पटना हाईकोर्ट का फैसला: पीएमसीएच के मनोरोग विभाग में प्रोफेसर पद पर वरिष्ठता का दावा खारिज

पटना हाईकोर्ट का फैसला: पीएमसीएच के मनोरोग विभाग में प्रोफेसर पद पर वरिष्ठता का दावा खारिज

निर्णय की सरल व्याख्या

इस मामले में याचिकाकर्ता, जो पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (PMCH) के मनोरोग विभाग में वरिष्ठ डॉक्टर हैं, ने पटना हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। उनका दावा था कि उन्हें 1989 से शिक्षकीय कार्य करते रहने के बावजूद प्रोफेसर पद पर पदोन्नति नहीं दी गई, जबकि उनसे कनिष्ठ एक अन्य डॉक्टर को 2006 में यह पद दे दिया गया।

याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्हें 1989 में मनोचिकित्सक के पद पर नियुक्त किया गया और तभी से वे पढ़ाने का कार्य कर रहे थे। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि उन्हें ‘टीचिंग अलाउंस’ मिलता रहा है, जिससे साबित होता है कि वे शिक्षा सेवा कैडर में ही थे। उन्होंने एक 1990 के सरकारी आदेश का हवाला दिया, जिसमें उनके पद को शिक्षकीय घोषित किया गया था।

दूसरी ओर, निजी प्रतिवादी को 1990 से ही शिक्षकीय पद पर नियुक्त दिखाया गया था और उन्हें प्रोफेसर पहले ही बना दिया गया था। याचिकाकर्ता को 1991 में सहायक प्रोफेसर बनाया गया, जो 2008 और 2018 की वरिष्ठता सूचियों में भी दर्ज है। याचिकाकर्ता ने इन सूचियों के विरुद्ध कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई थी।

राज्य सरकार और निजी प्रतिवादी ने कोर्ट में कहा कि 1989 में याचिकाकर्ता की नियुक्ति गैर-शिक्षकीय पद पर हुई थी और 1990 का आदेश पूर्व प्रभावी (retrospective) नहीं था। साथ ही, याचिकाकर्ता ने समय रहते वरिष्ठता सूची को चुनौती नहीं दी, जिससे उनका दावा कमजोर हो गया।

कोर्ट ने रिकॉर्ड और तर्कों का अवलोकन करने के बाद निम्नलिखित निर्णय दिया:

  • 1989 की नियुक्ति गैर-शिक्षकीय थी।
  • 1990 का आदेश पूर्व प्रभावी नहीं था।
  • याचिकाकर्ता की शिक्षकीय नियुक्ति 1991 से ही प्रभावी है।
  • उन्होंने 2008 और 2018 की वरिष्ठता सूची पर आपत्ति नहीं की।

इसलिए, कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता किसी भी स्थिति में निजी प्रतिवादी से वरिष्ठ नहीं माने जा सकते। याचिका खारिज कर दी गई।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला सरकारी सेवा में वरिष्ठता और पदोन्नति के मामलों में समय पर आपत्ति दर्ज कराने के महत्व को उजागर करता है। यह भी स्पष्ट किया गया कि कोई भी सरकारी आदेश यदि पूर्व प्रभावी नहीं है, तो उस आधार पर पूर्व काल का लाभ नहीं लिया जा सकता। खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों के लिए यह निर्णय महत्वपूर्ण मिसाल के रूप में देखा जाएगा, जिससे अनावश्यक वरिष्ठता विवादों से बचा जा सके।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या 1989 की नियुक्ति को शिक्षकीय माना जा सकता है?
    • नहीं, कोर्ट ने इसे गैर-शिक्षकीय माना।
  • क्या 1990 का आदेश पूर्व प्रभावी था?
    • नहीं, आदेश तत्काल प्रभाव से लागू माना गया।
  • क्या याचिकाकर्ता 1989 की नियुक्ति के आधार पर वरिष्ठता का दावा कर सकते हैं?
    • नहीं, क्योंकि प्रतिवादी 1990 से शिक्षकीय पद पर थे और याचिकाकर्ता 1991 से।
  • क्या याचिका देर से दायर होने के कारण खारिज की जा सकती है?
    • हां, याचिकाकर्ता ने समय पर आपत्ति नहीं की, जिससे उनका दावा समय-सीमा में बाधित माना गया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Shiba Shankar Mohapatra & Others v. State of Orissa & Others, (2010) 12 SCC 471
  • Dr (Mrs) Shushma Pandey v. State of Bihar, 2006 (1) PLJR 737

मामले का शीर्षक
Dr Narendra Pratap Singh v. State of Bihar & Others

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 6206 of 2012

उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 222

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री वाई. वी. गिरी, वरिष्ठ अधिवक्ता (याचिकाकर्ता की ओर से), सहायक: सुमित कुमार झा, प्रणव कुमार
  • श्री हरेंद्र प्रसाद सिंह, GA VIII और श्री अमित प्रकाश, GA XIII (राज्य की ओर से)
  • श्री तेज बहादुर सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता और श्री प्रभात कुमार सिंह (प्रतिवादी संख्या 8 की ओर से)

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNjIwNiMyMDEyIzEjTg==-XHhrT1FODcc=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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