निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने 04 मार्च 2021 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें कुछ पीजी डिप्लोमा छात्रों की याचिका को खारिज कर दिया गया। ये छात्र पटना मेडिकल कॉलेज में 2019–21 सत्र के लिए दाखिला लिए थे और वे अपने चल रहे डिप्लोमा कोर्स (चाइल्ड हेल्थ, ऑर्थोपेडिक्स और स्त्री एवं प्रसूति रोग) को एमडी/एमएस डिग्री कोर्स में बदलना चाहते थे।
छात्रों का तर्क था कि सरकार और मेडिकल काउंसिल की जगह बनाई गई बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने ऐसी नीति लाई थी, जिसमें कॉलेज अपनी मान्यता प्राप्त डिप्लोमा सीटों को छोड़कर उतनी ही एमडी/एमएस सीटें ले सकते थे। छात्रों ने कहा कि जब यह नीति लागू हो गई तो उन्हें भी अपने डिप्लोमा को एमडी/एमएस में अपग्रेड करने का अधिकार मिलना चाहिए।
लेकिन अदालत ने साफ कहा कि यह बदलाव भविष्य के लिए (सत्र 2020–21 से) लागू हुआ था, न कि पिछली बैच पर। कोर्ट ने याचिका में छात्रों द्वारा किया गया यह दावा कि सीटों का परिवर्तन 2019–20 से हुआ था, “स्पष्ट रूप से गलत और भ्रामक” बताया। इसी कारण भी याचिका खारिज कर दी गई।
साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि पीजी मेडिकल एडमिशन की प्रक्रिया—नेशनल एंट्रेंस टेस्ट, मेरिट लिस्ट और काउंसलिंग के जरिए होती है। छात्रों को 2019–21 सत्र में अपनी रैंक और काउंसलिंग के हिसाब से डिप्लोमा सीटें मिली थीं। अगर उन्हें बीच सत्र में ही एमडी/एमएस सीट पर भेज दिया जाए, तो इससे उन ज्यादा मेरिट वाले छात्रों के साथ अन्याय होगा जिन्होंने बाद में डिग्री सीटों के लिए परीक्षा दी।
छात्रों ने अपने समर्थन में Chairman, Central Council of Homoeopathy v. Varinder Singh (2001) केस का हवाला दिया, लेकिन कोर्ट ने कहा कि वह फैसला अपने विशेष तथ्यों तक सीमित था और इसे मिसाल (precedent) नहीं माना जा सकता।
नतीजा यह रहा कि अदालत ने कहा—डिप्लोमा से एमडी/एमएस में सीधा अपग्रेडेशन न तो कानूनन संभव है और न ही यह समानता के सिद्धांत (Article 14) के अनुरूप है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
• भविष्य के लिए ही बदलाव मान्य: किसी भी नीति परिवर्तन का असर आगे से लागू होगा। पहले से पढ़ रहे छात्रों पर इसका स्वतः प्रभाव नहीं होगा।
• मेरिट आधारित एडमिशन की सुरक्षा: कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि प्रतियोगी परीक्षा और काउंसलिंग से बने नियमों को तोड़ा नहीं जा सकता।
• संस्थानों की जिम्मेदारी: कॉलेज को समय पर नीति का लाभ लेने के लिए आवेदन करना चाहिए। देरी होने पर इसका फायदा छात्रों को अदालत से नहीं मिल सकता।
• भविष्य की शिक्षा नीति के लिए संदेश: सरकार और कॉलेज जब डिप्लोमा को खत्म करके डिग्री कोर्स लाते हैं, तो उन्हें स्पष्ट टाइमलाइन और नियम बनाने चाहिए। वरना भ्रम और विवाद खड़े होंगे।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
• क्या 2019–21 सत्र के डिप्लोमा छात्रों को एमडी/एमएस सीटों में अपग्रेड किया जा सकता है?
— निर्णय: नहीं। यह परिवर्तन 2020–21 से ही लागू था। 2019–20 के लिए छात्रों का दावा झूठा और भ्रामक पाया गया।
• क्या अदालत बीच सत्र में डिप्लोमा से डिग्री में सीधे भेज सकती है?
— निर्णय: नहीं। एडमिशन कॉमन टेस्ट और काउंसलिंग से होता है। अपग्रेडेशन से ज्यादा मेरिट वाले छात्रों के साथ भेदभाव होगा।
• क्या Varinder Singh केस इस मामले में लागू होता है?
— निर्णय: नहीं। वह फैसला अपने तथ्यों तक सीमित था और कोर्ट ने कहा कि इसे उदाहरण नहीं माना जा सकता।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
• Chairman, Central Council of Homoeopathy v. Varinder Singh & Ors., (2001) 10 SCC 161
मामले का शीर्षक
CWJC No. 7548 of 2020 (Patna High Court) — पीजी डिप्लोमा छात्र बनाम भारत संघ एवं अन्य (पक्षकारों के नाम यहाँ गुप्त रखे गए हैं)।
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 7548 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 63
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
• याचिकाकर्ताओं की ओर से: श्री बिनोदानंद मिश्रा, अधिवक्ता
• प्रतिवादियों की ओर से: डॉ. के. एन. सिंह, सहायक सॉलिसिटर जनरल एवं श्री अभय शंकर झा, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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