निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 9 नवम्बर 2022 को एक अहम फैसला सुनाते हुए दैनिक वेतनभोगी वर्ग-4 (Class-IV) कर्मचारियों की पुनर्विचार याचिका (Civil Review No. 369 of 2019) को खारिज कर दिया। यह याचिका मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन में कार्यरत कुछ कर्मचारियों द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने दावा किया था कि उन्हें सरकारी पैनल में फिर से शामिल कर नियमित नियुक्ति (regularization) दी जानी चाहिए।
इस मामले की सुनवाई माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री संजय करोल और माननीय न्यायमूर्ति श्री अशुतोष कुमार की खंडपीठ ने की।
यह पुनर्विचार याचिका दरअसल पहले दिए गए एक फैसले के खिलाफ दायर की गई थी — Letters Patent Appeal (LPA) No. 372 of 2018, जिसे 20 अगस्त 2019 को खारिज किया गया था। उस अपील में अदालत ने एकल न्यायाधीश के आदेश (CWJC No. 10679 of 2012) को सही ठहराया था, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ताओं को 2001 या 2006 के बाद बने पैनलों में शामिल करने का कोई वैध कारण नहीं है, भले ही वे 1994 के पुराने पैनल में शामिल थे।
मामले की पृष्ठभूमि
- याचिकाकर्ता वर्ग-4 दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी थे, जो मुजफ्फरपुर जिला कार्यालय में कार्यरत थे।
- पटना उच्च न्यायालय के एक पुराने आदेश के पालन में, वर्ष 1994 में जिला पदाधिकारी, मुजफ्फरपुर ने ऐसे कर्मचारियों की एक सूची (पैनल) तैयार की थी जिनका नियमितीकरण संभव हो सकता था।
- याचिकाकर्ताओं के नाम उस 1994 की सूची में थे, लेकिन नियुक्तियाँ नहीं हुईं।
वर्ष 2000 में गठित नई चयन समिति (Empanelment Committee) ने 1994 की सूची को अमान्य (invalid) घोषित कर दिया। समिति के अनुसार—
- सूची में केवल एक वर्ग के लोग शामिल थे,
- सूची में उपलब्ध रिक्तियों से लगभग दस गुना अधिक नाम थे,
- इसलिए यह सूची नियमों के अनुरूप नहीं थी।
बाद में 2000 और 2001 में नई सूचियाँ बनाई गईं और उन्हीं से नियुक्तियाँ हुईं। याचिकाकर्ताओं के नाम इनमें शामिल नहीं थे।
वर्ष 2011 में, जिलाधिकारी, मुजफ्फरपुर ने 1994 की सूची को औपचारिक रूप से निरस्त कर दिया और याचिकाकर्ताओं की मांग को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने CWJC No. 10679/2012 के माध्यम से अदालत का दरवाज़ा खटखटाया, जिसे एकल न्यायाधीश ने खारिज कर दिया। उनकी Letters Patent Appeal भी असफल रही। अंततः उन्होंने पुनर्विचार याचिका (Review Petition) दायर की, जिसमें उन्होंने पुराने आदेशों की पुनः समीक्षा की मांग की।
याचिकाकर्ताओं के तर्क
- पुराने आवेदन पर विचार नहीं हुआ:
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उन्होंने वर्ष 2000, 2001 और 2006 में नई सूची में शामिल होने के लिए आवेदन दिया था, लेकिन प्रशासन ने उनके आवेदन पर ध्यान नहीं दिया। उनका तर्क था कि यह तथ्य पहले भी याचिका में लिखा गया था, परंतु अदालत ने उसे नज़रअंदाज़ कर दिया। - 1994 पैनल के अन्य लोगों को बाद में नौकरी मिली:
उन्होंने यह भी कहा कि 1994 की उसी सूची में शामिल कई लोगों को 2011, 2012 और 2017 में नौकरी दी गई, इसलिए उन्हें भी अवसर मिलना चाहिए था। - न्याय की दृष्टि से पुनर्विचार आवश्यक:
उनका कहना था कि अदालत ने पहले जो निर्णय दिया, उसमें महत्वपूर्ण तथ्यों पर विचार नहीं हुआ, जिससे न्यायिक त्रुटि हुई। इसलिए अदालत को “न्यायहित में पुनर्विचार” करना चाहिए।
राज्य सरकार के तर्क
राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता (AAG-12) श्री मोहम्मद खुर्शीद आलम ने कहा कि—
- याचिकाकर्ताओं के सारे तर्क पहले ही अपील में उठाए जा चुके हैं और अदालत ने उन पर विस्तार से विचार कर निर्णय दे दिया था।
- चयन समिति की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से कहती है कि याचिकाकर्ताओं ने बाद के वर्षों (2000, 2001, 2006) में आवेदन नहीं किया।
