निर्णय की सरल व्याख्या
इस मामले में एक व्यक्ति ने पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसमें उसने मांग की थी कि उसके परिसर और ट्रकों से जब्त की गई 2073 गेहूं की बोरियां उसे वापस कर दी जाएं। यह गेहूं 2019 में उसके आवासीय परिसर और ट्रकों से बरामद किया गया था। प्रशासन का आरोप था कि गेहूं का उपयोग काला बाज़ारी के लिए किया जा रहा था और यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत आने वाले अनाज का ग़लत तरीके से भंडारण था।
याचिकाकर्ता ने कहा कि वह किसी भी सरकारी दुकान या सार्वजनिक वितरण प्रणाली से जुड़ा नहीं है, बल्कि स्थानीय किसानों से अनाज खरीदकर खुले बाज़ार में बेचने का काम करता है। उसने यह भी तर्क दिया कि अगर गेहूं जल्द नहीं लौटाया गया तो उसके खराब होने का खतरा है और सरकार को इसकी भरपाई करनी चाहिए।
राज्य सरकार की ओर से जवाब दिया गया कि गेहूं की जब्ती के बाद जिलाधिकारी, पूर्णिया के समक्ष विधिवत जब्ती (कॉन्फिस्केशन) की कार्यवाही शुरू हो चुकी है और याचिकाकर्ता को नोटिस देकर सुनवाई का अवसर भी दिया गया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के Shambhu Dayal Agarwala बनाम State of West Bengal (1990) और पटना हाई कोर्ट के पूर्ण पीठ के निर्णय Baleshwar Roy बनाम राज्य बिहार [2018(4) PLJR 970] का हवाला देते हुए कहा कि जब्ती प्रक्रिया पूरी होने से पहले कोई अदालत गेहूं को लौटाने का आदेश नहीं दे सकती।
अदालत ने माना कि जब्ती प्रक्रिया में कोई कानूनी त्रुटि नहीं हुई है और याचिकाकर्ता को विधिवत सुनवाई का अवसर दिया जा चुका है। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिका में ऐसा कोई असाधारण कारण या अन्याय नहीं बताया गया है जो कि न्यायिक हस्तक्षेप को उचित ठहराए।
इसलिए अदालत ने गेहूं की बोरियों की रिहाई की मांग को अस्वीकार कर दिया और याचिका को खारिज कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि आवश्यक वस्तुओं की जब्ती से संबंधित मामलों में अदालतें तभी हस्तक्षेप करेंगी जब नियमों की खुली अवहेलना हुई हो या जब स्पष्ट अन्याय हो रहा हो। अदालतों की यह सतर्कता यह सुनिश्चित करती है कि सरकारी तंत्र द्वारा की जा रही निगरानी और नियंत्रण को कमजोर न किया जाए।
व्यापारियों के लिए यह एक सीख है कि यदि वे अनाज या अन्य आवश्यक वस्तुओं का व्यापार करते हैं, तो उन्हें अपने लेनदेन का पूरा दस्तावेज रखना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके पास वैध स्टॉक व क्रय-विक्रय रजिस्टर हो।
सरकारी एजेंसियों के लिए यह फैसला उनके अधिकारों की पुष्टि करता है कि यदि वे सही प्रक्रिया का पालन करते हैं, तो अदालतें उनके कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेंगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या आवश्यक वस्तु (गेहूं) को जब्ती प्रक्रिया के दौरान अदालत से छुड़वाया जा सकता है?
- नहीं, जब तक कोई नियम उल्लंघन या स्पष्ट अन्याय न हो, कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करेगी।
- क्या हाई कोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप कर सकता है?
- हां, लेकिन केवल अपवादस्वरूप मामलों में जब न्याय दिलाना जरूरी हो।
- क्या याचिकाकर्ता यह सिद्ध कर पाया कि जब्ती प्रक्रिया में कोई त्रुटि हुई?
- नहीं, अदालत ने कहा कि प्रक्रिया सही तरीके से अपनाई गई थी।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Shambhu Dayal Agarwala बनाम State of West Bengal, (1990) 3 SCC 549
- Baleshwar Roy बनाम State of Bihar, 2018(4) PLJR 970
मामले का शीर्षक
Md. Jahangir बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 4479 of 2020
उद्धरण (Citation)
2020 (2) PLJR 873
न्यायमूर्ति गण का नाम
- माननीय श्री न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री जितेन्द्र कुमार गिरी
- राज्य की ओर से: श्री प्रशांत प्रताप (राज्य पक्षकार-2)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNDQ3OSMyMDIwIzIjTg==-S3psR–ak1–73vGo=
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