निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें बिहार सरकार द्वारा बनाए गए बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड (संशोधन) अधिनियम, 2024 को सही ठहराया गया। इस संशोधन के तहत पहले से कार्यरत संस्कृत शिक्षा बोर्ड को भंग कर दिया गया और सरकार को यह अधिकार दे दिया गया कि यदि जनहित में ज़रूरी समझे तो वह किसी भी समय बोर्ड को भंग कर सकती है।
याचिका दायर करने वाले लोग वही थे, जो उस समय बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्य थे। उनका कहना था कि उनका कार्यकाल तीन साल का था और सरकार ने बीच में ही उनका कार्यकाल समाप्त कर दिया। उनके अनुसार यह कदम राजनीतिक और मनमाना था, जिससे संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन हुआ।
लेकिन कोर्ट ने कहा कि किसी भी कानून को असंवैधानिक साबित करना बहुत कठिन होता है। जब तक यह साफ न दिखे कि सरकार के पास कानून बनाने की शक्ति नहीं थी, या कानून सीधे संविधान के खिलाफ है, तब तक कानून सही माना जाएगा। इस मामले में सरकार के पास कानून बनाने की पूरी शक्ति थी और संशोधन का उद्देश्य भी स्पष्ट था—संस्कृत शिक्षा को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के अनुरूप बनाना और आधुनिक शिक्षा से जोड़ना।
संशोधन में यह भी प्रावधान किया गया कि:
- बोर्ड भंग होने के बाद सरकार एक सचिव स्तर के अधिकारी को प्रशासक बनाएगी,
- तीन महीने के भीतर विशेषज्ञ समिति बनेगी जो सुधार की सिफारिश देगी,
- और उसी समय सीमा में नया बोर्ड गठित करना अनिवार्य होगा।
इस तरह कोर्ट ने माना कि यह बदलाव स्थायी न होकर अस्थायी है, और इसका मकसद सुधार करना है। केवल इस वजह से कि वर्तमान अध्यक्ष और सदस्य अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए, संशोधन को असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला आम जनता के लिए यह संदेश देता है कि जब सरकार शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाना चाहती है, तो उसके लिए कानून में बदलाव किया जा सकता है। किसी बोर्ड या निकाय के वर्तमान पदाधिकारी का कार्यकाल व्यक्तिगत अधिकार नहीं होता जिसे हर हाल में पूरा होना चाहिए।
सरकार के लिए यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे यह स्पष्ट हो गया कि अगर कोई संशोधन जनहित और नीति सुधार के लिए किया जाता है, और उसमें उचित प्रावधान (जैसे समयबद्ध पुनर्गठन) दिए गए हों, तो कोर्ट उसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा।
आगे चलकर बिहार में शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में इसी तरह के ढांचागत सुधार इसी फैसले की मिसाल से किए जा सकते हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या बोर्ड को कार्यकाल समाप्त होने से पहले भंग करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है?
❌ कोर्ट ने कहा नहीं। बोर्ड को भंग करने का कदम नीति और जनहित से जुड़ा है। - क्या सचिव स्तर के प्रशासक की नियुक्ति से बोर्ड के उद्देश्य पर असर पड़ेगा?
❌ कोर्ट ने माना कि यह अस्थायी व्यवस्था है और जल्द ही नया बोर्ड गठित होना है, इसलिए कोई समस्या नहीं। - क्या केवल कार्यकाल समाप्त होना याचिकाकर्ताओं का अधिकार है?
❌ कोर्ट ने कहा कि यह व्यक्तिगत अधिकार नहीं है। जब कानून में संशोधन किया जाता है तो पद स्वतः समाप्त हो सकते हैं। - क्या पहले दिए गए फैसले (जैसे नगर निकाय से जुड़े मामलों) का इसमें उपयोग होगा?
❌ कोर्ट ने कहा कि वे फैसले स्थानीय स्वशासन से जुड़े थे, जबकि यहां शिक्षा सुधार का मुद्दा है, इसलिए वह मिसाल लागू नहीं होती।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Shayara Bano v. Union of India, (2017) 9 SCC 1
- State of A.P. v. McDowell & Co., (1996) 3 SCC 709
- Ajay Hasia v. Khalid Mujib Sehravardi, (1981) 1 SCC 722
- K.R. Lakshmanan v. State of Tamil Nadu, (1996) 2 SCC 226
- Mohd. Arif v. Registrar, Supreme Court of India, (2014) 9 SCC 737
- Maneka Gandhi v. Union of India, (1978) 1 SCC 248
- Ashoka Kumar Thakur v. Union of India, (2008) 6 SCC 1
- Dr. Ashish Kumar Sinha v. Union of India, 2022(6) BLJ 369 (Patna)
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Shayara Bano v. Union of India, (2017) 9 SCC 1
- Ashoka Kumar Thakur v. Union of India, (2008) 6 SCC 1
- Maneka Gandhi v. Union of India, (1978) 1 SCC 248
- Ajay Hasia v. Khalid Mujib Sehravardi, (1981) 1 SCC 722
- K.R. Lakshmanan v. State of Tamil Nadu, (1996) 2 SCC 226
- Mohd. Arif v. Registrar, Supreme Court of India, (2014) 9 SCC 737
मामले का शीर्षक
बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष एवं सदस्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 7413 of 2024
उद्धरण (Citation)
2025 (1) PLJR 269
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन एवं माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री वाई.वी. गिरी (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री आशीष गिरी, श्री सौनिल कुमार झा, सुश्री रिया गिरी
- बिहार राज्य की ओर से: श्री पी.के. शाही (महाधिवक्ता), श्री मनीष धरी सिंह (एसी टू एजी)
- भारत सरकार की ओर से: श्री राम अनुराग सिंह (केंद्रीय सरकारी अधिवक्ता)
निर्णय का लिंक
MTUjNzQxMyMyMDI0IzEjTg==-loKeTA5yYPY=
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