पटना हाई कोर्ट का फैसला: 20 साल की सेवा पूरी किए बिना पूरी पेंशन नहीं मिलेगी

पटना हाई कोर्ट का फैसला: 20 साल की सेवा पूरी किए बिना पूरी पेंशन नहीं मिलेगी

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में तीन सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों की याचिका खारिज कर दी, जिन्होंने पूरी पेंशन नहीं मिलने को लेकर सरकार के फैसले को चुनौती दी थी। ये अधिकारी अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) के पद से रिटायर हुए थे। उन्होंने तर्क दिया कि भले ही उन्होंने समय पर परीक्षा पास कर ली थी, लेकिन नियुक्ति में हुई देरी के कारण वे 20 साल की न्यूनतम सेवा पूरी नहीं कर सके। इसलिए उन्हें पूरी पेंशन मिलनी चाहिए थी। साथ ही, उन्होंने उस सरकारी निर्णय को भी चुनौती दी जिसमें 10 से 20 साल सेवा करने वालों को केवल अनुपातिक पेंशन देने की बात कही गई है।

कोर्ट ने दोनों तर्कों को सुनने के बाद स्पष्ट किया कि नियुक्ति में देरी के कारण कोई व्यक्ति पिछली सेवा को गिनवाकर पेंशन का दावा नहीं कर सकता, जब तक कि उसने वास्तव में वह सेवा नहीं की हो। इन अधिकारियों की नियुक्ति 2001 में हुई थी और वे उस हिसाब से 20 साल की सेवा पूरी नहीं कर सके, इसलिए उन्हें पूरी पेंशन नहीं मिल सकती।

दूसरे बिंदु पर कोर्ट ने वित्त विभाग की ओर से जारी 2019 की एक स्पष्टता संबंधी अधिसूचना का हवाला दिया। इसमें यह कहा गया कि:

  • केवल वे न्यायिक अधिकारी जो 20 साल या उससे अधिक की सेवा कर चुके हैं, उन्हें ही पूरी पेंशन (यानी आखिरी वेतन का 50%) मिलेगा।
  • जिन्होंने 10 साल से ज्यादा लेकिन 20 साल से कम सेवा की है, उन्हें सेवा के सालों के अनुपात में पेंशन दी जाएगी।

यह स्पष्टीकरण इसलिए जरूरी हुआ क्योंकि 2011 की एक अधिसूचना में यह बात स्पष्ट नहीं थी, जिससे भ्रम की स्थिति बनी थी। लेकिन 2019 की अधिसूचना ने इस गलती को सुधारते हुए यह साफ किया कि 20 साल की सेवा पेंशन के लिए अनिवार्य है।

कोर्ट ने इन सभी तथ्यों को देखते हुए याचिका को खारिज कर दिया और सरकार के निर्णय को कानून सम्मत माना।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय स्पष्ट करता है कि सरकारी सेवा नियमों का पालन अनिवार्य है और सेवा की न्यूनतम अवधि पूरी करना पेंशन पाने के लिए आवश्यक है। इससे यह भी साबित होता है कि नियुक्ति में देरी, जब तक सरकारी नीति में इसका विशेष उल्लेख न हो, पेंशन के अधिकार को प्रभावित नहीं कर सकती। इस निर्णय से बिहार के सेवानिवृत्त कर्मचारियों और न्यायिक अधिकारियों को यह स्पष्ट संदेश मिलता है कि पेंशन के लिए नियमों के अनुसार सेवा पूरी करनी होगी।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या नियुक्ति में देरी के आधार पर पेंशन के लिए सेवा काल जोड़ा जा सकता है?
    • न्यायालय का निर्णय: नहीं, जब तक सेवा वास्तव में नहीं की गई हो, तब तक उसका हिसाब नहीं जोड़ा जा सकता।
  • क्या 10 से 20 साल सेवा करने वाले अधिकारी पूरी पेंशन के हकदार हैं?
    • न्यायालय का निर्णय: नहीं, ऐसे अधिकारियों को केवल अनुपातिक पेंशन दी जाएगी।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Naresh Kumar बनाम Union of India & Ors., दिल्ली उच्च न्यायालय, W.P.(C) 3860/17, निर्णय दिनांक 06.12.2018

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • सर्वोच्च न्यायालय का आदेश दिनांक 26.07.2010 (Justice Padmanabhan समिति की सिफारिश पर आधारित)

मामले का शीर्षक
Barhu Prasad & Ors. बनाम बिहार राज्य सरकार एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 14588 of 2019

उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 216

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश अमरेश्वर प्रताप साही
माननीय न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री शैलेन्द्र कुमार झा एवं श्री दिलीप कुमार झा — याचिकाकर्ताओं की ओर से
  • श्री सुनील कुमार मंडल (SC-3) एवं श्री बिपिन कुमार (AC to SC-3) — राज्य की ओर से
  • श्री मृगांक मौली — पटना उच्च न्यायालय की ओर से
  • श्री अमरनाथ सिंह — महालेखाकार की ओर से

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTQ1ODgjMjAxOSMxI04=-Ic2q95ClCIc=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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