गवाही में विरोधाभास और सबूतों की कमी के चलते बलात्कार के आरोप में आरोपी को हाईकोर्ट से बरी किया गया

गवाही में विरोधाभास और सबूतों की कमी के चलते बलात्कार के आरोप में आरोपी को हाईकोर्ट से बरी किया गया

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने 26 नवंबर 2024 को एक महत्वपूर्ण फैसले में एक व्यक्ति को बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया। इससे पहले, सत्र न्यायाधीश, सहरसा द्वारा 2013 में उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दस साल के कठोर कारावास और ₹25,000 के जुर्माने की सजा दी गई थी।

मामला वर्ष 2006 का था, जिसमें एक महिला ने आरोप लगाया था कि रात में गांव का ही एक व्यक्ति उसके घर में घुस आया और जबरदस्ती बलात्कार किया। हालांकि, इस घटना की लिखित शिकायत पुलिस को कई महीनों बाद, दिसंबर 2006 में दी गई थी।

सुनवाई के दौरान पाँच अभियोजन पक्ष के गवाहों को पेश किया गया। मुख्य गवाह स्वयं पीड़िता थीं, जिन्होंने पहले आरोपी पर आरोप लगाए, लेकिन बाद में अपने बयान से पलट गईं। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने यह शिकायत दूसरों के दबाव में आकर की थी और यह भी स्वीकार किया कि आरोपी उसका भतीजा है और दोनों परिवारों के बीच ज़मीन का विवाद था।

अन्य गवाहों ने भी घटना को अपनी आँखों से देखने से इनकार किया। चिकित्सा जांच नहीं कराई गई और कोई फोरेंसिक सबूत जैसे कपड़े भी पुलिस को नहीं दिए गए। साथ ही, इस मामले में जाँच अधिकारी को भी अदालत में पेश नहीं किया गया, जिसे बचाव पक्ष ने एक गंभीर खामी बताया।

बचाव पक्ष ने पाँच गवाहों को पेश किया, जिनमें खुद पीड़िता के पति भी शामिल थे। उन्होंने अदालत को बताया कि कोई बलात्कार नहीं हुआ और यह मामला ज़मीन विवाद के चलते दर्ज कराया गया था।

इन तमाम विरोधाभासों और सबूतों की कमी को देखते हुए, हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष अपराध को संदेह से परे साबित करने में असफल रहा और इसलिए निचली अदालत का दोषसिद्धि का फैसला रद्द कर दिया गया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय दर्शाता है कि भारतीय न्याय प्रणाली केवल आरोपों के आधार पर किसी को सजा नहीं देती। हर आपराधिक मामले में यह सिद्ध करना आवश्यक है कि अपराध संदेह से परे सिद्ध हुआ है। यदि गवाही विरोधाभासी हो, जांच अधूरी हो और मेडिकल सबूत न हों, तो दोषसिद्धि नहीं दी जा सकती।

यह निर्णय पुलिस और अभियोजन एजेंसियों को यह सन्देश देता है कि उन्हें हर मामले में उचित जांच करनी चाहिए, विशेषकर जब मामला गंभीर अपराध जैसे बलात्कार से जुड़ा हो। यह फैसला जनता को यह भरोसा भी देता है कि अदालतें निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करती हैं, और गलत आरोपों के खिलाफ भी न्याय करती हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या अभियोजन पक्ष धारा 376 IPC के तहत अपराध को संदेह से परे साबित कर सका?
    नहीं; गवाही में विरोधाभास और सबूतों की कमी के कारण आरोपी को बरी कर दिया गया।
  • क्या जांच अधिकारी को पेश न करना अभियोजन पक्ष के मामले को प्रभावित करता है?
    हाँ; अदालत ने इसे गंभीर चूक माना।
  • क्या पीड़िता का बयान पलटना केस को कमजोर करता है?
    हाँ; यह गवाही की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Munna Lal vs. State of Uttar Pradesh, 2023 SCC OnLine SC 80
  • Habeeb Mohammad vs. State of Hyderabad, 1954 AIR 51, 1954 SCR 475

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
Munna Lal vs. State of Uttar Pradesh, 2023 SCC OnLine SC 80

Habeeb Mohammad vs. State of Hyderabad, 1954 AIR 51, 1954 SCR 475

मामले का शीर्षक
Satya Narain Yadav v. State of Bihar

केस नंबर
CRIMINAL APPEAL (SJ) No. 557 of 2013

उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 31

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति रमेश चंद मालवीय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
• श्रीमती सिप्पी सिन्हा, एमिकस क्यूरी – अपीलकर्ता की ओर से
• श्रीमती अनिता कुमारी सिंह, APP – राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक
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“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”


Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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