पटना हाई कोर्ट 2021: बिना कारण पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ रोके नहीं जा सकते

पटना हाई कोर्ट 2021: बिना कारण पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ रोके नहीं जा सकते

निर्णय की सरल व्याख्या

दिनांक 4 जनवरी 2021 को पटना हाई कोर्ट ने सिविल रिट जूरिस्डिक्शन केस नंबर 5792/2018 में फैसला सुनाया। यह मामला पटना नगर निगम (PMC) से सेवानिवृत्त एक अधीक्षण अभियंता (Superintending Engineer) के पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ रोकने से जुड़ा था। अदालत ने नगर निगम की कार्यशैली को कठोर शब्दों में आलोचना की और स्पष्ट किया कि पेंशन कोई “बख्शीश” नहीं बल्कि कर्मचारी का कानूनी और मौलिक अधिकार है।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता की नियुक्ति 1983 में पटना जल बोर्ड में सहायक अभियंता (Assistant Engineer) के रूप में हुई थी। बाद में उनका प्रमोशन मुख्य अभियंता (Chief Engineer) और फिर अधीक्षण अभियंता (Superintending Engineer) तक हुआ। वे 30 अप्रैल 2017 को सेवानिवृत्त हुए।

लेकिन सेवानिवृत्ति के समय तक उन्हें पेंशन, ग्रेच्युटी, लीव एनकैशमेंट या अन्य लाभ का एक रुपया भी नहीं मिला। याचिकाकर्ता का आरोप था कि यह सब इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने पहले अपने बकाए वेतन और पदोन्नति को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

नगर निगम का पक्ष था कि:

  • याचिकाकर्ता अगस्त 2014 से बिना अनुमति के अनुपस्थित थे।
  • उनकी सर्विस बुक और रिकॉर्ड गायब थे, और उन्होंने सहयोग नहीं किया।
  • सेवानिवृत्ति के बाद 4 मई 2017 को उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही (चार्जशीट) भी जारी की गई।

याचिकाकर्ता का पक्ष

याचिकाकर्ता ने कहा कि:

  • वे कभी भी बिना अनुमति के अनुपस्थित नहीं रहे।
  • सर्विस बुक “गायब” होने की बात झूठी थी। अदालत के हस्तक्षेप से ही उसकी पुनर्निर्माण (reconstruction) हुई।
  • सेवानिवृत्ति के बाद दी गई चार्जशीट कानूनन निरर्थक है क्योंकि रिटायर कर्मचारी पर ऐसी कार्रवाई संभव ही नहीं।

हाई कोर्ट की टिप्पणियाँ

माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह ने कहा:

  • सर्विस बुक का बहाना: यह निगम की जिम्मेदारी थी, कर्मचारी की नहीं। अदालत के दबाव में ही सर्विस बुक का पुनर्निर्माण हुआ।
  • सेवानिवृत्ति के बाद चार्जशीट: 4 मई 2017 को जारी चार्जशीट को अदालत ने “बेमानी” कहा, क्योंकि रिटायर कर्मचारी पर ऐसी कार्यवाही का कोई मतलब नहीं।
  • पेंशन का अधिकार: अदालत ने देवकी नंदन प्रसाद बनाम बिहार राज्य (1971), स्टेट ऑफ बिहार बनाम एस.एस. दिवान (1997), और आरबीआई रिटायर्ड ऑफिसर्स एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1992) जैसे फैसलों का हवाला देकर दोहराया कि पेंशन कोई दान या कृपा नहीं, बल्कि यह कर्मचारी का विधिक और संवैधानिक अधिकार है।
  • भुगतान में देरी: तीन साल से अधिक की देरी और ₹27.45 लाख से ज्यादा बकाया रोकना बिल्कुल अनुचित है।

कोर्ट का आदेश

अदालत ने नगर निगम को कड़े निर्देश दिए:

  1. याचिकाकर्ता को सभी बकाया पर 5% वार्षिक ब्याज सेवानिवृत्ति की तारीख (30.04.2017) से वास्तविक भुगतान तक दिया जाए।
  2. निगम ने खुद ₹27,45,395/- बकाया स्वीकार किया है। यह राशि 15 दिनों के भीतर खाते में जमा होनी चाहिए।
  3. ब्याज की राशि एक महीने के भीतर जमा की जाए। यदि समयसीमा का पालन नहीं हुआ तो ब्याज दर 12% प्रति वर्ष लागू होगी।
  4. पेंशन और उसका एरियर भी एक महीने के भीतर तय करके भुगतान शुरू किया जाए।
  5. नगर निगम पर ₹20,000 की लागत (cost) भी लगाई गई, ताकि याचिकाकर्ता को परेशान करने का खामियाजा चुकाना पड़े।

निष्कर्ष

अदालत ने कहा कि नगर निगम के बहाने “फर्जी और शर्मनाक” थे। पेंशन और रिटायरमेंट लाभ कर्मचारी का अधिकार है, और उसे रोकना संविधान और कानून के खिलाफ है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

  • सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए: यह फैसला भरोसा दिलाता है कि पेंशन और बकाया लाभ बिना कारण कभी नहीं रोके जा सकते।
  • सरकारी संस्थाओं के लिए: यह चेतावनी है कि यदि सेवानिवृत्ति लाभ रोके गए तो ब्याज और लागत सहित भुगतान करना होगा।
  • आम जनता के लिए: यह बताता है कि अदालतें पेंशन को “सोशल सिक्योरिटी” मानती हैं और इसे सुरक्षित रखने के लिए सख्ती से कदम उठाती हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या रेकॉर्ड गायब होने पर पेंशन रोकी जा सकती है?
    • निर्णय: नहीं। रेकॉर्ड बनाए रखना संस्था की जिम्मेदारी है।
  • क्या रिटायरमेंट के बाद विभागीय कार्यवाही हो सकती है?
    • निर्णय: नहीं। रिटायर कर्मचारी पर चार्जशीट निरर्थक है।
  • क्या पेंशन दान है या अधिकार?
    • निर्णय: यह कर्मचारी का वैधानिक और संवैधानिक अधिकार है।
  • क्या भुगतान में देरी को सही ठहराया जा सकता है?
    • निर्णय: नहीं। देरी पर ब्याज और हर्जाना लगाया जाएगा।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • देवकी नंदन प्रसाद बनाम बिहार राज्य (1971) 1 SCC 330
  • स्टेट ऑफ बिहार बनाम एस.एस. दिवान (1997) 4 SCC 569
  • आरबीआई रिटायर्ड ऑफिसर्स एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1992 Supp. 1 SCC 664)

मामले का शीर्षक

Ravindra Kumar बनाम State of Bihar & Ors.

केस नंबर

CWJC No. 5792 of 2018

उद्धरण (Citation)

2021(1) PLJR 583

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री कुणाल तिवारी
  • निगम की ओर से: श्री प्रसून सिन्हा एवं श्री प्रभाकर सिंह

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNTc5MiMyMDE4IzEjTg==-kxpfUHndTk8=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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