पटना हाईकोर्ट का फैसला: बिना कारण बताए पेंशन रोकने का आदेश रद्द (2021)

पटना हाईकोर्ट का फैसला: बिना कारण बताए पेंशन रोकने का आदेश रद्द (2021)

निर्णय की सरल व्याख्या

इस मामले में एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी (याचिकाकर्ता) से जुड़ा विवाद था, जो खान एवं भूतत्व विभाग में कार्यरत थे। सेवा के दौरान उन पर भ्रष्टाचार और नियमों के उल्लंघन के आरोप लगे। वर्ष 2014 में विभाग ने विभागीय जांच के आधार पर उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया।

याचिकाकर्ता ने इस बर्खास्तगी को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी। अदालत ने 2017 में कहा कि जांच बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 2005 के अनुसार नहीं की गई थी। इसलिए आदेश अवैध है। बाद में 2018 में खंडपीठ ने भी यही कहा और मामला वापस विभाग को भेज दिया। तब तक याचिकाकर्ता अक्टूबर 2017 में सेवानिवृत्त हो चुके थे। इसलिए आगे की कार्यवाही बिहार पेंशन नियम, 1950 के तहत होनी थी।

विभाग ने नियम 139C के तहत दोबारा जांच शुरू की। जांच अधिकारी ने जनवरी 2019 में रिपोर्ट दी कि आरोप साबित हैं। इसके बाद दूसरा कारण बताओ नोटिस दिया गया। याचिकाकर्ता ने जवाब भी दाखिल किया। लेकिन मार्च 2019 में विभाग ने आदेश जारी कर दिया—

  • 2014 की बर्खास्तगी को रद्द किया।
  • लेकिन पेंशन का 50% हमेशा के लिए रोक लिया।
  • 2014 से 2017 तक की अवधि को निलंबन माना और केवल निर्वाह भत्ता की दर से भुगतान तय किया।

याचिकाकर्ता ने इस नए आदेश को भी हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनका तर्क था कि विभाग ने उनके लिखित जवाब पर कोई विचार नहीं किया और आदेश में कहीं भी कारण दर्ज नहीं किए गए। यह केवल औपचारिकता पूरी करने जैसा था।

विभाग ने बचाव किया कि आरोप गंभीर थे और जांच अधिकारी की रिपोर्ट पर्याप्त थी।

माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह ने आदेश का अध्ययन किया और पाया कि:

  • आदेश में सिर्फ कार्यवाही का इतिहास लिखा गया है।
  • याचिकाकर्ता के जवाब या बचाव पर कोई चर्चा नहीं की गई।
  • पेंशन रोकने जैसे गंभीर दंड के लिए ठोस कारण नहीं बताए गए।

अदालत ने कहा कि कारणयुक्त आदेश (speaking order) आवश्यक है। बिना कारण बताए आदेश देना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। अदालत ने विभागीय आदेश को रद्द कर दिया और विभाग को तीन महीने के भीतर दोबारा विचार कर नया आदेश पारित करने की छूट दी।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

  • सरकारी विभागों के लिए: पेंशन काटने या रोकने का आदेश बहुत गंभीर परिणाम देता है। ऐसे आदेश हमेशा कारणयुक्त होने चाहिए। केवल जांच रिपोर्ट का हवाला देना पर्याप्त नहीं है।
  • सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए: अगर विभाग आपके पेंशन पर दंड लगाता है लेकिन आपके बचाव या जवाब पर विचार नहीं करता, तो आप अदालत जा सकते हैं।
  • सार्वजनिक प्रशासन के लिए: कारणयुक्त आदेश पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देते हैं। इससे कर्मचारी और जनता दोनों का भरोसा बढ़ता है।
  • न्यायिक प्रक्रिया के लिए: यह फैसला बताता है कि अदालतें केवल आरोपों की गंभीरता नहीं देखतीं, बल्कि प्रक्रिया की निष्पक्षता भी सुनिश्चित करती हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या विभाग बिना कारण बताए पेंशन काट सकता है?
    ❌ नहीं। कारणयुक्त आदेश अनिवार्य है।
  • क्या जांच अधिकारी की रिपोर्ट को सीधे स्वीकार कर लेना पर्याप्त है?
    ❌ नहीं। अंतिम आदेश में स्वतंत्र दिमाग से विचार कर कारण लिखना जरूरी है।
  • उपयुक्त राहत क्या होगी?
    ✅ आदेश रद्द किया जाए और विभाग को नया कारणयुक्त आदेश पारित करने का अवसर दिया जाए।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Ashwani Kumar v. State of Bihar, 2017 (3) PLJR 500
  • Roop Singh Negi v. Punjab National Bank, (2009) 2 SCC 570
  • Obaidur Rahman v. State of Bihar, 2009 (4) PLJR 451
  • Meena Pratap v. State of Bihar, 2019 (2) PLJR 209
  • Shailesh Kumar Ojha v. State of Bihar, 2011 (4) PLJR 106

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Oryx Fisheries (P) Ltd. v. Union of India, (2010) 13 SCC 427
  • Kranti Associates (P) Ltd. v. Masood Ahmed Khan, (2010) 9 SCC 496
  • Obaidur Rahman v. State of Bihar, 2009 (4) PLJR 451

मामले का शीर्षक

याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (खान एवं भूतत्व विभाग)

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 22422 of 2019

उद्धरण (Citation)

2021(1) PLJR 804

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संजीव कुमार, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से: श्री मिथिलेश कुमार उपाध्याय, AC to GP-3
  • खान विभाग की ओर से: श्री नरेश कुमार दीक्षित एवं श्री बृज बिहारी तिवारी, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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