- याचिकाकर्ताओं द्वारा अब जो सूची पेश की जा रही है वह अनधिकृत (unauthenticated) है और अदालत के समक्ष पहले प्रस्तुत नहीं की गई थी।
- कोई नया साक्ष्य या तथ्य सामने नहीं आया है, इसलिए पुनर्विचार का कोई औचित्य नहीं बनता।
न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियाँ और निष्कर्ष
न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार ने पीठ की ओर से निर्णय देते हुए कहा:
- पुनर्विचार का दायरा सीमित है:
अदालत ने स्पष्ट किया कि पुनर्विचार कोई “दूसरी अपील” नहीं है। यह केवल तभी संभव है जब कोई नई और महत्वपूर्ण जानकारी मिले, या पहले के निर्णय में स्पष्ट त्रुटि हो।
अदालत ने दो सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया:- Aribam Tuleshwar Sharma v. Aribam Pishak Sharma (1979) 4 SCC 389
- Shri Ram Sahu (Dead) through Lrs v. Vinod Kumar Rawat (2020 SCC Online SC 896)
- कोई नया साक्ष्य प्रस्तुत नहीं हुआ:
याचिकाकर्ताओं द्वारा दी गई सूची प्रमाणित नहीं थी और इसे पहले अदालत के समक्ष नहीं रखा गया था। इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। - एक ही बात दोबारा उठाना उचित नहीं:
याचिकाकर्ताओं ने उन्हीं तथ्यों पर आधारित तर्क फिर से रखे जो पहले अपील में खारिज किए जा चुके थे। यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग माना गया। - मानवीय दृष्टिकोण:
अदालत ने यद्यपि याचिका खारिज कर दी, लेकिन यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता वर्ग-4 दैनिक वेतनभोगी हैं, उन पर कोई जुर्माना (cost) नहीं लगाया।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
- कर्मचारियों के लिए:
यह फैसला बताता है कि केवल पैनल में नाम आ जाने से किसी व्यक्ति को स्थायी नियुक्ति का अधिकार नहीं मिल जाता। हर नए वर्ष या चरण में नियमों के अनुसार आवेदन देना आवश्यक है। - सरकार और प्रशासन के लिए:
अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि किसी पैनल को त्रुटिपूर्ण पाया गया है, तो उसे रद्द किया जा सकता है और पुनः प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। - न्यायिक व्यवस्था के लिए:
यह निर्णय पुनर्विचार याचिकाओं की सीमा को स्पष्ट करता है — केवल “नई जानकारी” या “स्पष्ट त्रुटि” के आधार पर ही पुराने निर्णय की समीक्षा की जा सकती है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या अदालत पुनर्विचार में पुराने तथ्य दोबारा देख सकती है?
❖ नहीं। पुनर्विचार का उद्देश्य केवल स्पष्ट त्रुटियों को सुधारना है, दोबारा सुनवाई नहीं। - क्या याचिकाकर्ता यह साबित कर सके कि उन्होंने बाद के वर्षों में आवेदन किया था?
❖ नहीं। कोई प्रमाणिक दस्तावेज़ नहीं दिया गया। - क्या 1994 सूची से बाद में नियुक्त हुए लोगों के आधार पर दावा सही है?
❖ नहीं। ऐसे लोगों की स्थिति समान थी या नहीं, इसका कोई प्रमाण नहीं दिया गया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Aribam Tuleshwar Sharma v. Aribam Pishak Sharma, (1979) 4 SCC 389
- Shri Ram Sahu (Dead) through Lrs v. Vinod Kumar Rawat, 2020 SCC Online SC 896
मामले का शीर्षक
Prem Nath Paswan एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Review No. 369 of 2019 (In LPA No. 372 of 2018)
उद्धरण (Citation)
2023 (1) PLJR 1
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री संजय करोल
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशुतोष कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री कुमार मधुरेंदु एवं श्री संजय कुमार घोषरवी — याचिकाकर्ताओं की ओर से
- श्री मोहम्मद खुर्शीद आलम (AAG-12) — राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
MTEjMzY5IzIwMTkjMSNO-mZb371YwWLc=
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