निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि यदि कोई संपत्ति कथित अपराध से पहले खरीदी गई हो, तो उसे “अपराध की आय (proceeds of crime)” नहीं माना जा सकता। इसलिए ऐसी संपत्ति को धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के तहत जब्त नहीं किया जा सकता।
यह मामला एच.डी.एफ.सी. बैंक लिमिटेड द्वारा दाखिल एक याचिका से संबंधित था। बैंक ने अपनी याचिका में कहा कि उसने एक कारोबारी (प्रतिवादी संख्या 5) को ओवरड्राफ्ट लोन देने के लिए कुछ संपत्तियाँ गिरवी रखवाई थीं। बाद में, प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इन संपत्तियों को “अपराध से अर्जित धन” बताते हुए अस्थायी रूप से जब्त कर लिया।
मामले की पृष्ठभूमि 2016 के नोटबंदी काल से जुड़ी थी। उस समय गया जिले में दो एफआईआर दर्ज हुई थीं, जिनमें बड़ी मात्रा में नकद लेन-देन और खाते में संदिग्ध जमा की शिकायतें थीं। जांच के दौरान यह पता चला कि कुछ धनराशि प्रतिवादी की फर्म के खाते में भी गई थी। इसी आधार पर ईडी ने कार्रवाई की।
लेकिन एच.डी.एफ.सी. बैंक ने तर्क दिया कि जिन संपत्तियों को जब्त किया गया, वे वर्षों पहले खरीदी गई और बैंक के पास गिरवी रखी गई थीं, यानी उनका धन शोधन से कोई संबंध नहीं था।
बैंक ने यह भी कहा कि वह सुरक्षित ऋणदाता (secured creditor) है, और उसे कानून के तहत प्राथमिक अधिकार प्राप्त है — विशेष रूप से Recovery of Debts and Bankruptcy Act, 1993 की धारा 31B और SARFAESI Act, 2002 की धारा 26E के तहत।
न्यायालय का विश्लेषण
माननीय न्यायमूर्ति बीरेन्द्र कुमार ने पूरे मामले का विस्तार से विश्लेषण करते हुए पाया कि ईडी की कार्रवाई न केवल तथ्यों से परे थी, बल्कि कानून के भी विपरीत थी।
1. “Proceeds of Crime” की परिभाषा (धारा 2(1)(u), PMLA):
अदालत ने कहा कि केवल वही संपत्ति अपराध की आय मानी जा सकती है जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपराध से अर्जित की गई हो। इस मामले में जब संपत्तियाँ खरीदी गई थीं, तब कोई अपराध हुआ ही नहीं था। अतः उन्हें “proceeds of crime” कहना कानूनन गलत है।
2. “Value of Property” की व्याख्या:
ईडी का तर्क था कि भले ही “अपराध से जुड़ी वास्तविक संपत्ति” उपलब्ध न हो, तो भी आरोपी की अन्य संपत्ति जब्त की जा सकती है। अदालत ने इसे अस्वीकार किया और कहा कि “value of such property” का अर्थ केवल अपराध से प्राप्त धन से खरीदी गई संपत्ति है, न कि किसी अन्य वैध संपत्ति से।
3. अन्य उच्च न्यायालयों के फैसले:
पटना उच्च न्यायालय ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्णय Seema Garg v. ED (2020 SCC OnLine P&H 738) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि केवल वही संपत्ति जब्त की जा सकती है जो अपराध से अर्जित हो। इस निर्णय को अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के पुराने फैसले Axis Bank केस पर वरीयता दी।
4. “Reason to Believe” और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन:
अदालत ने पाया कि ईडी ने किसी ठोस साक्ष्य या कारण को दर्ज नहीं किया, जिससे यह विश्वास किया जा सके कि संपत्तियाँ अपराध की आय थीं। न तो उचित जांच की गई और न ही बैंक या संपत्ति मालिक को सुनवाई का अवसर दिया गया। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन था।
5. SARFAESI और PMLA का आपसी संबंध:
अदालत ने स्पष्ट किया कि दोनों कानून अलग-अलग क्षेत्र में काम करते हैं — SARFAESI सुरक्षित ऋणदाताओं के अधिकारों की रक्षा करता है, जबकि PMLA अपराध की आय जब्त करने से संबंधित है। परंतु चूंकि यहाँ संपत्ति अपराध की आय नहीं थी, इसलिए ईडी का आदेश स्वतः अवैध था।
6. वैकल्पिक उपाय (Alternative Remedy):
