निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने वर्ष 2021 में एक महत्वपूर्ण मौखिक निर्णय दिया जिसमें यह तय किया गया कि अस्पताल की रोगी कल्याण समिति (Patient Welfare Committee) किसी संविदा कर्मचारी को केवल उस परिपत्र के आधार पर सेवा विस्तार देने से मना नहीं कर सकती जो केवल दैनिक मजदूरी पर नियुक्त कर्मचारियों पर लागू होता है।
इस मामले में याचिकाकर्ता एक ड्रेसर के पद पर संविदा पर कार्यरत था। उसकी नियुक्ति अगस्त 2011 में एक वर्ष के लिए हुई थी, जिसे बाद में कई बार बढ़ाया गया और वह 2018 तक कार्यरत रहा। सितम्बर 2018 में रोगी कल्याण समिति के सचिव ने पत्र जारी कर बताया कि बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति का अप्रैल 2018 का पत्र मिलने के बाद समिति ने सेवा विस्तार नहीं देने और तत्काल प्रभाव से उसकी सेवा समाप्त करने का निर्णय लिया है।
याचिकाकर्ता ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। उसका तर्क था कि राज्य स्वास्थ्य समिति का अप्रैल 2018 का परिपत्र केवल दैनिक मजदूरी वाले कर्मियों पर लागू होता है, जबकि वह संविदा पर था। इसलिए समिति ने गलत आधार पर उसका विस्तार रोका।
प्रतिवादियों का कहना था कि संविदा अवधि समाप्त हो चुकी थी और ऐसे में याचिकाकर्ता के पास सेवा विस्तार का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने दस्तावेज़ों का अध्ययन कर यह पाया कि अप्रैल 2018 का परिपत्र वास्तव में केवल दैनिक मजदूरी पर नियुक्त लोगों के लिए था और इसका संविदा कर्मचारियों से कोई संबंध नहीं था। चूंकि समिति ने इसी परिपत्र के आधार पर सेवा विस्तार से इनकार किया था, इसलिए उसका आदेश कानूनी रूप से टिक नहीं सकता।
इसलिए कोर्ट ने दिनांक 14 सितम्बर 2018 का आदेश रद्द कर दिया। हालांकि कोर्ट ने सीधे सेवा बहाली का आदेश नहीं दिया। इसके बजाय कोर्ट ने मामले को सिविल सर्जन (जोकि जिला स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष भी हैं) और रोगी कल्याण समिति के सचिव को भेज दिया ताकि वे याचिकाकर्ता के मामले पर गुण-दोष के आधार पर तीन माह के भीतर पुनर्विचार करें और नया निर्णय लें।
यह फैसला इस सिद्धांत को मजबूत करता है कि प्रशासनिक निर्णय हमेशा सही नियम और नीतियों पर आधारित होने चाहिए। गलत परिपत्र या नीति के आधार पर किसी का अधिकार छीना नहीं जा सकता।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- सरकारी संस्थाओं के लिए संदेश: रोगी कल्याण समिति और जिला स्वास्थ्य समिति जैसे निकायों को यह ध्यान रखना होगा कि वे सही नियम लागू करें। यदि परिपत्र केवल दैनिक मजदूरों पर लागू है तो उसे संविदा कर्मचारियों पर लागू करना अनुचित होगा।
- संविदा कर्मचारियों के लिए राहत: भले ही संविदा समाप्त होने पर स्वतः विस्तार का अधिकार नहीं होता, लेकिन निर्णय लेने की प्रक्रिया निष्पक्ष और वैधानिक होनी चाहिए। गलत आधार पर सेवा समाप्त करने का आदेश अदालत में चुनौती देकर रद्द कराया जा सकता है।
- स्वास्थ्य सेवाओं पर असर: अस्पतालों में ड्रेसर जैसे सहयोगी पदों की स्थिरता सीधे रोगियों की सेवा से जुड़ी है। बार-बार गलत आधार पर कर्मचारियों को हटाने से स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान आ सकता है।
- प्रशासनिक पारदर्शिता: यह फैसला प्रशासन को प्रेरित करता है कि वे हर आदेश में सही कारण दर्ज करें और श्रेणी-विशेष नियम ही लागू करें।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या दैनिक मजदूरी परिपत्र संविदा कर्मचारियों पर लागू हो सकता है?
- कोर्ट का निर्णय: नहीं। अप्रैल 2018 का परिपत्र केवल दैनिक मजदूरों के लिए था। संविदा कर्मचारी पर इसे लागू करना गलत है।
- क्या कोर्ट को सीधा सेवा विस्तार का आदेश देना चाहिए था?
- कोर्ट का निर्णय: नहीं। कोर्ट ने पुनः विचार के लिए मामला जिला स्वास्थ्य समिति व रोगी कल्याण समिति को भेजा।
- क्या संविदा समाप्त होने से याचिका स्वतः समाप्त हो जाती है?
- कोर्ट की दलील: संविदा समाप्त होने पर विस्तार का अधिकार भले न हो, लेकिन प्रशासन का निर्णय वैधानिक होना चाहिए। यदि गलत नीति के आधार पर आदेश दिया गया हो तो अदालत उसे रद्द कर सकती है।
मामले का शीर्षक
Uday Kumar v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 20523 of 2018
उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 744
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायाधीश पार्थ सारथि
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री प्रशांत सिन्हा, अधिवक्ता; श्री बाबुआ झा, अधिवक्ता
- प्रतिवादियों (राज्य/प्रशासन) की ओर से: श्री एस.डी. संजय, अधिवक्ता
- प्रतिवादी संख्या 3 की ओर से: श्री के.के. सिन्हा, अधिवक्ता
- राज्य स्वास्थ्य समिति की ओर से: श्री शशि शेखर, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
MTUjMjA1MjMjMjAxOCMxI04=-qcBnx8qMdIo=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।