पटना हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार जाल मामले में बर्खास्तगी रद्द की, पुनः नियुक्ति का आदेश दिया (2025)

पटना हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार जाल मामले में बर्खास्तगी रद्द की, पुनः नियुक्ति का आदेश दिया (2025)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने 2025 में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें एक सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी को रद्द कर दिया गया। यह कर्मचारी लघु जल संसाधन विभाग में कार्यरत था और उस पर ₹2,500 रिश्वत लेने का आरोप लगाकर निगरानी विभाग (Vigilance) ने जाल बिछाया था। विभाग ने बाद में उसे सेवा से हटा दिया।

हाईकोर्ट ने पाया कि विभागीय जांच पूरी तरह से बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियमावली, 2005 के विपरीत चलाई गई थी। न तो सही तरीके से गवाहों की सूची दी गई, न ही कोई ठोस सबूत प्रस्तुत किया गया। जांच अधिकारी ने शिकायतकर्ता और जाल टीम के सदस्यों को बुलाए बिना ही आरोप को “सिद्ध” मान लिया। अदालत ने यह भी पाया कि बर्खास्तगी और अपील के आदेश केवल औपचारिक थे, जिनमें कोई कारण या तर्क नहीं दिया गया था।

इसके अलावा, हाईकोर्ट ने यह भी नोट किया कि इसी मामले में चल रहे आपराधिक मुकदमे में कर्मचारी को 2016 में पूरी तरह से बरी (acquitted) कर दिया गया था। विशेष न्यायाधीश (निगरानी), पटना ने कहा था कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि कर्मचारी ने रिश्वत मांगी या ली।

इन सब तथ्यों को देखते हुए हाईकोर्ट ने विभागीय कार्रवाई को शून्य और गैरकानूनी घोषित किया, और आदेश दिया कि कर्मचारी को उसकी सेवा में तुरंत बहाल किया जाए तथा सभी वेतन और सेवा लाभ (back wages, continuity of service) दिए जाएं। अदालत ने यह आदेश नियम 13(3) और सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध फैसले Deepali Gundu Surwase बनाम Kranti Junior Adhyapak Mahavidyalaya (2013) के आधार पर दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

  • यह फैसला बिहार सरकार के सभी विभागों को यह याद दिलाता है कि भ्रष्टाचार के मामलों में भी विभागीय जांच निष्पक्ष और नियमों के अनुसार करनी जरूरी है।
  • किसी कर्मचारी को केवल “संदेह” या अधूरी जांच के आधार पर बर्खास्त नहीं किया जा सकता।
  • अगर वही मामला अदालत में चला हो और अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया हो, तो विभाग को अपने आदेश की समीक्षा करनी चाहिए।
  • यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि विभागीय अधिकारी या अपीलीय अधिकारी केवल “कानून विभाग की राय” को कॉपी करके निर्णय नहीं दे सकते — उन्हें खुद कारण और तर्क लिखने होंगे।
  • इस तरह के फैसले सरकारी कर्मचारियों को यह भरोसा देते हैं कि अगर उनके साथ अन्याय हुआ है, तो न्यायालय उनकी रक्षा करेगा।
  • सरकार के लिए यह संदेश है कि जांच की समयसीमा और प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है। वर्षों तक किसी कर्मचारी को अनिश्चितता में रखना अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या बिना दस्तावेज़ और गवाहों की सूची के जारी किया गया चार्जशीट वैध है?
    ❌ नहीं। नियम 17(3) और (4) के अनुसार यह अनिवार्य है। इसके बिना जांच की नींव ही गलत हो जाती है।
  • क्या केवल एफआईआर, शिकायत और जब्ती सूची के आधार पर रिश्वत सिद्ध की जा सकती है जब शिकायतकर्ता और जाल टीम को बुलाया ही नहीं गया?
    ❌ नहीं। ऐसे दस्तावेज़ सबूत नहीं माने जाते जब तक संबंधित व्यक्ति की गवाही न हो।
  • क्या अनुशासनिक और अपीलीय प्राधिकारी बिना कारण बताए आदेश जारी कर सकते हैं?
    ❌ नहीं। ऐसे आदेश “नॉन-स्पीकिंग ऑर्डर” कहलाते हैं और कानूनन टिक नहीं सकते।
  • क्या जब एक ही घटना में आपराधिक अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया हो, तब विभागीय सजा जारी रह सकती है?
    ❌ नहीं। जब दोनों मामलों में तथ्य, गवाह और दस्तावेज़ एक जैसे हों, तो अदालत की बरी को नजरअंदाज करना अन्याय होगा।
  • अंतिम आदेश: बर्खास्तगी और अपील दोनों आदेश रद्द; पुनः नियुक्ति व सभी सेवा लाभ देने का निर्देश।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Capt. M. Paul Anthony v. Bharat Gold Mines Ltd., (1999) 3 SCC 679
  • G.M. Tank v. State of Gujarat, (2006) 5 SCC 446
  • Roop Singh Negi v. Punjab National Bank, (2009) 2 SCC 570
  • Kerns Services (P) Ltd. v. State of Bihar, 2014 (1) PLJR 622

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Roop Singh Negi v. Punjab National Bank, (2009) 2 SCC 570
  • State of U.P. v. Saroj Kumar Sinha, (2010) 2 SCC 772
  • Commissioner of Police v. Jai Bhagwan, (2011) 6 SCC 376
  • G.M. Tank v. State of Gujarat, (2006) 5 SCC 446
  • Capt. M. Paul Anthony v. Bharat Gold Mines Ltd., (1999) 3 SCC 679
  • Ram Lal v. State of Rajasthan, (2024) 1 SCC 175
  • Deepali Gundu Surwase v. Kranti Junior Adhyapak Mahavidyalaya, (2013) 10 SCC 324

मामले का शीर्षक

मुकेश कुमार बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 2114 of 2020 (Patna High Court)

उद्धरण (Citation)

2025 (2) PLJR 96

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति हरीश कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री पारिजात सौरव, अधिवक्ता
  • राज्य/प्रतिवादी की ओर से: श्री कृत्यानंद झा, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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