निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि मान्यता प्राप्त विद्यालयों में कार्यरत क्लर्कों को भी वही संशोधित वेतनमान (₹4000–6000 या इसके समकक्ष ग्रेड पे) दिया जाए, जो पहले से समान पद पर कार्यरत अन्य कर्मचारियों को अदालत के आदेश से मिल चुका है।
यह मामला उन कर्मचारियों से जुड़ा था जिन्हें अब तक कम वेतनमान ₹3050–4590 पर रखा गया था, जबकि दूसरे समान कर्मचारी पहले ही उच्च वेतनमान प्राप्त कर रहे थे। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से यह मांग की कि विभाग द्वारा जारी वह आदेश रद्द किया जाए, जिसमें उन्हें कम वेतनमान में रखा गया है, और उन्हें भी पिछली तिथि से संशोधित वेतनमान और उसके अनुसार वेतन व एरियर दिया जाए।
राज्य सरकार ने यह तर्क दिया कि इस विषय पर दो अलग-अलग खंडपीठ के निर्णय हैं —
- एल.पी.ए. संख्या 167/2016, जिसमें कर्मचारियों के पक्ष में फैसला हुआ था, और
- एल.पी.ए. संख्या 100/2012, जिसमें सरकार के पक्ष में निर्णय था।
इस विरोधाभास को देखते हुए मामला लार्जर बेंच के पास लंबित है, जहाँ सरकार ने सिविल रिव्यू संख्या 236/2019 दाखिल कर रखा है। इसलिए सरकार का कहना था कि अभी नए मामलों में कोई अंतिम राहत नहीं दी जानी चाहिए।
अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद एक संतुलित रुख अपनाया। अदालत ने पाया कि—
- पहले भी कई एकलपीठों ने समान परिस्थितियों में क्लर्कों को उच्च वेतनमान देने का आदेश दिया है।
- राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग और वित्त विभाग ने वर्ष 2023 में पत्र जारी करके कहा था कि एल.पी.ए. 167/2016 के आधार पर लाभ दिया जा सकता है, लेकिन यह सिविल रिव्यू 236/2019 के नतीजे पर निर्भर रहेगा।
- कामूर (भभुआ) के जिलाधिकारी ने भी 8 नवंबर 2023 को एक आदेश जारी करके समान रूप से उच्च वेतनमान लागू किया था, यह कहते हुए कि यह “रिव्यू के परिणाम पर निर्भर” रहेगा।
इन तथ्यों से यह स्पष्ट हुआ कि सरकार स्वयं भी ऐसे मामलों में समान राहत देने की प्रक्रिया अपना रही है। इसलिए, अदालत ने कहा कि अब याचिकाकर्ताओं को राहत देने से इंकार करने का कोई कारण नहीं है।
इसके साथ ही, अदालत ने बिहार राज्य वाद नीति, 2011 की धारा 4(सी)(1) का उल्लेख किया। यह नीति कहती है कि यदि किसी विषय पर पहले ही अदालत निर्णय दे चुकी है, तो सरकार को “समान मामलों” में बिना मुकदमेबाज़ी कराए वही लाभ स्वयं देना चाहिए। अदालत ने कहा कि यह नीति जनता के हित में है और अदालतों पर अनावश्यक बोझ भी कम करती है।
इसलिए अदालत ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ताओं को एल.पी.ए. 167/2016 के अनुरूप उच्च वेतनमान दिया जाए, लेकिन निम्न शर्तों के साथ:
- यह लाभ सिविल रिव्यू संख्या 236/2019 के अंतिम निर्णय पर निर्भर रहेगा।
- प्रत्येक कर्मचारी को यह शपथ-पत्र (undertaking) देना होगा कि यदि राज्य सरकार अंततः मुकदमे में जीतती है, तो वे अतिरिक्त प्राप्त राशि वापस करेंगे।
इस तरह अदालत ने दोनों पक्षों के हितों में संतुलन बनाया — कर्मचारियों को अंतरिम राहत मिली और सरकार के हितों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की गई।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- कर्मचारियों के लिए: यह निर्णय स्पष्ट करता है कि समान परिस्थितियों वाले सभी क्लर्क अब उच्च वेतनमान प्राप्त कर सकते हैं, बशर्ते वे शपथ-पत्र दें। इससे उन्हें वर्षों तक मुकदमेबाज़ी से बचत होगी और समय पर राहत मिलेगी।
- सरकार के लिए: अदालत ने सरकारी नीति को मजबूत किया, जिससे “समान मामलों” में स्व-विवेक से राहत दी जा सके। इससे न केवल अदालतों का भार कम होगा, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता भी बढ़ेगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- मुद्दा 1: क्या मान्यता प्राप्त विद्यालयों के क्लर्कों को भी ₹4000–6000 का संशोधित वेतनमान मिलना चाहिए?
निर्णय: हाँ, एल.पी.ए. 167/2016 के अनुरूप राहत दी जाएगी। - मुद्दा 2: लंबित सिविल रिव्यू के रहते राहत देना उचित है या नहीं?
निर्णय: राहत दी जा सकती है, लेकिन यह रिव्यू के अंतिम नतीजे पर निर्भर होगी। - मुद्दा 3: क्या बिहार राज्य वाद नीति, 2011 इस मामले में लागू होती है?
निर्णय: हाँ, समान मामलों में नीति के अनुसार लाभ दिया जाना चाहिए ताकि बार-बार मुकदमे न हों।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- एल.पी.ए. संख्या 167/2016 (कर्मचारियों के पक्ष में)
- सी.डब्ल्यू.जेे.सी. संख्या 188/2021, दिनांक 09.07.2021
- एल.पी.ए. संख्या 100/2012 (राज्य के पक्ष में)
- सिविल रिव्यू संख्या 236/2019 (लार्जर बेंच के समक्ष लंबित)
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- एल.पी.ए. संख्या 167/2016 (जिसके आधार पर राहत दी गई)
- बिहार राज्य वाद नीति, 2011 की धारा 4(सी)(1)
मामले का शीर्षक
Kaushal Kishor Singh & Ors. v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 3819 of 2024 (निर्णय दिनांक 15.05.2024)
उद्धरण (Citation)
2025 (1) PLJR 588
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति अंजनी कुमार शरण (एकलपीठ)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ताओं की ओर से: श्री अमरेश कुमार सिंह
- राज्य सरकार की ओर से: श्री मनोज कुमार अंबष्ठा (SC-26) एवं श्री दिवित विनोद (AC to SC-26)
निर्णय का लिंक
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