ईडी ने कहा कि बैंक को पहले PMLA के तहत अधिनिर्णायक प्राधिकारी के समक्ष जाना चाहिए था। अदालत ने कहा कि जब कोई प्राधिकारी कानून की अवहेलना करे या न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन करे, तो उच्च न्यायालय सीधे हस्तक्षेप कर सकता है — इस सिद्धांत का समर्थन सुप्रीम कोर्ट के मामलों State of U.P. v. Mohd. Nooh (1958) और CIT v. Chhabil Dass Agarwal (2014) में भी किया गया है।
अंतिम निर्णय
अदालत ने निम्नलिखित आदेश पारित किए:
- 18.09.2017 की अस्थायी जब्ती का आदेश (Annexure-3) और
- 18.10.2017 की शो-कॉज नोटिस (Annexure-5) — दोनों को रद्द कर दिया गया।
यह आदेश केवल तीन अचल संपत्तियों तक सीमित था जो मुजफ्फरपुर में स्थित थीं:
- फ्लैट नंबर GA, मधुसूदन गार्डन
- फ्लैट नंबर GB, मधुसूदन गार्डन
- मकान, कान्हौली विश्वुन्दत, रोड नं. 2, आर.के.पुरम, वार्ड नं. 48
अदालत ने कहा कि जब कोई संपत्ति अपराध से प्राप्त नहीं है, तो ईडी द्वारा की गई जब्ती पूरी तरह अवैध है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
यह फैसला न केवल बैंकिंग क्षेत्र बल्कि जांच एजेंसियों के लिए भी दिशा-निर्देशक है:
- बैंकों की सुरक्षा: यदि बैंक ने वैध तरीके से गिरवी रखी संपत्ति पर ऋण दिया है, तो उस पर ईडी का नियंत्रण केवल तभी संभव है जब संपत्ति अपराध से जुड़ी हो।
- जांच एजेंसियों की सीमाएँ: ईडी को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि “proceeds of crime” कहने से पहले पर्याप्त प्रमाण मौजूद हों।
- प्राकृतिक न्याय की पुनर्पुष्टि: किसी भी व्यक्ति या संस्था को बिना सुनवाई के संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।
- कानूनी स्पष्टता: यह फैसला बताता है कि PMLA और SARFAESI दोनों कानून अलग उद्देश्य रखते हैं और एक-दूसरे को निरस्त नहीं करते।
- अन्य राज्यों के लिए मिसाल: इस निर्णय से बिहार की अदालतों ने राष्ट्रीय स्तर पर न्यायिक समानता की दिशा में योगदान दिया है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या अपराध से पहले खरीदी गई संपत्ति “proceeds of crime” हो सकती है?
▪ नहीं। ऐसी संपत्ति PMLA के दायरे में नहीं आती। - क्या बिना साक्ष्य या सुनवाई के संपत्ति जब्त की जा सकती है?
▪ नहीं। “reason to believe” का अभाव आदेश को अवैध बनाता है। - क्या बैंक का प्राथमिक अधिकार (secured creditor) PMLA पर हावी होता है?
▪ दोनों कानून अलग हैं, पर जब अपराध साबित न हो, तो बैंक का अधिकार बरकरार रहेगा। - क्या वैकल्पिक उपाय होते हुए भी हाईकोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है?
▪ हाँ, जब प्राकृतिक न्याय या विधिक प्रक्रिया का उल्लंघन हो।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Deputy Director of Enforcement v. Axis Bank (Delhi HC)
- Seema Garg v. Deputy Director, Directorate of Enforcement, 2020 SCC OnLine P&H 738
- CIT v. Chhabil Dass Agarwal, (2014) 1 SCC 603
- State of U.P. v. Mohd. Nooh, AIR 1958 SC 86
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Seema Garg v. ED, 2020 SCC OnLine P&H 738
- Abdullah Ali Balsharaf v. ED, (2019) 3 RCR (Criminal) 798
- Aslam Mohammad Merchant v. Competent Authority, (2008) 14 SCC 186
- Ram & Shyam Company v. State of Haryana, (1985) 3 SCC 267
मामले का शीर्षक
HDFC Bank Ltd. बनाम Government of India एवं अन्य
केस नंबर
Criminal Writ Jurisdiction Case No. 2398 of 2017
उद्धरण (Citation)
2021(3) PLJR 12
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति बीरेन्द्र कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता (एचडीएफसी बैंक) की ओर से: श्री संदीप कुमार, श्री दयानंद सिंह, श्री रोहित राज
- प्रतिवादी (भारत सरकार एवं ईडी) की ओर से: श्री ए.बी. माथुर, सेंट्रल गवर्नमेंट काउंसल
- हस्तक्षेपकर्ता की ओर से: श्री गौतम केजरीवाल, श्री आलोक कुमार झा
निर्णय का लिंक
MTYjMjM5OCMyMDE3IzEjTg==-durdKR0foRs=
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