निर्णय की सरल व्याख्या
इस केस में एक कैटरिंग फर्म ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) विभाग द्वारा जारी सर्विस टैक्स की मांग को चुनौती दी। फर्म ने रेल गाड़ियों में यात्रियों को खाने की सुविधा देने के लिए रेलवे से लाइसेंस लिया था और इसके लिए लाइसेंस फीस चुकाई थी। इसी फीस पर विभाग ने ₹1.38 करोड़ सर्विस टैक्स, बराबर की पेनल्टी और ब्याज लगाने का आदेश दिया था।
विभाग का तर्क था कि भारतीय रेलवे ने कैटरर को जो सुविधाएं दीं—जैसे पेंट्री कार, पानी, साफ-सफाई और यात्रा पास—वो ‘सपोर्ट सर्विस’ (support services) के अंतर्गत आती हैं। ऐसे में फर्म को रिवर्स चार्ज मेकैनिज्म (RCM) के तहत सर्विस टैक्स देना था, जो उन्होंने नहीं दिया। इसी आधार पर टैक्स की मांग की गई।
कैटरिंग फर्म ने इसका विरोध करते हुए कहा कि—
- उन्होंने जवाब दाखिल किया था, लेकिन उसे नजरअंदाज करके आदेश पारित कर दिया गया।
- उन्हें कारण बताओ नोटिस (SCN) से पहले परामर्श (pre-SCN consultation) नहीं दिया गया, जो CBEC की गाइडलाइन के अनुसार जरूरी था।
- टैक्स की मांग समय-सीमा के बाहर की गई है।
- रेलवे से लाइसेंस लेना ‘सपोर्ट सर्विस’ नहीं बल्कि एक अनुबंध है।
इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि यह केवल कानून की व्याख्या का मामला है, ना कि टैक्स चोरी का, इसलिए जुर्माना नहीं लगना चाहिए।
विभाग ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह जानबूझकर की गई टैक्स चोरी का मामला है, इसलिए कानून के अनुसार पांच साल की विस्तारित सीमा (extended limitation) में कार्रवाई की गई है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को पहले अपील दायर करनी चाहिए थी, सीधे हाईकोर्ट नहीं आना चाहिए था।
कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि यह मामला तथ्यों और कानून की व्याख्या पर आधारित है, इसलिए इसे अपीलीय प्राधिकरण ही बेहतर तरीके से देख सकता है। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को आठ सप्ताह में अपील करने की अनुमति दी और अपील में देरी पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने का निर्देश दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बताता है कि यदि कोई सरकारी संस्था जैसे रेलवे व्यवसायिक अनुबंध के तहत कोई सुविधा देती है, तो वह ‘सपोर्ट सर्विस’ के अंतर्गत आ सकती है और उस पर सर्विस टैक्स बन सकता है। यह खासकर उन व्यवसायियों के लिए अहम है जो रेलवे, नगर निगम या अन्य सरकारी संस्थाओं से लाइसेंस लेकर व्यवसाय करते हैं।
साथ ही, यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि जब वैकल्पिक उपाय (जैसे अपील) मौजूद हो, तब सीधे हाईकोर्ट में याचिका दायर करना उपयुक्त नहीं होता।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या रेलवे से ली गई कैटरिंग लाइसेंस फीस पर सर्विस टैक्स देना बनता है?
- कोर्ट ने कहा: यह तथ्यात्मक मामला है, अपीलीय प्राधिकरण ही फैसला करेगा।
- क्या बिना प्री-शो-कॉज परामर्श के कारण बताओ नोटिस अवैध है?
- कोर्ट ने कहा: याचिकाकर्ता ने इसे सही समय पर चुनौती नहीं दी, इसलिए यह मुद्दा अब विचारणीय नहीं है।
- क्या टैक्स की मांग कानून में दी गई समय सीमा के बाहर की गई है?
- कोर्ट ने कहा: विभाग ने जानबूझकर तथ्यों को छुपाने का आरोप लगाया है, इसलिए विस्तारित सीमा (5 साल) लागू हो सकती है। यह फैसला अपीलीय अधिकारी लेगा।
- क्या याचिका पर विचार किया जाना चाहिए जब वैकल्पिक अपील उपलब्ध है?
- कोर्ट ने कहा: नहीं। याचिकाकर्ता को पहले अपीलीय उपाय अपनाना चाहिए।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय [यदि कोई हो]
- Amadeus India Pvt. Ltd. vs. Principal Commissioner, Central Excise (2019 SCC OnLine Del 8437)
- Cosmic Dye Chemical vs. CCE, Bombay [(1995) 6 SCC 117]
- CCE Bangalore vs. Karnataka Agro Chemicals [(2008) 7 SCC 343]
- Northern Operating Systems Pvt. Ltd. [(2022) 17 SCC 90]
- Collector of Central Excise vs. H.M.M. Ltd. [1995 Supp (3) SCC 322]
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय [यदि कोई हो]
- Godrej Sara Lee Ltd. vs. Excise and Taxation Officer [2023 SCC OnLine SC 95]
- State of Maharashtra vs. Greatship (India) Ltd. [Civil Appeal No. 4956 of 2022]
- M/s Kelkar and Kelkar vs. M/s Hotel Pride Exec. Pvt. Ltd. [Civil Appeal No. 3479 of 2022]
- CWJC No. 10644 of 2024, Ramnath Prasad vs. Principal Commissioner of CGST [Patna High Court]
- CWJC No. 4541 of 2024, M/s Mangalmurti Constructions vs. Union of India
मामले का शीर्षक
M/s Singh Caterers and Vendors बनाम Directorate General of GST Intelligence एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 3390 of 2023
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
माननीय श्री न्यायमूर्ति रमेश चंद्र मालवीय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री गौतम केजरीवाल, श्री मोहित अग्रवाल, श्री लोकेश कुमार, श्री आकाश कुमार
- प्रतिवादी की ओर से: श्री के.एन. सिंह (अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल), श्री अंशुमान सिंह (वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता, CGST), श्री शिवादित्य शाही सिन्हा
निर्णय का लिंक
6c7b20bc-af77-49b2-aea1-3d197307a494.pdf
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