निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि सिविल न्यायालय केवल उन्हीं मामलों को धारा 113 सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के तहत हाईकोर्ट को रेफर कर सकते हैं, जो किसी कानून, अध्यादेश या विनियमन की वैधता से संबंधित हों। न्यायालय ने यह कहा कि न्यायिक आदेशों की व्याख्या के लिए किया गया ऐसा रेफरेंस पूरी तरह से अवैध है।
यह मामला शिवहर जिले के सिविल जज (वरिष्ठ मंडल) द्वारा भेजे गए सिविल रेफरेंस संख्या 1/2017 से जुड़ा है, जो विवादित मुकदमा संख्या 65/1993 में आया था। निचली अदालत ने एक पुराने डिक्री (10.07.1973) और माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसी पक्षों के बीच दिए गए आदेश (10.09.1993) की व्याख्या हेतु यह रेफरेंस हाईकोर्ट को भेजा था।
हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश केवल यह कहता है कि याचिकाकर्ता उचित मंच पर उपाय कर सकते हैं। इसमें कोई संवैधानिक सवाल नहीं है, इसलिए इसे धारा 113 CPC के तहत रेफर नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने Banarsi Yadav v. Krishna Chandra Dass (AIR 1972 Pat 49) और State of Jharkhand v. State of Bihar (2015) 2 SCC 431 जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि जब तक कोई मामला किसी कानून की वैधता को चुनौती नहीं देता, तब तक रेफरेंस करना संभव नहीं है।
इसलिए उच्च न्यायालय ने रेफरेंस को अस्वीकार करते हुए इसे निचली अदालत को लौटा दिया और निर्देश दिया कि तीन माह के भीतर लंबित कार्यवाही निपटा दी जाए। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय ने इस फैसले में किसी पक्ष के दावे पर कोई राय नहीं दी है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय निचली अदालतों और वकीलों के लिए बहुत मार्गदर्शक है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि न्यायालय किसी डिक्री या सुप्रीम कोर्ट के आदेश की व्याख्या करने के लिए हाईकोर्ट को रेफरेंस नहीं भेज सकते। इसके लिए उचित अपील या पुनर्विचार याचिका का मार्ग अपनाना आवश्यक है।
इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि न्यायिक प्रक्रिया अनावश्यक रूप से लंबी न हो और वादियों को शीघ्र न्याय मिल सके। इस केस में भी 1973 से लंबित डिक्री आज तक निष्पादित नहीं हो पाई थी, जिससे यह और स्पष्ट होता है कि न्याय में देरी, न्याय से वंचित होना है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या सिविल जज धारा 113 CPC के तहत पुराने डिक्री या सुप्रीम कोर्ट के आदेश की व्याख्या हेतु रेफरेंस भेज सकते हैं?
- न्यायालय का निर्णय: नहीं, यह प्रावधान के बाहर है।
- क्या यह मामला किसी कानून की वैधता से जुड़ा था, जैसा कि धारा 113 की आवश्यकता है?
- न्यायालय का निर्णय: नहीं, इसलिए रेफरेंस गलत है।
- क्या निचली अदालत ने अपनी अधिकार सीमा में रहकर रेफरेंस किया?
- न्यायालय का निर्णय: नहीं, रेफरेंस अवैध था और लौटा दिया गया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Banarsi Yadav v. Krishna Chandra Dass, AIR 1972 Pat 49
- State of Jharkhand v. State of Bihar, (2015) 2 SCC 431
मामले का शीर्षक
Uday Prakash Mishra बनाम Poonam Mishra एवं अन्य
केस नंबर
Civil Reference No.1 of 2017
उद्धरण (Citation)
2020 (2) PLJR 599
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
माननीय न्यायमूर्ति एस. कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री जे.एस. अरोड़ा (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री संजीव कुमार सिंह, श्री अजय कुमार सिंह
- प्रत्यर्थियों की ओर से: श्री उमाकांत शुक्ला, श्री शक्ति सुमन कुमार, श्री बनवारी शर्मा, श्री श्यो कुमार
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTIjMSMyMDE3IzEjTg==-S0yQnCKS2B8=
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