 रुपये रिश्वत के रूप में लेने की शिकायत पर ट्रैप केस दर्ज हुआ था। इसी आधार पर विभागीय कार्रवाई भी शुरू की गई। 2014 में विभाग ने उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया, लेकिन बाद में पटना हाई कोर्ट ने उस बर्खास्तगी को रद्द कर दिया और राज्य सरकार को यह अनुमति दी कि वह केवल “रूल 18” के चरण से आगे की कार्यवाही करे।
इस बीच अधिकारी 2016 में सेवानिवृत्त हो गए। इसके बाद विभाग ने 2019 में विभागीय कार्रवाई को बदलकर “रूल 43(बी)” के तहत पेंशन संबंधी कार्रवाई में परिवर्तित कर दिया और 2020 में आदेश पारित किया कि उनकी पूरी पेंशन स्थायी रूप से रोक दी जाए और ग्रेच्युटी (सेवानिवृत्ति लाभ) का हिस्सा भी जब्त किया जाए।
सेवानिवृत्त अधिकारी ने इसे चुनौती देते हुए कहा कि विभाग ने हाई कोर्ट के पूर्व आदेश की अवहेलना की है और साथ ही ऐसे दस्तावेज़ों (pre-trap और post-trap मेमो) के आधार पर सज़ा दी है जिनकी वैधता पर अभी विजिलेंस कोर्ट में मुकदमा चल रहा है।
हाई कोर्ट ने अधिकारी के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा कि —
- पहले के आदेश में विभाग को स्पष्ट रूप से केवल “रूल 18” के अंतर्गत आगे बढ़ने की अनुमति दी गई थी। ऐसे में विभाग को इस आदेश में संशोधन करवाए बिना इसे “रूल 43(बी)” में बदलने का अधिकार नहीं था।
- विभाग ने अपने “note of disagreement” के ज़रिए नए आरोप जोड़े, जैसे कि आचरण नियम 17(5) और 17(6) का उल्लंघन — जो मूल आरोप-पत्र में थे ही नहीं। यह प्रक्रिया कानून के अनुरूप नहीं है।
- जब स्वयं विभाग यह मान रहा है कि रिश्वत की रकम “घूस की राशि” है या नहीं, इसका निर्णय विजिलेंस कोर्ट करेगा, तब तक विभाग किसी भी तरह की कठोर सज़ा नहीं दे सकता।
इसी आधार पर कोर्ट ने कहा कि 100 प्रतिशत पेंशन जब्त करने का आदेश टिकाऊ नहीं है और इसे रद्द किया जाता है।
कोर्ट ने आगे यह निर्देश दिए —
- अस्थायी पेंशन छह हफ्तों के भीतर बहाल की जाए।
- पेंशन की गणना सेवानिवृत्ति के समय के अंतिम वेतनमान पर की जाए।
- सस्पेंशन अवधि की वेतन या पेंशन का निर्णय विजिलेंस मुकदमे के फैसले के बाद किया जाएगा।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बिहार सरकार और अन्य सरकारी विभागों के लिए एक दिशा-निर्देश की तरह है।
- सेवानिवृत्ति के बाद भी विभाग कानून की सीमा में रहेगा – अगर किसी कर्मचारी के खिलाफ विभागीय जांच चल रही थी और कोर्ट ने केवल “रूल 18” के अंतर्गत आगे बढ़ने की अनुमति दी थी, तो विभाग उस सीमा से बाहर नहीं जा सकता। बिना कोर्ट से अनुमति लिए “रूल 43(बी)” लागू करना गलत है।
- “नोट ऑफ डिसएग्रीमेंट” का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता – विभागीय अधिकारी “note of disagreement” के नाम पर नए आरोप नहीं जोड़ सकते। उन्हें केवल जांच रिपोर्ट में दी गई बातों पर ही प्रतिक्रिया देनी चाहिए।
- विजिलेंस केस लंबित रहने पर कठोर दंड नहीं दिया जा सकता – अगर रिश्वत या आपराधिक आरोप विजिलेंस कोर्ट में विचाराधीन हैं, तो विभाग को केवल प्रतीक्षा करनी चाहिए, न कि पूरी पेंशन जब्त कर दे।
- पेंशन अधिकार है, उपकार नहीं – कोर्ट ने याद दिलाया कि पेंशन सरकारी कर्मचारी का अधिकार है, जिसे बिना ठोस और वैध कारण के छीना नहीं जा सकता।
- प्रोविजनल पेंशन की सुरक्षा – अस्थायी पेंशन तब तक जारी रहनी चाहिए जब तक अंतिम निर्णय नहीं हो जाता। इसे रोकना कानून के खिलाफ है।
यह निर्णय उन सभी सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए राहत का संदेश है जिनकी पेंशन विजिलेंस या विभागीय जांच के कारण रोकी जाती है। यह सरकारों को भी चेतावनी देता है कि वे जांच प्रक्रिया में कानूनी मर्यादा का पालन करें।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या विभाग “रूल 18” की कार्यवाही को सेवानिवृत्ति के बाद “रूल 43(बी)” में बदल सकता है?
✦ नहीं। हाई कोर्ट की अनुमति केवल “रूल 18” तक सीमित थी, इसलिए बिना संशोधन के विभाग को यह परिवर्तन करने का अधिकार नहीं था। - क्या विभाग “note of disagreement” के माध्यम से नए आरोप जोड़ सकता है?
✦ नहीं। यह प्रक्रिया कानूनन गलत है। विभाग केवल पहले से तय आरोपों पर ही टिप्पणी कर सकता है। - क्या 100% पेंशन जब्त की जा सकती है जब रिश्वत का मामला अभी कोर्ट में चल रहा हो?
✦ नहीं। जब तक विजिलेंस कोर्ट निर्णय नहीं देता, विभाग यह मान नहीं सकता कि कर्मचारी दोषी है। इसलिए ऐसी सज़ा टिकाऊ नहीं है। - राहत:
✦ 100% पेंशन जब्त करने का आदेश रद्द किया गया।
✦ अस्थायी पेंशन छह हफ्तों में बहाल करने का निर्देश।
✦ पेंशन की गणना अंतिम वेतनमान पर की जाए।
✦ सस्पेंशन अवधि की देयता विजिलेंस फैसले के बाद तय होगी।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Ram Dayal Rai v. Jharkhand State Electricity Board, (2005) 3 SCC 501
- Nandjee Mehta v. State of Bihar, 2017(1) PLJR 753
- Dr. Ramavtar Prasad v. State of Bihar, 2008(4) PLJR 21
- Jhakhari Ram v. State of Bihar, 2019(3) BLJ 233
- Narmadeshwar Sharma v. State of Bihar, CWJC No. 8338/2009; LPA No.131/2013
- Roop Singh Negi v. Punjab National Bank, (2009) 2 SCC 570
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- CWJC No.19280/2015 (दिनांक 10.04.2018) — जिसमें कोर्ट ने पहले की बर्खास्तगी रद्द की और केवल “रूल 18” से आगे बढ़ने की अनुमति दी थी।
मामले का शीर्षक
Suresh Prasad v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 12588 of 2019
उद्धरण (Citation)
2021(3) PLJR 23
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अखिलेश दत्ता वर्मा, अधिवक्ता
- प्रतिवादी (राज्य) की ओर से: श्री उदय शंकर सरन सिंह, सरकारी अधिवक्ता (GP-19)
निर्णय का लिंक
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