निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 10 मार्च 2021 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि सहायक सरकारी अधिवक्ता (Assistant Government Pleader – AGP) की नियुक्ति स्थायी नहीं होती, बल्कि यह केवल अनुबंध (contractual) और अवधि आधारित (tenure-based) होती है।
यह मामला दो अधिवक्ताओं से जुड़ा था जिन्होंने राज्य सरकार के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग और विधि विभाग ने 24 सितंबर 2020 और 1 अक्टूबर 2020 को जारी पत्रों द्वारा पुराने पैनल (panel) को समाप्त कर नया पैनल बनाने का निर्देश दिया था।
इन याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति 22 फरवरी 2012 को सहायक सरकारी अधिवक्ता के रूप में की गई थी। उस आदेश में यह भी स्पष्ट लिखा था कि उनकी नियुक्ति तीन वर्षों के लिए होगी और वे एक निश्चित मानदेय (fixed fee) पर काम करेंगे। उनकी नियुक्ति की अवधि 22 फरवरी 2015 को समाप्त हो गई थी, लेकिन सरकार ने नई पैनल की प्रक्रिया पूरी नहीं होने के कारण समय-समय पर उनका कार्यकाल बढ़ाया, जो अंततः 31 मार्च 2020 तक चला।
सरकार ने 2015 और फिर 2018 में नये अधिवक्ताओं की नियुक्ति के लिए विज्ञापन प्रकाशित किए, लेकिन किसी कारणवश प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी। अंततः 2 जनवरी 2021 को सरकार ने नया विज्ञापन जारी कर नया पैनल बनाने की प्रक्रिया शुरू की।
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि वे लंबे समय से सरकार की ओर से मुकदमे लड़ रहे हैं और उन्हें बिना किसी कारण हटा देना मनमाना और अन्यायपूर्ण है। उन्होंने कहा कि उनका कार्यकाल बढ़ाया जाना चाहिए था, क्योंकि वे वर्षों से राज्य के हित में काम कर रहे हैं।
न्यायालय का मत:
माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह ने यह स्पष्ट किया कि सहायक सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति पूर्णतः अनुबंध आधारित होती है। यह सरकारी नौकरी (civil post) नहीं है, इसलिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत मिलने वाला संरक्षण (protection) उन पर लागू नहीं होता।
न्यायालय ने अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले State of U.P. vs. U.P. State Law Officers’ Association (1994) 2 SCC 204 का विस्तृत उल्लेख किया।
सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले में कहा था कि सरकारी वकील और सरकार के बीच का संबंध नियोक्ता-कर्मचारी (employer-employee) का नहीं होता, बल्कि यह एक पेशेवर अनुबंध (professional contract) होता है। जब सरकार किसी अधिवक्ता को अपने मामलों के लिए नियुक्त करती है, तो यह केवल एक पेशेवर सेवा होती है। सरकार यदि चाहे तो किसी भी समय इस अनुबंध को समाप्त कर सकती है।
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि सरकारी वकीलों की नियुक्ति में पारदर्शिता और योग्यता का ध्यान रखा जाना चाहिए, परंतु जो अधिवक्ता किसी अनियमित या अस्थायी प्रक्रिया से नियुक्त हुए हैं, वे यह दावा नहीं कर सकते कि उन्हें हमेशा के लिए रखा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था:
“जो पिछला दरवाजा से आए हैं, उन्हें उसी दरवाजे से जाना होगा।”
पटना उच्च न्यायालय ने इस सिद्धांत को अपनाते हुए कहा कि सरकार को यह पूरा अधिकार है कि वह अपने वकीलों का पैनल बदल सके या नया बना सके। पुराने वकीलों को इस बात का कोई अधिकार नहीं है कि उन्हें स्वतः दोबारा रखा जाए।
अंत में न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, इसलिए उन्हें जारी रखना कानूनन आवश्यक नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने उन्हें यह स्वतंत्रता दी कि वे सरकार द्वारा जारी नए विज्ञापन (जनवरी 2021) में दोबारा आवेदन कर सकते हैं।
इस प्रकार, यह निर्णय इस सिद्धांत को दोहराता है कि सरकारी अधिवक्ता सरकारी सेवक नहीं होते, और उनकी नियुक्ति केवल अवधि तक सीमित होती है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
सरकारी अधिवक्ताओं के लिए:
यह फैसला बताता है कि सहायक सरकारी अधिवक्ता की नियुक्ति स्थायी नौकरी नहीं है। वे अनुबंध के आधार पर पेशेवर सेवा देते हैं। कार्यकाल समाप्त होने पर उन्हें स्वतः विस्तार या पुनर्नियुक्ति का अधिकार नहीं है।
राज्य सरकार के लिए:
यह निर्णय सरकार को अपने कानूनी पैनल को समय-समय पर सुधारने और पारदर्शिता से चयन करने की स्वतंत्रता देता है। साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि योग्य और सक्षम अधिवक्ताओं को अवसर मिले।
न्याय प्रणाली के लिए:
यह फैसला वकीलों की पेशेवर स्वतंत्रता को भी बनाए रखता है। यदि वकील को सरकारी सेवक माना जाए, तो उसकी पेशेवर निष्पक्षता पर असर पड़ सकता है। यह निर्णय वकालत को सेवा नहीं, बल्कि पेशे के रूप में पहचान देता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या सहायक सरकारी अधिवक्ता को सरकारी कर्मचारी माना जा सकता है?
❌ नहीं। वे अनुच्छेद 311 के अंतर्गत नहीं आते क्योंकि वे केवल अनुबंध पर कार्यरत हैं। - क्या कार्यकाल समाप्त होने के बाद उन्हें जारी रखने का अधिकार है?
❌ नहीं। उनकी नियुक्ति केवल निश्चित अवधि के लिए होती है, इसलिए स्वचालित विस्तार नहीं हो सकता। - क्या सरकार का पुराना पैनल समाप्त कर नया बनाना मनमाना कदम था?
✔ नहीं। सरकार को ऐसा करने का अधिकार है, बशर्ते चयन प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी हो। - सरकार और अधिवक्ताओं के बीच क्या कानूनी संबंध होता है?
✔ यह एक पेशेवर अनुबंध (Professional Contract) होता है, न कि सरकारी नौकरी का संबंध।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- State of Uttar Pradesh vs. U.P. State Law Officers’ Association (1994) 2 SCC 204 — इस निर्णय का उल्लेख करते हुए कहा गया कि सरकारी अधिवक्ता की नियुक्ति केवल अनुबंध आधारित पेशेवर सेवा है।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- State of U.P. vs. U.P. State Law Officers’ Association (1994) 2 SCC 204 — अदालत ने इसी पर भरोसा करते हुए कहा कि ऐसा कोई स्थायी अधिकार अधिवक्ताओं को प्राप्त नहीं होता।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 1518 of 2021
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 386
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संजय सिंह, श्री रत्नेश्वर प्रसाद
- राज्य की ओर से: श्री ललित किशोर, महाधिवक्ता (Advocate General)
निर्णय का लिंक
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