निर्णय की सरल व्याख्या
फरवरी 2021 में पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया, जो बिहार के सरकारी कर्मचारियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अदालत ने एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक कर्मचारी की पदोन्नति (Promotion) को 31 साल बाद अचानक निरस्त कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने कहा कि यह आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों (Principles of Natural Justice) के खिलाफ है, क्योंकि कर्मचारी को न तो कोई कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) दिया गया और न ही अपनी बात रखने का मौका मिला।
मामले के अनुसार, याचिकाकर्ता स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत थे। उन्हें 8 फरवरी 1989 को एक पदोन्नति मिली थी। लेकिन अचानक 21 मार्च 2020 को गया के सिविल सर्जन–cum–मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी ने एक आदेश जारी किया, जिसमें उनकी पदोन्नति रद्द कर दी गई। इस आदेश से न केवल उनकी सेवा स्थिति पर असर पड़ा, बल्कि आर्थिक नुकसान भी हुआ।
कर्मचारी ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। उनका कहना था कि यह फैसला उन्हें बिना सुनवाई का मौका दिए लिया गया है, जो पूरी तरह गलत है।
राज्य सरकार की ओर से अदालत में स्वीकार किया गया कि वास्तव में कोई कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया था।
माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह ने पाया कि जब किसी सरकारी आदेश से किसी व्यक्ति के अधिकार या आर्थिक लाभ प्रभावित होते हैं, तो उस व्यक्ति को सुनवाई का अवसर देना जरूरी है। बिना सुनवाई के 31 साल पुरानी पदोन्नति को रद्द करना न्यायसंगत नहीं हो सकता।
अदालत ने कहा कि ऐसी कार्रवाई “प्राकृतिक न्याय” के सिद्धांतों के खिलाफ है और इसलिए यह आदेश कानून की नजर में टिक नहीं सकता। परिणामस्वरूप, 21 मार्च 2020 का आदेश रद्द कर दिया गया और याचिका स्वीकार कर ली गई।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- कर्मचारियों के लिए: यह फैसला सुनिश्चित करता है कि लंबे समय से मिली पदोन्नति या सेवा लाभ को सरकार मनमाने तरीके से रद्द नहीं कर सकती।
- सरकार के लिए: यह निर्णय याद दिलाता है कि हर प्रशासनिक आदेश में निष्पक्षता और पारदर्शिता जरूरी है। यदि कर्मचारियों को सुनवाई का मौका न दिया जाए, तो ऐसे आदेश अदालत में रद्द हो जाएंगे।
- जनता के लिए: यह निर्णय विश्वास जगाता है कि अदालतें हमेशा निष्पक्षता और न्याय की रक्षा करेंगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या 31 साल पुरानी पदोन्नति बिना नोटिस के रद्द की जा सकती है?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: यह प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।
- क्या बिना कारण बताओ नोटिस के दिया गया आदेश वैध है?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: नोटिस न देने से कर्मचारी अपने बचाव का अधिकार खो देता है, जिससे आदेश अवैध हो जाता है।
मामले का शीर्षक
Ranjeet Kumar Singh v. The State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 6167 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(1) PLJR 792
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्रीमती ऋतिका रानी, अधिवक्ता
- प्रतिवादी राज्य की ओर से: श्री ललित किशोर, महाधिवक्ता (Advocate General)
निर्णय का लिंक
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