निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार किसी सेवानिवृत्त क्लास-III कर्मचारी की लीव एनकैशमेंट (अवकाश नकदीकरण) राशि से तथाकथित “अधिक भुगतान किए गए वेतन” की वसूली नहीं कर सकती। न्यायालय ने यह भी कहा कि जब कर्मचारी की सेवा समाप्त हो चुकी हो और उसकी सेवानिवृत्ति के बाद वर्षों तक विभाग उसके बकाया सेवानिवृत्ति लाभों का निपटारा न करे, तो ऐसी वसूली पूरी तरह अनुचित है।
यह मामला एक सहायक (Assistant) पद पर कार्यरत सरकारी कर्मचारी से संबंधित था, जो 31 मार्च 2013 को सेवानिवृत्त हुए थे। उन्हें प्रारंभ में केवल 90% प्रोविजनल पेंशन और 90% ग्रेच्युटी दी गई, जबकि समूह बीमा (Group Insurance) का पूरा भुगतान किया गया। कई वर्षों बाद विभाग ने उनके वेतन निर्धारण (Pay Fixation) की जांच की और यह कहकर ₹1,77,121 रुपये की वसूली का आदेश दे दिया कि उन्हें “अधिक वेतन” दिया गया था। यह राशि उनकी लीव एनकैशमेंट की राशि से काट ली गई।
सेवानिवृत्त कर्मचारी ने इस वसूली और बकाया भुगतान में देरी के खिलाफ पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
न्यायालय ने पाया कि याची की सेवा एक निजी मेडिकल कॉलेज से शुरू हुई थी, जिसे बाद में सरकार ने 1 जनवरी 1980 से अपने नियंत्रण में लिया। उन्हें सितंबर 1980 में पटना के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में स्थानांतरित किया गया। 2017 में यानी सेवानिवृत्ति के चार साल बाद, विभाग ने उनसे सेवा पुस्तिका में कुछ अस्पष्टताओं के बारे में स्पष्टीकरण मांगा। न्यायालय ने यह विशेष रूप से देखा कि इन आपत्तियों को 2014 में ही उठाया गया था, फिर भी पत्र तीन साल बाद जारी किया गया, जिसका कोई कारण सरकार ने नहीं बताया।
राज्य सरकार की ओर से दाखिल प्रतिवाद हलफनामे में कहा गया कि शेष 10% पेंशन और ग्रेच्युटी अब स्वीकृत कर दी गई है और लीव एनकैशमेंट की राशि भी गणना कर ली गई है। लेकिन, विभाग ने वेतन निर्धारण में त्रुटि बताते हुए ₹1,77,121 की वसूली कर ली और कुल ₹4,10,510 की लीव एनकैशमेंट में से केवल ₹2,33,459 जारी किए।
याची की ओर से यह तर्क दिया गया कि ऐसी वसूली सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय State of Punjab v. Rafiq Masih (White Washer), (2015) 4 SCC 334 के खिलाफ है। उस फैसले में कहा गया है कि सेवानिवृत्त या क्लास-III/IV कर्मचारियों से गलत वेतन निर्धारण के आधार पर किसी भी प्रकार की वसूली नहीं की जा सकती।
राज्य ने यह तर्क देने की कोशिश की कि वह “पेंशन” या “ग्रेच्युटी” से नहीं, बल्कि “लीव एनकैशमेंट” से समायोजन कर रहा है, जो वैध है। लेकिन न्यायालय ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि तथ्य निर्विवाद हैं—
- कर्मचारी 2013 में सेवानिवृत्त हुआ,
- विभाग ने सात वर्षों तक सेवानिवृत्ति लाभों का पूर्ण भुगतान नहीं किया,
- और अब गलत वेतन निर्धारण के आधार पर वसूली की जा रही है।
यह सब न्यायिक दृष्टि से अनुचित है।
न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के Rafiq Masih के फैसले के पैरा 18 का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि—
- क्लास-III या क्लास-IV कर्मचारियों से वसूली नहीं की जा सकती।
- सेवानिवृत्त कर्मचारियों से वसूली नहीं की जा सकती।
इस आधार पर पटना उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि ₹1,77,121 की रोकी गई राशि एक महीने के भीतर याची को दी जाए और देरी के लिए संबंधित अधिकारी पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया गया।
यह फैसला सरकारी विभागों को यह याद दिलाता है कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों के अधिकारों से समझौता नहीं किया जा सकता। यदि विभाग ने वर्षों तक रिकॉर्ड नहीं सुधारा, तो उसकी लापरवाही का बोझ कर्मचारी पर नहीं डाला जा सकता।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बिहार सहित पूरे देश के सरकारी कर्मचारियों के लिए राहत देने वाला है। इसके कुछ प्रमुख प्रभाव इस प्रकार हैं—
- सेवानिवृत्त कर्मचारियों की सुरक्षा: यह स्पष्ट कर दिया गया है कि सेवानिवृत्ति के बाद की रकम जैसे लीव एनकैशमेंट, पेंशन, या ग्रेच्युटी से किसी प्रकार की वसूली नहीं की जा सकती, खासकर क्लास-III और क्लास-IV कर्मचारियों से।
- विभागीय जवाबदेही: विभागों को समय पर सेवा अभिलेख (service record) ठीक रखना और सेवानिवृत्ति लाभों का भुगतान समय पर करना होगा।
- न्यायिक अनुशासन: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विभागीय देरी और मनमानी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
- प्रशासनिक सुधार: सरकारी अधिकारियों के लिए यह चेतावनी है कि गलत वेतन निर्धारण का निपटारा सेवा के दौरान ही किया जाना चाहिए, न कि सेवानिवृत्ति के बाद।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या राज्य सरकार लीव एनकैशमेंट से “अधिक वेतन” की वसूली कर सकती है?
➤ निर्णय: नहीं। ऐसा करना Rafiq Masih के सिद्धांतों के विपरीत है। - क्या सेवा समाप्त होने के बाद वसूली करना वैध है?
➤ निर्णय: नहीं। सेवानिवृत्ति के बाद इस प्रकार की वसूली अनुचित है, विशेषकर जब त्रुटि विभाग की हो। - क्या देरी से भुगतान पर जिम्मेदारी तय की जा सकती है?
➤ निर्णय: हाँ। न्यायालय ने देरी के लिए ₹10,000 का जुर्माना लगाया और विभाग को एक महीने में राशि चुकाने का आदेश दिया।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- State of Punjab and Others v. Rafiq Masih (White Washer) and Others, (2015) 4 SCC 334.
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- वही सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय — Rafiq Masih (2015) 4 SCC 334 — को उद्धृत करते हुए न्यायालय ने कहा कि क्लास-III और क्लास-IV कर्मचारियों से वसूली नहीं की जा सकती।
मामले का शीर्षक
- याची बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (सामान्य संदर्भ, वास्तविक नाम नहीं)
केस नंबर
- Civil Writ Jurisdiction Case No. 4066 of 2019
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 411
न्यायमूर्ति गण का नाम
- माननीय श्री न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह
(निर्णय दिनांक: 17 मार्च 2021)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याची की ओर से: श्री अजीत कुमार, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री एस. डी. यादव, एएजी-9; सहायक श्रीमती शमा सिन्हा
निर्णय का लिंक
MTUjNDA2NiMyMDE5IzEjTg==-PMwcINykzJw=
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