निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक कर्मचारी की अपील को खारिज कर दिया जिसमें उसने सीधी भर्ती से चयनित कर्मियों के मुकाबले वरिष्ठता (seniority) दिए जाने की मांग की थी। अपीलकर्ता को उनके दिवंगत पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर एक क्लर्क पद पर नियुक्त किया गया था। बाद में कई कानूनी प्रयासों के बाद उन्हें पदोन्नति मिली। उनकी शिकायत यह थी कि चूंकि पदोन्नति और सीधी भर्ती दोनों एक ही वर्ष (2007) में हुई थी और दोनों के लिए अधिसूचना भी एक साथ निकली थी, इसलिए उन्हें वरिष्ठता दी जानी चाहिए थी।
अपीलकर्ता का कहना था कि देरी उनकी गलती नहीं थी। उन्होंने समय पर आवेदन किया था और कोर्ट के आदेश से उन्हें पदोन्नति मिली। लेकिन जब तक उनकी नियुक्ति हुई, तब तक सीधी भर्ती वाले लोग पहले ही नियुक्त हो चुके थे और वरिष्ठ मान लिए गए।
कोर्ट ने माना कि नियमों के अनुसार, यदि पदोन्नति और सीधी भर्ती एक ही प्रक्रिया का हिस्सा हो, तो पदोन्नत कर्मियों को वरिष्ठता मिलनी चाहिए। लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता ने अपने अधिकार के लिए समय पर कोई कदम नहीं उठाया। उन्होंने अपनी नियुक्ति की शर्तों को (जिसमें लिखा था कि वरिष्ठता ज्वॉइनिंग की तारीख से मानी जाएगी) चुनौती नहीं दी। इतना ही नहीं, जिन सीधी भर्ती वालों को वरिष्ठ माना गया था, उन्हें भी इस मामले में पक्षकार नहीं बनाया गया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता ने करीब 5 साल बाद कोर्ट का रुख किया और करीब 11 साल तक चुप रहे। ऐसे में कोर्ट ने देरी और आवश्यक पक्षकारों को न जोड़ने के आधार पर अपील को खारिज कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय सरकारी सेवा में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए एक अहम संकेत है कि यदि उन्हें किसी सेवा शर्त पर आपत्ति हो (जैसे वरिष्ठता), तो वे समय रहते अपनी बात रखें। केवल नियम का सहारा लेकर, वर्षों तक इंतजार करने के बाद कोर्ट आना, उनकी मदद नहीं कर पाएगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि यदि किसी फैसले का असर अन्य कर्मियों पर पड़ेगा, तो उन्हें भी मुकदमे में शामिल करना आवश्यक है। यह फैसला सरकारी विभागों में नियुक्ति और पदोन्नति की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और समयबद्ध बनाने की दिशा में एक मजबूत संदेश है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या पदोन्नत कर्मियों को सीधी भर्ती से ऊपर वरिष्ठता मिलनी चाहिए, यदि दोनों की नियुक्ति एक साथ हुई हो?
✔ हां, नियम के अनुसार ऐसा होना चाहिए। - क्या अपीलकर्ता का मामला देरी और लापरवाही के कारण खारिज किया गया?
✔ हां, कोर्ट ने इसे ‘देरी और लाच’ का मामला माना। - क्या बिना प्रभावित पक्षों को शामिल किए कोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है?
❌ नहीं, जिन पर असर पड़ सकता है, उन्हें पक्षकार बनाना जरूरी है। - क्या नियुक्ति पत्र की शर्तें बाद में चुनौती दी जा सकती थीं?
✔ हां, लेकिन अपीलकर्ता ने ऐसा नहीं किया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Chennai Metropolitan Water Supply and Sewarage Board v. T.T. Murali Babu, (2014) 4 SCC 108.
मामले का शीर्षक
Letters Patent Appeal No. 566 of 2022 in Civil Writ Jurisdiction Case No. 127 of 2020
केस नंबर
LPA No. 566 of 2022
उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 27
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन
माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अपीलकर्ता की ओर से: श्री अभिनव श्रीवास्तव
- प्रतिवादी की ओर से: श्री वाई. पी. सिन्हा (AAG-7), श्री आनंद कुमार झा, श्री अशोक के. कर्ण
निर्णय का लिंक–
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