SARFAESI कानून के तहत जिलाधिकारी की भूमिका को लेकर पटना हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

SARFAESI कानून के तहत जिलाधिकारी की भूमिका को लेकर पटना हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट में यह मामला एक याचिकाकर्ता द्वारा दायर किया गया था, जो एक कंपनी के लिए गारंटर था। याचिकाकर्ता ने अपने मकान की गिरवी संपत्ति की जब्ती और नीलामी को SARFAESI अधिनियम, 2002 के तहत चुनौती दी थी। उनका कहना था कि जिलाधिकारी को बिना सुनवाई के बैंक को संपत्ति सौंपने की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी।

मूल मामला एक बड़े कर्ज से जुड़ा था (लगभग ₹40 करोड़), जो एक प्राइवेट कंपनी को दिया गया था। इस कंपनी ने याचिकाकर्ता की संपत्ति गिरवी रखी थी। जब कंपनी ने भुगतान में चूक की, तो बैंक ने खाता को NPA (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट) घोषित किया और 30 सितंबर 2014 को नोटिस जारी किया।

पहले एक बार याचिकाकर्ता ने 2016 में DRT (Debt Recovery Tribunal) में पुराने नोटिस को चुनौती दी थी, जिसे DRT ने प्रक्रिया में कमी के कारण रद्द कर दिया। लेकिन इसके बाद बैंक ने फिर से 03.12.2016 को कब्जा नोटिस और 30.04.2017 को नीलामी का नोटिस जारी किया। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने सीधे हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी, जबकि उन्हें पहले DRT में ही अपील करनी चाहिए थी।

याचिकाकर्ता का तर्क था कि उन्हें या तो व्यक्तिगत रूप से सुना जाना चाहिए था या जिलाधिकारी को विस्तृत जांच करनी चाहिए थी। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि SARFAESI कानून के अनुसार जिलाधिकारी का काम केवल प्रशासनिक होता है, न कि न्यायिक। वह केवल बैंक द्वारा हलफनामे में दिए गए तथ्यों की पुष्टि करता है, विवाद का फैसला नहीं करता।

इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के पास वैकल्पिक उपाय (DRT में अपील) उपलब्ध था, और सीधे हाई कोर्ट आने का कोई औचित्य नहीं था।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय खासकर उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो बैंकों से कर्ज लेते हैं और अपनी संपत्ति गिरवी रखते हैं। यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अगर भुगतान में चूक होती है तो बैंक वैधानिक प्रक्रिया के तहत संपत्ति जब्त कर सकता है और जिलाधिकारी केवल एक औपचारिक सहायक होता है।

आम जनता के लिए यह सीखने योग्य है कि किसी कानूनी कार्यवाही का विरोध करने से पहले, सही मंच पर अपील करना आवश्यक होता है। सीधे हाई कोर्ट आने से पहले उपलब्ध वैधानिक रास्तों का उपयोग करना चाहिए।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या जिलाधिकारी को सुनवाई का अवसर देना ज़रूरी था?
    ❖ नहीं। जिलाधिकारी केवल तथ्यात्मक सत्यापन करता है, फैसला नहीं।
  • क्या याचिका दायर करने से पहले DRT में अपील करनी चाहिए थी?
    ❖ हां। SARFAESI कानून के अनुसार यही वैधानिक उपाय है।
  • क्या नीलामी और कब्जा प्रक्रिया वैध थी?
    ❖ हां। बैंक ने कानून के अनुसार पूरी प्रक्रिया का पालन किया था।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Keshavlal Khemchand and Sons v. Union of India, (2015) 4 SCC 770
  • Kanaiyalal Lalchand Sachdev v. State of Maharashtra, (2011) 2 SCC 782
  • Standard Chartered Bank v. Noble Kumar, (2013) 9 SCC 620
  • Rakesh Sharma v. State Bank of India (इलाहाबाद हाई कोर्ट)
  • Kumkum Tentiwal v. State of U.P., Writ-C No. 38578 of 2018

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Standard Chartered Bank v. Noble Kumar, (2013) 9 SCC 620
  • Authorized Officer, Indian Bank v. D. Visalakshi, C.A. No. 6295 of 2015
  • Syndicate Bank v. Rajesh Kumar, LPA No. 1475 of 2014, Patna HC
  • United Bank of India v. Satyawati Tondon, (2010) 8 SCC 110
  • Union of India v. Jyoti Prakash Mitter, AIR 1971 SC 1093
  • J. A. Naikastam v. Prothonotary, AIR 2005 SC 1218
  • D.R.A.R.M. Educational Institution v. Educational Appellate Tribunal, AIR 1999 SC 3219

मामले का शीर्षक
Sri Akhouri Gopal v. State of Bihar & Ors.

केस नंबर
CWJC No. 7584 of 2017

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 112

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री अरविंद कुमार झा — याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री मनोज कुमार (GP4) — राज्य की ओर से
  • श्री संतोष कुमार सिंह — बैंक की ओर से

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNzU4NCMyMDE3IzEjTg==-V8yJkZWcuzE=

यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।

Aditya Kumar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News