निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने बिहार ग्रामीण कार्य विभाग (Rural Works Department) द्वारा एक ठेकेदार को 10 साल के लिए डिबार (प्रतिबंधित) करने का आदेश रद्द कर दिया। अदालत ने माना कि यह आदेश बिना नोटिस दिए और बिना उचित कारण बताए पारित किया गया, जो प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) के सिद्धांतों के खिलाफ है।
याचिकाकर्ता एक पंजीकृत साझेदारी फर्म है, जो सड़क निर्माण का काम करती है। 28 जनवरी 2020 को इसे मुख्यमंत्री ग्राम संपर्क योजना (MMGSY) के तहत दो सड़क परियोजनाओं का ठेका मिला:
- नाहर भारत पांडे से पीसीसी रोड प्राइमरी स्कूल तक
- सर्नीपुर (रानीपुर) चौक से अब्बास अंसारी तक
विभाग का आरोप था कि ठेकेदार समय पर काम पूरा नहीं कर पाया। बिना कोई शो कॉज नोटिस (कारण बताओ नोटिस) जारी किए, विभाग के इंजीनियर-इन-चीफ ने 12 जुलाई 2021 को पत्र संख्या 2011 जारी करके याचिकाकर्ता समेत कुछ अन्य को 10 साल के लिए सभी टेंडरों से प्रतिबंधित कर दिया।
याचिकाकर्ता ने इस आदेश को अदालत में चुनौती देते हुए कहा:
- आदेश को रद्द किया जाए क्योंकि यह अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 19(1)(g) (व्यवसाय करने की स्वतंत्रता) का उल्लंघन है।
- उसे अन्य टेंडरों में भाग लेने की अनुमति दी जाए।
अदालत की मुख्य टिप्पणियां:
- प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन:
इतना गंभीर दंड देने से पहले विभाग ने ठेकेदार को अपनी बात रखने का अवसर ही नहीं दिया। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। - पहले के आदेशों की अवहेलना:
अदालत ने याद दिलाया कि रमन कुमार सिंह बनाम बिहार स्टेट फूड एंड सिविल सप्लाई कॉर्पोरेशन लिमिटेड (2018) में उसने पहले भी कहा था कि ब्लैकलिस्ट/डिबारमेंट से पहले नोटिस और सुनवाई जरूरी है। उस फैसले की अनदेखी की गई। - कारण और अनुपातिकता (Proportionality) की कमी:
10 साल का प्रतिबंध लगाने का कोई स्पष्ट कारण आदेश में नहीं लिखा गया। इतना लंबा प्रतिबंध तब ही उचित होता है जब उसका ठोस औचित्य हो, जो यहां नहीं था। - गंभीर असर:
डिबारमेंट से ठेकेदार किसी भी सरकारी टेंडर में भाग नहीं ले सकता, जिससे उसकी आजीविका और प्रतिष्ठा पर असर पड़ता है। ऐसे आदेश देते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
अंतिम फैसला:
प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन के आधार पर अदालत ने 12 जुलाई 2021 का आदेश रद्द कर दिया। अदालत ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता इस दौरान कई टेंडरों से वंचित रहा है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
- सरकारी विभागों के लिए सख्त संदेश:
ब्लैकलिस्ट या डिबार करने से पहले नोटिस और सुनवाई देना अनिवार्य है। - सजा में अनुपातिकता:
इतने लंबे समय का प्रतिबंध तभी लगाया जा सकता है जब उसके पीछे मजबूत कारण हों। - ठेकेदारों के अधिकार की सुरक्षा:
यह फैसला ठेकेदारों को मनमानी कार्यवाही से बचाता है और टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। - न्यायालय की निगरानी:
अदालत ने साफ किया कि अनुबंध संबंधी मामलों में भी, यदि प्रक्रिया मनमानी या गैरकानूनी है, तो न्यायालय हस्तक्षेप करेगा।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या बिना नोटिस के डिबारमेंट वैध है?
निर्णय: नहीं। यह प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है, आदेश रद्द। - क्या 10 साल का प्रतिबंध उचित था?
निर्णय: अनुपातिकता का आकलन नहीं किया गया, इसलिए असंगत। - क्या आदेश पहले के हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करता था?
निर्णय: नहीं, पहले के रमन कुमार सिंह केस के सिद्धांतों की अनदेखी की गई।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- रमन कुमार सिंह बनाम बिहार स्टेट फूड एंड सिविल सप्लाई कॉर्पोरेशन लिमिटेड, CWJC No. 16989/2017 (पटना हाईकोर्ट)
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- रमन कुमार सिंह बनाम बिहार स्टेट फूड एंड सिविल सप्लाई कॉर्पोरेशन लिमिटेड, CWJC No. 16989/2017 (पटना हाईकोर्ट)
मामले का शीर्षक
M/s. Chandra Mohan Ojha बनाम State of Bihar एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 14214 of 2022
माननीय न्यायमूर्ति
माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री आशीष गिरी, अधिवक्ता
- प्रतिवादियों की ओर से: श्रीमती अर्चना मीनाक्षी, जीपी 6
निर्णय का लिंक
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