निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश दिया, जिसमें एक विश्वविद्यालय के अनुबंध पर कार्यरत कर्मचारी द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए विश्वविद्यालय को उसका बकाया वेतन जारी करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी कर्मचारी के वेतन को उसके जीवनसाथी या किसी अन्य व्यक्ति के बकाया देनदारियों के आधार पर रोका नहीं जा सकता।
मामला इस प्रकार था: याचिकाकर्ता विश्वविद्यालय में लैब असिस्टेंट के रूप में अल्पकालिक अनुबंध पर कार्यरत थीं। मई 2019 में उनका अनुबंध समाप्त कर दिया गया। उस समय उनका अप्रैल 2019 का पूरा वेतन और मई 2019 के 14 दिनों का वेतन (कुल ₹68,053) लंबित था। जब उन्होंने ‘नो ड्यूज़ सर्टिफिकेट’ (No Dues Certificate) पूरा किया, तो सभी विभागों ने हस्ताक्षर कर दिए। लेकिन वित्त विभाग ने इसमें टिप्पणी जोड़ दी कि याचिकाकर्ता के पति (जो उसी विश्वविद्यालय में अनुबंधित शिक्षक थे) के नाम पर बिजली और आवास से संबंधित बकाया है।
विश्वविद्यालय ने इसी आधार पर याचिकाकर्ता का बकाया वेतन और स्वच्छ ‘नो ड्यूज़ सर्टिफिकेट’ जारी करने से इंकार कर दिया। याचिकाकर्ता ने ईमेल, पत्र और लीगल नोटिस भेजकर बार-बार अपने वेतन की मांग की, लेकिन विश्वविद्यालय ने कोई ठोस कारण दर्ज नहीं किया और भुगतान टालता रहा।
न्यायालय ने कहा कि:
- किसी कर्मचारी का अर्जित वेतन रोका नहीं जा सकता जब तक कि वह स्वयं किसी देनदारी का प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार न हो।
- अनुबंध कर्मचारी के वेतन को उसके पति या परिवार के नाम पर बने किसी बकाया के कारण रोका जाना पूरी तरह अनुचित और अवैध है।
- प्रशासनिक संस्थान को कारणयुक्त आदेश देना अनिवार्य है, खासकर तब जब निर्णय से नागरिक अधिकार प्रभावित हों।
इस आधार पर पटना हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि वह तीन महीने के भीतर ₹68,053 की राशि 4% वार्षिक ब्याज के साथ याचिकाकर्ता को अदा करे और बिना किसी टिप्पणी वाला ‘नो ड्यूज़ सर्टिफिकेट’ जारी करे।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- कर्मचारियों के लिए: यह फैसला एक बड़ा संदेश है कि वेतन को किसी भी बहाने से नहीं रोका जा सकता। भले ही कर्मचारी अनुबंध पर ही क्यों न हो, उसका अर्जित वेतन उसका अधिकार है।
- विश्वविद्यालयों व सरकारी संस्थानों के लिए: यह आदेश याद दिलाता है कि पारदर्शिता और न्याय के सिद्धांतों का पालन जरूरी है। कर्मचारियों की देनदारी स्पष्ट और उनके नाम पर ही होनी चाहिए।
- वित्त और प्रशासनिक विभागों के लिए: ‘नो ड्यूज़ सर्टिफिकेट’ में केवल वही बकाया दिखाया जा सकता है, जिसके लिए संबंधित कर्मचारी सीधे जिम्मेदार हो।
- सार्वजनिक नीतियों के लिए: संस्थानों को साफ नीतियां बनानी चाहिए, जिनमें यह तय हो कि किन परिस्थितियों में वेतन रोका जा सकता है और किन परिस्थितियों में नहीं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या किसी कर्मचारी का वेतन उसके पति के नाम पर बने बकाए की वजह से रोका जा सकता है?
✦ न्यायालय ने कहा — नहीं। यह गैरकानूनी है। - क्या ‘नो ड्यूज़ सर्टिफिकेट’ में किसी अन्य व्यक्ति का बकाया दिखाकर कर्मचारी को रोकना उचित है?
✦ न्यायालय ने कहा — नहीं। यह कर्मचारी के अधिकारों का हनन है। - क्या प्रशासनिक निर्णयों में कारण दर्ज करना आवश्यक है?
✦ न्यायालय ने कहा — हां। सुप्रीम कोर्ट के फैसले S.N. Mukherjee v. Union of India (1990) का हवाला देते हुए बताया गया कि बिना कारण के निर्णय अमान्य है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- S.N. Mukherjee v. Union of India, (1990) 4 SCC 594
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- S.N. Mukherjee v. Union of India, (1990) 4 SCC 594
मामले का शीर्षक
- Veena Jha Vs. Nalanda University
केस नंबर
- Civil Writ Jurisdiction Case No. 3169 of 2020
उद्धरण (Citation)
- 2025 (1) PLJR 328
माननीय न्यायमूर्ति गण का नाम
- माननीय श्री न्यायमूर्ति अंजनी कुमार शरण (निर्णय दिनांक 10.12.2024)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: अधिवक्ताओं की टीम
- प्रतिवादी विश्वविद्यालय की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता व सहयोगी अधिवक्ता
(नाम गोपनीय रखे गए हैं)
निर्णय का लिंक
MTUjMzE2OSMyMDIwIzEjTg==-YD1VAad7H3c=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।