निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महिला ठेकेदार की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने अपने सड़क निर्माण अनुबंध की समाप्ति, ₹37,18,618 की वसूली के आदेश, और बचे हुए कार्य के पुनः टेंडर को चुनौती दी थी। यह मामला बिहार के कटिहार ज़िले में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (PMGSY) के अंतर्गत सड़क निर्माण से जुड़ा था।
याचिकाकर्ता को ललियाही चौक से पेखा तक सड़क निर्माण का कार्य 2018-19 में मिला था। विभाग ने 01.12.2020 को यह कहते हुए उनका अनुबंध रद्द कर दिया कि निर्धारित समयसीमा में काम पूरा नहीं हुआ। इसके बाद विभाग ने ₹37 लाख से अधिक की राशि की वसूली और ब्लैकलिस्टिंग की भी अनुशंसा की।
याचिकाकर्ता का मुख्य तर्क था:
- उन्हें अनुबंध समाप्ति से पहले कोई कारण बताओ नोटिस (शो-कॉज़ नोटिस) नहीं दिया गया।
- कार्य में देरी उनके नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों जैसे भूमि विवाद, बाढ़ और कोविड महामारी के कारण हुई।
- अब वह कार्य पूरा करने को तैयार हैं, जैसे अन्य ठेकेदारों को समय विस्तार दिया गया।
पूर्व में न्यायालय ने यह स्पष्ट करने को कहा था कि क्या याचिकाकर्ता को शो-कॉज़ नोटिस मिला था। इसके जवाब में विभाग ने 15.02.2020 की स्पीड पोस्ट की रसीद प्रस्तुत की।
इन तथ्यों की समीक्षा के बाद, न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता को नोटिस भेजा गया था और उन्होंने इसे प्राप्त किया। अतः यह कहना कि कार्रवाई बिना नोटिस के हुई, स्वीकार नहीं किया गया।
इस आधार पर, न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी। हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता चाहे तो अनुबंध के क्लॉज़ 25 के तहत मध्यस्थता (arbitration) का सहारा ले सकती हैं।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला सरकारी टेंडरों में अनुबंध के पालन की गंभीरता को दर्शाता है। ठेकेदारों को यह समझना होगा कि यदि वे समय पर कार्य पूरा नहीं करते, तो विभाग अनुबंध समाप्त करने और हर्जाने की मांग करने के लिए अधिकृत होता है — बशर्ते यह प्रक्रिया नियमों के अनुसार हो।
सरकारी विभागों के लिए भी यह निर्णय पुष्टि करता है कि जब तक शो-कॉज़ नोटिस उचित तरीके से भेजा गया हो, विभाग कार्य समाप्त कर पुनः निविदा आमंत्रित कर सकते हैं।
इस निर्णय का एक संतुलित पहलू यह भी है कि कोर्ट ने ठेकेदार के मध्यस्थता का अधिकार सुरक्षित रखा — जिससे विवादों को कानूनी प्रक्रिया से बाहर हल करने का रास्ता खुला रहता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- मुद्दा: क्या अनुबंध समाप्ति बिना नोटिस के की गई?
- निर्णय: नहीं, विभाग ने नोटिस भेजा था, जिसके प्रमाण रिकॉर्ड पर हैं।
- मुद्दा: क्या न्यायालय को दोबारा निविदा (re-tender) प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना चाहिए?
- निर्णय: नहीं, विभाग की कार्रवाई वैध थी।
- मुद्दा: क्या ठेकेदार के पास अन्य उपाय शेष हैं?
- निर्णय: हां, ठेकेदार अनुबंध के क्लॉज़ 25 के तहत मध्यस्थता का सहारा ले सकती हैं।
मामले का शीर्षक
Pallavi Kumari vs. The State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 15327 of 2021
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथ्री
माननीय श्री न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री विजय कुमार सिंह (याचिकाकर्ता की ओर से)
- श्री अजय, सरकारी अधिवक्ता (राज्य की ओर से)
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