निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 12 अप्रैल 2021 को एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि राज्य सरकार किसी भी सेवानिवृत्त अधिकारी की पेंशन या ग्रेच्युटी (Gratuity) को बिना विभागीय या न्यायिक कार्यवाही के परिणाम के नहीं रोक सकती।
यह मामला एक सेवानिवृत्त अतिरिक्त जिला पदाधिकारी से जुड़ा था, जिनकी 10% पेंशन, ग्रेच्युटी और अवकाश नकदीकरण (Leave Encashment) सरकार द्वारा रोक दी गई थी।
सरकार ने यह कदम दो आदेशों के तहत उठाया था—
- पत्र संख्या 6836, दिनांक 29.04.2013 – जिसमें कहा गया था कि लंबित सतर्कता (Vigilance) और अन्य मामलों के कारण ग्रेच्युटी व अवकाश नकदीकरण का भुगतान बाद में किया जाएगा।
- संकल्प संख्या 12081, दिनांक 22.07.2013 – जिसमें कहा गया कि अधिकारी की सेवा “असंतोषजनक” रही है, इसलिए उसकी पेंशन का 10% स्थायी रूप से रोका जाता है (Rule 139, Bihar Pension Rules के तहत)।
अधिकारी ने कोर्ट में याचिका दायर की और कहा कि उसके विरुद्ध कोई विभागीय या न्यायिक कार्रवाई लंबित नहीं थी, और पूरे सेवा काल में उसे कभी दंडित नहीं किया गया। इसलिए सरकार द्वारा पेंशन या ग्रेच्युटी रोकना पूरी तरह से अवैध है।
राज्य सरकार ने जवाब दिया कि बिहार पेंशन नियमावली की धारा 139(a), (b), (c) के तहत “असंतोषजनक सेवा” या “लंबित आपराधिक मामले” की स्थिति में पेंशन रोकी जा सकती है।
न्यायालय का विश्लेषण
न्यायालय ने बिहार पेंशन नियमावली की धाराओं 43 और 139 का विस्तार से विश्लेषण किया।
- धारा 43(a): यदि कोई पेंशनधारी गंभीर अपराध में दोषी पाया जाता है, तो सरकार उसकी पेंशन रोक सकती है।
- धारा 43(b): यदि किसी विभागीय या न्यायिक जांच में व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तभी पेंशन रोकी जा सकती है।
- धारा 43(c): (संशोधन 2012) — यदि कोई जांच लंबित है, तो अधिकतम पेंशन का 90% दिया जाएगा।
- धारा 43(d): जांच पूरी होने तक ग्रेच्युटी रोकी जा सकती है।
- धारा 139: पेंशन कम की जा सकती है, यदि सेवा “पूरी तरह संतोषजनक” न रही हो।
न्यायालय ने कहा—
- याचिकाकर्ता के विरुद्ध कोई विभागीय कार्रवाई लंबित नहीं थी।
- उसे पूरे कार्यकाल में किसी प्रकार का दंड नहीं दिया गया।
- लंबित सतर्कता मामला केवल FIR स्तर पर था, जिसकी कोई सजा या निष्कर्ष नहीं आया था।
- “असंतोषजनक सेवा” का कोई प्रमाण रिकॉर्ड में नहीं था।
इसलिए 10% पेंशन रोकने का आदेश धारा 139(b) के तहत अवैध घोषित किया गया।
न्यायालय ने यह भी कहा कि पेंशन और ग्रेच्युटी कोई उपहार नहीं, बल्कि कर्मचारी का संवैधानिक अधिकार है, जो अनुच्छेद 31(1) के तहत “संपत्ति के अधिकार” में आता है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
यह फैसला बिहार सरकार के हजारों सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए राहतभरा है।
- सेवानिवृत्त कर्मचारियों का अधिकार: पेंशन और ग्रेच्युटी अर्जित अधिकार हैं, इन्हें केवल प्रमाणित दोष सिद्धि के बाद ही रोका जा सकता है।
- सिर्फ आरोप या लंबित जांच पर्याप्त नहीं: बिना विभागीय या न्यायिक निर्णय के कोई भी पेंशन या ग्रेच्युटी रोकी नहीं जा सकती।
- नियमों की सख्त पालना: यदि सरकार पेंशन रोकना चाहती है, तो उसे Bihar Pension Rules की धारा 43 के तहत उचित प्रक्रिया अपनानी होगी।
- पारदर्शिता और न्याय: यह फैसला प्रशासनिक मनमानी पर रोक लगाता है और निष्पक्ष शासन की भावना को मजबूत करता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- मुद्दा 1: क्या बिना विभागीय कार्रवाई या दोष सिद्धि के, Rule 139(b) के तहत पेंशन कम की जा सकती है?
- निर्णय: नहीं। केवल आरोप या लंबित मामला पर्याप्त नहीं है; सेवा असंतोषजनक सिद्ध होनी चाहिए।
- मुद्दा 2: क्या लंबित सतर्कता जांच के कारण ग्रेच्युटी और अवकाश नकदीकरण रोका जा सकता है?
- निर्णय: नहीं। Rule 43(d) के अनुसार यह प्रावधान 2012 से लागू है, जबकि अधिकारी 2010 में सेवानिवृत्त हुए थे। अतः यह नियम पिछली तिथि से लागू नहीं हो सकता।
- मुद्दा 3: क्या पेंशन और ग्रेच्युटी संवैधानिक अधिकार हैं?
- निर्णय: हाँ। Deokinandan Prasad v. State of Bihar (1971) 2 SCC 330 में सुप्रीम कोर्ट ने पेंशन को “संपत्ति का अधिकार” माना है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Dr. Hira Lal v. State of Bihar & Ors., Civil Appeal Nos. 1677–1678 of 2020 (Supreme Court)
- Deokinandan Prasad v. State of Bihar, (1971) 2 SCC 330
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Deokinandan Prasad v. State of Bihar, (1971) 2 SCC 330
- Dr. Hira Lal v. State of Bihar & Ors., (2020)
मामले का शीर्षक
सेवानिवृत्त अतिरिक्त जिला पदाधिकारी बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 22973 of 2019
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 879
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति प्रभात कुमार झा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री एस.बी.के. मंगलम, अधिवक्ता
- राज्य सरकार की ओर से: श्री शिव शंकर प्रसाद, सरकारी अधिवक्ता-8
- लेखा महानियंत्रक की ओर से: श्री बिनोद कुमार लभ, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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