रेलवे द्वारा 2013 की डेमरेज मांग को पटना हाईकोर्ट ने अवैध और समयबद्ध मानते हुए खारिज किया

रेलवे द्वारा 2013 की डेमरेज मांग को पटना हाईकोर्ट ने अवैध और समयबद्ध मानते हुए खारिज किया

निर्णय की सरल व्याख्या

इस मामले में याचिकाकर्ता एक प्राइवेट लॉजिस्टिक्स कंपनी थी, जिसने भारतीय रेलवे द्वारा डेमरेज और व्हार्फेज शुल्क के नाम पर लगभग ₹11.89 लाख की वसूली के खिलाफ पटना हाईकोर्ट का रुख किया। यह विवाद 2013 से जुड़ा है, जब लहेरियासराय रेलवे साइडिंग पर सीमेंट की खेप अनलोड करने में कथित देरी हुई थी।

कंपनी के अनुसार:

  • पहले ही CWJC No. 24766 of 2013 में रेलवे की डिमांड को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।
  • कोर्ट ने मामले को गुड्स सुपरिटेंडेंट को स्वतंत्र रूप से विचार करने के लिए भेजा था।
  • गुड्स सुपरिटेंडेंट ने 2 सितंबर 2014 को याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला देते हुए शुल्क माफ करने की सिफारिश की।
  • लेकिन उन्होंने यह फाइल नियमविरुद्ध तरीके से डिवीजनल रेलवे मैनेजर (DRM) को भेज दी, जो इस निर्णय के लिए अधिकृत नहीं थे।

रेलवे ने इस मामले को वर्षों तक दबाए रखा और फिर 2018 में अचानक पुरानी मांग को फिर से जीवित करते हुए नोटिस भेज दिया। यह दूसरा दौर था, जिसे CWJC No. 21861 of 2018 में हाईकोर्ट ने फिर से खारिज कर दिया और रेलवे को नए सिरे से कारण बताओ नोटिस जारी करने को कहा।

हालांकि, जुलाई 2020 में रेलवे ने फिर वही पुराना शुल्क वसूलने का प्रयास करते हुए नोटिस जारी किया, और सितंबर 2020 में सीमेंट की बोरियों की नीलामी की प्रक्रिया शुरू कर दी।

पटना हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा:

  • 2014 में गुड्स सुपरिटेंडेंट द्वारा की गई सिफारिश ही अंतिम आदेश मानी जाएगी।
  • DRM को कोई अधिकार नहीं था उस आदेश में हस्तक्षेप करने का।
  • पुरानी डिमांड को फिर से उठाना न्यायिक आदेश की अवहेलना है।

अंततः कोर्ट ने:

  • ₹11.89 लाख की डेमरेज डिमांड को पूरी तरह से खारिज कर दिया।
  • सीमेंट की बोरियों की नीलामी की प्रक्रिया को भी रद्द कर दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला सरकारी विभागों को यह स्पष्ट संदेश देता है कि एक बार कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का ईमानदारी से पालन करना अनिवार्य है। कोई भी अधिकारी कोर्ट के निर्देशों को टालकर या ऊंचे पदाधिकारियों के पास फाइल भेजकर बच नहीं सकता।

इस फैसले से व्यावसायिक संस्थानों को भी राहत मिलती है जो अक्सर प्रशासनिक मनमानी का शिकार होते हैं। कोर्ट ने यह स्थापित किया कि पूर्ववर्ती आदेशों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की अवहेलना नहीं हो सकती।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या रेलवे 2013 की पुरानी डेमरेज मांग को पुनर्जीवित कर सकती थी?
    नहीं। कोर्ट ने कहा कि 2014 में ही यह मुद्दा बंद हो चुका था।
  • क्या DRM को यह मांग दोबारा उठाने का अधिकार था?
    नहीं। केवल गुड्स सुपरिटेंडेंट को ही आदेश देने का अधिकार था।
  • क्या सीमेंट की बोरियों की नीलामी कानूनी थी?
    नहीं। जब डिमांड ही अवैध थी तो नीलामी भी अवैध थी।
  • क्या रेलवे का यह कृत्य कोर्ट के आदेश की अवहेलना था?
    हां। हालांकि कोर्ट ने अवमानना कार्रवाई नहीं की, लेकिन कड़ी चेतावनी दी।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • CWJC No. 24766 of 2013
  • CWJC No. 21861 of 2018
  • CWJC No. 433 of 2015, LPA No. 796 of 2016 (समान प्रकृति के मामले)

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • CWJC No. 24766 of 2013
  • CWJC No. 21861 of 2018

मामले का शीर्षक
M/s Ganga Carriers Pvt. Ltd. बनाम भारत सरकार एवं अन्य

केस नंबर
CWJC No. 8848 of 2020

उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 350

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अहसनुद्दीन अमानुल्लाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री गौतम कुमार केजरीवाल (याचिकाकर्ता की ओर से)
  • श्री विजय कुमार सिन्हा (रेलवे की ओर से)

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjODg0OCMyMDIwIzEjTg==-IVFuW1WI99s=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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