निर्णय की सरल व्याख्या
फरवरी 2021 में पटना हाईकोर्ट ने एक आपराधिक पुनरीक्षण (Criminal Revision) याचिका पर फैसला सुनाया। यह मामला रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 143 से जुड़ा था, जो रेलवे टिकटों की अवैध खरीद-बिक्री और बुकिंग पर रोक लगाता है।
पृष्ठभूमि
2009 में पश्चिम चंपारण जिले के नरकटियागंज स्टेशन पर रेलवे सुरक्षा बल (RPF) ने एक व्यक्ति को संदिग्ध गतिविधियों के कारण पकड़ा। जांच में उसके पास से मिला:
- दो रेलवे रिज़र्वेशन फॉर्म (requisition slips),
- ₹12,340 भारतीय मुद्रा,
- ₹3,505 नेपाली मुद्रा,
- एक मोबाइल फोन।
इन रिज़र्वेशन फॉर्म पर लिखे नाम न तो आरोपी के रिश्तेदार थे और न ही परिचित। इस आधार पर RPF ने उस पर मामला दर्ज किया कि वह रेलवे टिकटों की अवैध खरीद-बिक्री कर रहा था।
निचली अदालतों का फैसला
- ट्रायल कोर्ट (2016): आरोपी को दोषी ठहराया और 1 साल की कैद व ₹5,000 का जुर्माना लगाया।
- अपील कोर्ट (2019): दोषसिद्धि कायम रखते हुए सज़ा बढ़ाकर 2 साल की कैद और ₹10,000 का जुर्माना कर दिया।
इसके खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की।
आरोपी की दलीलें
- उसके पास से कोई रेलवे टिकट नहीं मिला, सिर्फ रिज़र्वेशन फॉर्म थे।
- अभियोजन पक्ष ने 7 गवाह पेश किए, लेकिन सभी सरकारी कर्मचारी थे। कोई स्वतंत्र गवाह नहीं था।
- अपीलीय अदालत ने बिना ठोस कारण के सज़ा बढ़ा दी।
हाईकोर्ट की राय
- दोषसिद्धि पर: कोर्ट ने माना कि आरोपी के पास बड़ी रकम और ऐसे रिज़र्वेशन फॉर्म मिले जिनका उससे कोई संबंध नहीं था। वह इनका कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण भी नहीं दे सका। इसलिए अवैध टिकटिंग का आरोप साबित हुआ और दोषसिद्धि सही है।
- सज़ा पर: लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा कि निचली अदालतों द्वारा दी गई सज़ा अपराध की गंभीरता से अधिक है। दंड अपराध के अनुरूप होना चाहिए।
- आरोपी जुलाई 2019 से हिरासत में था और काफी समय जेल में बिता चुका था।
हाईकोर्ट का निर्णय
- दोषसिद्धि कायम रखी गई।
- सज़ा घटाई गई। पहले की 1–2 साल की कैद की जगह, आरोपी को सिर्फ जितना समय उसने पहले ही जेल में बिताया है, उतनी ही सज़ा माना गया।
- चूंकि वह पहले से जमानत पर बाहर था, उसकी जमानत बॉन्ड रद्द कर दी गई।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
- आम नागरिकों के लिए: रेलवे टिकटों की अवैध खरीद-बिक्री करना गंभीर अपराध है। सिर्फ रिज़र्वेशन फॉर्म और बिना कारण बड़ी रकम के पास होना भी दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त हो सकता है।
- न्यायपालिका के लिए: यह फैसला बताता है कि अदालतें दोषसिद्धि तो कायम रख सकती हैं, लेकिन सज़ा हमेशा अपराध की गंभीरता के अनुपात में होनी चाहिए।
- प्रशासन और RPF के लिए: यह फैसला उन्हें ताकत देता है कि वे ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई कर सकते हैं, लेकिन गवाह और सबूत मज़बूत होने चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या बिना टिकट बरामद हुए भी दोषसिद्धि संभव है?
- हाँ। रिज़र्वेशन फॉर्म और नकदी पर्याप्त सबूत माने गए।
- क्या अपील कोर्ट द्वारा बढ़ाई गई सज़ा उचित थी?
- नहीं। हाईकोर्ट ने सज़ा घटाकर “पहले से बिताए गए कारावास की अवधि” तक सीमित कर दी।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
मुख्य रूप से अधिनियम की व्याख्या और सज़ा संतुलन के सिद्धांत पर भरोसा किया गया।
मामले का शीर्षक
Raju Kumar v. State of Bihar & Anr.
केस नंबर
Criminal Revision No. 1226 of 2019 (RPF केस नं. 224/2009, पश्चिम चंपारण)
उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 726
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री उमेश चंद्र वर्मा
- रेलवे की ओर से: श्री अमरेश कुमार सिन्हा
- राज्य की ओर से: श्री शैलेन्द्र कुमार
निर्णय का लिंक
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