पटना हाई कोर्ट का फैसला: रेत खनन पट्टा विस्तार और सरकारी नीति पर स्पष्टता (2021)

पटना हाई कोर्ट का फैसला: रेत खनन पट्टा विस्तार और सरकारी नीति पर स्पष्टता (2021)

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला एक रेत खनन कंपनी और बिहार सरकार के बीच विवाद से जुड़ा था। कंपनी (याचिकाकर्ता) ने 2016 से 2019 की अवधि के लिए जमुई और लखीसराय जिलों में रेत घाटों का पट्टा नीलामी के माध्यम से लिया था। इसके लिए उसने लगभग ₹49 करोड़ की बोली लगाई और सबसे बड़ा बोलीदाता बनकर पट्टा प्राप्त किया।

पट्टा मिलने के बाद वास्तविक खनन शुरू करने से पहले कुछ औपचारिकताएँ पूरी करनी आवश्यक थीं:

  • बोली राशि का 50% अग्रिम जमा करना,
  • खनन योजना (Mining Plan) की स्वीकृति,
  • पर्यावरणीय अनुमति (Environmental Clearance) प्राप्त करना।

कंपनी का कहना था कि खनन योजना की मंजूरी में अधिकारियों ने बहुत देरी की (लगभग 7 महीने), जिसके कारण वास्तविक खनन शुरू होने में देर हुई। काम का आदेश (Work Order) केवल नवंबर 2019 में जारी हुआ, जबकि पट्टा दिसंबर 2019 में समाप्त होना था। नतीजा यह हुआ कि कंपनी को केवल लगभग 60 दिनों के लिए ही खनन करने का मौका मिला।

इसलिए कंपनी ने मांग की कि पट्टे की अवधि को काम आदेश जारी होने की तारीख से 3 साल तक बढ़ाया जाए। लेकिन सरकार ने 31.10.2019 को यह मांग ठुकरा दी। इसके बाद, 27.12.2019 को सरकार ने एक नीति पत्र जारी किया, जिसके तहत पुराने पट्टाधारकों को अस्थायी रूप से पट्टा जारी रखने का विकल्प दिया गया, लेकिन शर्त यह थी कि पट्टा राशि में 50% की बढ़ोतरी स्वीकार करनी होगी।

कंपनी ने इन दोनों आदेशों को हाई कोर्ट में चुनौती दी और कहा:

  1. देरी कंपनी की नहीं बल्कि अधिकारियों की वजह से हुई।
  2. पट्टा राशि में 50% की बढ़ोतरी मनमानी और अवैध है।
  3. कंपनी को काम आदेश जारी होने की तारीख से पूरे 3 साल खनन का अधिकार मिलना चाहिए।

राज्य और खान विभाग का पक्ष:

  • कंपनी पहले भी इसी मामले में (CWJC No. 5429 of 2019) हाई कोर्ट गई थी और उस समय कोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना था कि देरी कंपनी की लापरवाही से हुई थी।
  • कंपनी ने उस फैसले के खिलाफ अपील नहीं की और अब वही मुद्दा दोबारा उठा रही है।
  • कंपनी ने पुराने फैसले की कॉपी दाखिल करते समय जानबूझकर कोर्ट की प्रतिकूल टिप्पणियों वाला पेज हटा दिया — यानी तथ्यों को दबाया।
  • कंपनी ने नवंबर 2019 में मिले काम आदेश को स्वीकार किया और 60 दिन खनन भी किया। बाद में यह दावा करना कि पट्टा बढ़ना चाहिए, अनुचित है।
  • 27.12.2019 का पत्र सभी पुराने पट्टाधारकों के लिए एक विकल्प मात्र था, न कि अनिवार्य विस्तार। कंपनी चाहे तो इसे स्वीकार करती, चाहे तो नहीं।

कोर्ट का फैसला:

  • कंपनी को वही राहत दोबारा नहीं मिल सकती जो पहले वाले मामले में खारिज हो चुकी है।
  • देरी की जिम्मेदारी पहले ही कंपनी पर तय हो चुकी थी।
  • जब कंपनी ने नवंबर 2019 का काम आदेश मानकर खनन किया, तो वह विस्तार की मांग से खुद ही पीछे हट गई (Estoppel by Election)।
  • 27.12.2019 का सरकारी पत्र एक अस्थायी नीति निर्णय था, जिसे कंपनी ने स्वीकार नहीं किया, इसलिए वह इससे पीड़ित नहीं मानी जा सकती।

अंततः, हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

  1. खनन कंपनियों के लिए सबक – पट्टा अवधि नीलामी की तिथि से गिनी जाएगी, न कि काम आदेश से। यदि अनुमति या मंजूरी लेने में देर होती है तो इसका फायदा लेकर पट्टा बढ़ाने का अधिकार नहीं है।
  2. सरकार के लिए अधिकार मजबूत – यह फैसला बताता है कि राज्य सरकार अपने विवेक से ही पट्टे की अवधि बढ़ा या घटा सकती है।
  3. जनता के लिए पारदर्शिता – पट्टों को बिना नई नीलामी के अनुचित तरीके से बढ़ाने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी। इससे सरकारी राजस्व और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा होगी।
  4. झूठे मुकदमों पर रोक – तथ्य छुपाकर या दोहराकर दाखिल की गई याचिकाओं को कोर्ट ने सख्ती से खारिज किया।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या पट्टा अवधि काम आदेश की तारीख से गिनी जा सकती है?
    ❌ नहीं। अवधि नीलामी से तय होती है, देरी के लिए विस्तार का अधिकार नहीं।
  • क्या 27.12.2019 का सरकारी पत्र मनमाना था?
    ❌ नहीं। यह सिर्फ एक नीति विकल्प था, न कि अनिवार्य विस्तार।
  • क्या कंपनी दूसरी बार उसी मुद्दे पर याचिका दायर कर सकती है?
    ❌ नहीं। इसे “Estoppel” कहा जाता है — यानी एक बार मान लेने के बाद दोबारा पलटा नहीं जा सकता।
  • क्या कंपनी ने तथ्य छुपाए?
    ✅ हाँ। पुराने फैसले की प्रतिकूल टिप्पणियाँ हटाकर गलत पेशकश की।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • All India Groundnut Syndicate Ltd. v. CIT, Bombay City, AIR 1954 Bom 232

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • CWJC No. 5429 of 2019 (पटना हाई कोर्ट, इसी कंपनी का पुराना मामला)
  • Mr. Aman Sethi v. State of Bihar & Ors., LPA No. 379 of 2019 (पटना हाई कोर्ट)
  • Joint Action Committee of Airline Pilots’ Association of India v. DGCA, (2011) 5 SCC 435

मामले का शीर्षक

Westlink Trading Pvt. Ltd. v. State of Bihar & Ors.

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 2746 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 291

माननीय न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री शशि अनुराग नारायण (वरिष्ठ अधिवक्ता) एवं श्री मृगांक मौली
  • राज्य की ओर से: श्री ज्ञान प्रकाश ओझा (GA VII)
  • खान विभाग की ओर से: श्री बृज बिहारी तिवारी (विशेष पीपी)

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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