निर्णय की सरल व्याख्या
मार्च 2021 में पटना हाई कोर्ट ने एक सेवानिवृत्त कर्मचारी के पेंशन और सेवा लाभ से जुड़े विवाद पर फैसला सुनाया। यह कर्मचारी लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (PHED) में 1980 से कार्यरत था। मुख्य प्रश्न यह था कि उसकी सेवा अवधि पेंशन की गणना के लिए 1980 से मानी जाए या 2006 से, जब उसे नियमित (Regularized) किया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
- याचिकाकर्ता को 29 जुलाई 1980 को खलासी पद पर कार्य-चार्ज (Work-Charge) आधार पर नियुक्त किया गया।
- 1989 में उसका तबादला भागलपुर से पटना (मसौढ़ी) कर दिया गया।
- 1 जून 2002 को बिहार सरकार ने आदेश जारी किया कि 1985 के बाद नियुक्त कार्य-चार्ज कर्मचारियों को दैनिक वेतनभोगी (Daily Wager) बना दिया जाएगा। याचिकाकर्ता का कहना था कि वह 1980 में नियुक्त हुआ था, फिर भी उसे दैनिक वेतनभोगी बना दिया गया।
- 28 नवंबर 2006 को विभाग में 2277 तकनीकी पद (जैसे खलासी, पंप ऑपरेटर, इलेक्ट्रीशियन) स्वीकृत हुए और याचिकाकर्ता सहित अन्य कर्मचारियों को नियमित कर दिया गया।
- 2015 में विभाग ने उसे 6वें वेतन आयोग का लाभ दिया, लेकिन 1 अप्रैल 2007 से, जबकि वह इसे 1 अप्रैल 2006 से लागू करने की मांग कर रहा था।
- 31 जनवरी 2017 को वह सेवानिवृत्त हो गया और इसके बाद उसने पेंशन और रिटायरल लाभ 1980 से गिनने की मांग की।
याचिकाकर्ता की दलील
- उसे 2002 में दैनिक वेतनभोगी बनाना गलत था क्योंकि उसकी नियुक्ति 1985 से पहले हुई थी।
- उसके साथ नियुक्त 21 अन्य कर्मचारियों को नियमित रखा गया, पर उसे प्रभावित किया गया, जो समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
- उसकी पेंशन और वेतन लाभ 1980 से गिने जाएं, न कि 2006 से।
प्रतिवादियों की दलील
- वित्त विभाग की 2013 की अधिसूचना के अनुसार 2002 से 2006 तक की अवधि को भी कार्य-चार्ज सेवा के रूप में माना जाएगा, और उस अवधि का लाभ ACP/MACP (पदोन्नति और वेतन वृद्धि) में दिया जाएगा।
- पटना हाई कोर्ट की फुल बेंच का फैसला (अमृका देवी बनाम बिहार राज्य, 2019) पहले ही तय कर चुका है कि पेंशन की गणना केवल नियमित सेवा अवधि से होगी, जबकि कार्य-चार्ज सेवा अवधि का उपयोग ACP/MACP और प्रमोशन के लिए किया जा सकता है।
- याचिकाकर्ता को पहले ही सभी ACP लाभ दिए जा चुके हैं और उसके वेतन में संशोधन कर भुगतान भी किया गया है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
- सरकारी कर्मचारियों के लिए: यह फैसला दोहराता है कि पेंशन का अधिकार केवल नियमित और स्थायी पद पर नियुक्ति की तिथि से शुरू होता है।
- कार्य-चार्ज और दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए: लंबे समय तक की गई सेवा पेंशन में पूरी तरह नहीं जुड़ती, लेकिन उसे पदोन्नति और ACP/MACP में गिना जा सकता है।
- समानता के दावे के लिए: अदालत ने माना कि सरकार की नीतियों और पूर्व फैसलों के अनुसार याचिकाकर्ता को पहले ही पर्याप्त लाभ दिए गए हैं।
- राज्य सरकार के लिए: यह निर्णय सरकार के इस रुख को मजबूत करता है कि पेंशन केवल वैधानिक नियमों के आधार पर दी जाएगी, जबकि अन्य लाभों में कार्य-चार्ज सेवा अवधि को गिना जा सकता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या याचिकाकर्ता को 2006 की बजाय 2007 से वेतन संशोधन लाभ देना उचित था?
- निर्णय: हाँ, 2007 से ही लाभ मिलेगा।
- कारण: यह सरकार की अधिसूचना और न्यायिक फैसलों के अनुरूप था।
- क्या याचिकाकर्ता की पेंशन 1980 से गिनी जानी चाहिए थी या 2006 से?
- निर्णय: 2006 से।
- कारण: बिहार पेंशन नियमों (नियम 58 और 59) के अनुसार पेंशन केवल उस सेवा पर आधारित होती है जो सरकार के अधीन स्थायी और नियमित पद पर दी गई हो।
- क्या कार्य-चार्ज सेवा अवधि को गिना जा सकता है?
- निर्णय: हाँ, लेकिन केवल ACP/MACP और प्रमोशन के लिए, पेंशन के लिए नहीं।
- कारण: अमृका देवी केस (2019) में फुल बेंच ने यही व्यवस्था दी थी।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- अमृका देवी एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, 2019 (4) PLJR 354 (फुल बेंच, पटना हाई कोर्ट)
मामले का शीर्षक
Petitioner v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 15504 of 2018
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 238
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति बीरेन्द्र कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री प्रभाकर सिंह, अधिवक्ता
- प्रतिवादियों की ओर से: श्री अरविंद उज्ज्वल, स्टैंडिंग काउंसिल-4
निर्णय का लिंक
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