निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद से जुड़ा है। पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 के तहत “सहजीवन की पुनःस्थापना” (Restitution of Conjugal Rights) का वाद दायर किया था। पटना उच्च न्यायालय ने 28 सितम्बर 2020 को दिए गए अपने निर्णय में परिवार न्यायालय, भागलपुर के आदेश को सही ठहराया और पति की अपील खारिज कर दी।
मामले की पृष्ठभूमि:
- विवाह जून 1997 में हिंदू रीति-रिवाजों से हुआ।
- मार्च 1998 में दंपति को एक पुत्री हुई।
- समय के साथ संबंध बिगड़ने लगे।
पति ने वर्ष 2005 में विवाह निरस्तीकरण (Marriage Case No. 17/2005) का वाद दायर किया, यह आरोप लगाते हुए कि पत्नी मानसिक रूप से अस्वस्थ है और यह तथ्य विवाह के समय छिपाया गया।
पत्नी ने उसी वर्ष वैवाहिक वाद संख्या 48/2005 दाखिल किया, जिसमें कहा गया कि पति ने उसके साथ क्रूरता की और उसे बिना कारण छोड़ दिया। इसलिए वह सहजीवन की पुनःस्थापना चाहती है।
परिवार न्यायालय का पहला फैसला (2006):
- पति का विवाह निरस्तीकरण वाद खारिज हुआ क्योंकि चिकित्सकीय रिपोर्टों में पत्नी को सामान्य पाया गया।
- लेकिन उसी अदालत ने पत्नी का सहजीवन वाद भी खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि पति को अलग रहने का पर्याप्त कारण था।
पत्नी की अपील (M.A. No. 741/2009):
- पटना उच्च न्यायालय ने 2014 में कहा कि यह विरोधाभासी है कि एक ओर विवाह निरस्तीकरण खारिज कर दिया जाए और दूसरी ओर पत्नी का सहजीवन वाद भी खारिज कर दिया जाए।
- इसलिए मामला पुनः विचार हेतु परिवार न्यायालय को वापस भेजा गया।
पुनः सुनवाई के बाद परिवार न्यायालय (2015):
- पाया कि पति ने जानबूझकर पत्नी से दूरी बना ली है।
- पत्नी मानसिक रूप से अस्वस्थ नहीं है।
- पत्नी आज भी पति के साथ रहने के लिए तैयार है।
- इस आधार पर सहजीवन का वाद मंजूर किया गया।
पति ने इस आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में Miscellaneous Appeal No. 235/2015 दायर किया।
पटना उच्च न्यायालय का फैसला (2020):
- न्यायालय ने कहा कि धारा 9 के अनुसार यदि कोई पति या पत्नी बिना उचित कारण के दूसरे का साथ छोड़ देता है, तो दूसरा पक्ष सहजीवन की पुनःस्थापना का दावा कर सकता है।
- यहां यह सिद्ध हो गया कि पति ने बिना उचित कारण पत्नी से दूरी बनाई।
- पति का एकमात्र तर्क था कि पत्नी मानसिक रूप से अस्वस्थ है, लेकिन प्रमाणपत्र और गवाही से यह साबित नहीं हुआ।
- RINPAS, रांची की रिपोर्ट और अन्य चिकित्सकीय दस्तावेजों ने पत्नी को सामान्य बताया।
- पति पहले ही विवाह निरस्तीकरण का वाद हार चुका था और उसने उसे चुनौती भी नहीं दी।
- ऐसे में पति के पास “उचित कारण” सिद्ध करने के लिए कोई ठोस आधार नहीं था।
न्यायालय ने कहा कि पत्नी अपने वैवाहिक घर लौटना चाहती है और सहजीवन के लिए तैयार है, इसलिए उसके पक्ष में आदेश सही है। पति की अपील खारिज कर दी गई।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- सहजीवन का अधिकार मजबूत हुआ: यह फैसला बताता है कि यदि पति या पत्नी बिना ठोस कारण के अलग हो जाते हैं, तो दूसरा पक्ष अदालत से साथ रहने का आदेश प्राप्त कर सकता है।
- सबूत की जिम्मेदारी: जो पक्ष अलग हो रहा है, उसी पर यह जिम्मेदारी है कि वह “उचित कारण” को अदालत में प्रमाणित करे।
- विरोधाभासी आदेश स्वीकार्य नहीं: यदि विवाह निरस्तीकरण खारिज हो चुका है, तो बिना कारण सहजीवन से इंकार करना कानूनी रूप से असंगत माना जाएगा।
- व्यावहारिक संदेश: पति-पत्नी दोनों से अपेक्षा की जाती है कि वे एक-दूसरे के साथ रहने की कोशिश करें। केवल आरोप लगाना काफी नहीं है; आरोप को साक्ष्यों से साबित करना पड़ता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या पति ने पत्नी का साथ बिना उचित कारण छोड़ा?
✅ हाँ, पति ने कोई ठोस वजह साबित नहीं की। - क्या पत्नी मानसिक रूप से अस्वस्थ थी?
❌ नहीं, चिकित्सकीय प्रमाणपत्र और गवाही से सिद्ध हुआ कि पत्नी सामान्य है। - क्या परिवार न्यायालय का सहजीवन आदेश सही था?
✅ हाँ, उच्च न्यायालय ने इसे बरकरार रखा।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- पति ने CMC, वेल्लोर की रिपोर्ट का हवाला दिया, लेकिन उसे प्रमाणित नहीं कर पाया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- पटना उच्च न्यायालय का M.A. No. 741/2009 (दिनांक 11.04.2014), जिसमें मामला पुनः सुनवाई के लिए भेजा गया था।
मामले का शीर्षक
Santosh Kumar Gupta @ Bhola Babu बनाम Radha Devi
केस नंबर
Miscellaneous Appeal No. 235 of 2015
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 15
न्यायमूर्ति गण का नाम
- माननीय श्री न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह
- माननीय श्री न्यायमूर्ति अरविन्द श्रीवास्तव
(मौखिक निर्णय दिनांक 28.09.2020, माननीय श्री न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह द्वारा)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अपीलकर्ता (पति) की ओर से: श्री सुनील कुमार, अधिवक्ता
- प्रतिवादी (पत्नी) की ओर से: श्री मृ्त्युंजय Pd. सिंह, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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