निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक ऐसे आपराधिक मामले में आरोपी की सजा को सही ठहराया, जिसमें एक व्यक्ति ने शादी समारोह के दौरान गोली मार दी थी। यह घटना मई 2014 में भोजपुर जिले के एक गाँव में हुई थी। निचली अदालत ने आरोपी को धारा 307 (हत्या का प्रयास) के तहत 10 साल की सजा और आर्म्स एक्ट की धारा 27 के तहत 3 साल की सजा दी थी। हाई कोर्ट ने इस सजा को पूरी तरह जायज ठहराया।
पीड़ित व्यक्ति (सूचना देने वाला/घायल) अपने गांव में एक शादी में शामिल होने गया था और कुर्सी पर बैठा हुआ था। तभी आरोपी आया और नजदीक से गोली मार दी, जिससे उसके पेट में गंभीर चोट आई। उसे पहले आरा सदर अस्पताल ले जाया गया और फिर पीएमसीएच, पटना रेफर किया गया, जहाँ उसकी सर्जरी हुई।
मामले की सुनवाई के दौरान पीड़ित, उसके बेटे और कुछ अन्य गवाहों ने बयान दिया कि गोली चलाने वाला वही व्यक्ति था। भले ही गवाह पीड़ित के रिश्तेदार थे, कोर्ट ने कहा कि घायल व्यक्ति की गवाही भरोसेमंद और पर्याप्त है, खासकर जब वह मेडिकल सबूतों से मेल खाती हो।
आरोपी का बचाव था कि यह घटना शादी की खुशी में की गई हर्ष फायरिंग के दौरान गलती से हुई थी और उसे ज़मीन विवाद के चलते झूठा फंसाया गया। लेकिन अदालत ने यह दलील खारिज कर दी क्योंकि आरोपी के पक्ष से कोई ठोस सबूत नहीं आया। कोर्ट ने यह भी माना कि आरोपी ने खुद स्वीकार किया कि गोलीबारी हुई थी।
हालांकि बचाव पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि पुलिस जांच में कई खामियाँ थीं—जैसे कि कारतूस या खून के कपड़े बरामद नहीं हुए, कुछ गवाहों के बयान मेल नहीं खाते—परंतु कोर्ट ने कहा कि इन बातों से उस मुख्य बात पर असर नहीं पड़ता कि गोली मारी गई और पीड़ित ने हमलावर की सही पहचान की।
इसलिए हाई कोर्ट ने अपील खारिज कर दी और आरोपी को बाकी सजा जेल में काटने का आदेश दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बिहार के ग्रामीण इलाकों में होने वाले सार्वजनिक अपराधों के खिलाफ कड़ा संदेश देता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी समारोह में, चाहे भीड़ कितनी भी हो, अपराधी को कानून से छूट नहीं मिलती। यह भी कहा गया कि घायल व्यक्ति की गवाही यदि सुसंगत और चिकित्सकीय रिपोर्ट से समर्थित हो, तो वह अकेले ही सजा दिलाने के लिए पर्याप्त है।
साथ ही, यह भी साफ किया गया कि पुलिस जांच में छोटी-मोटी कमी होने पर भी यदि गवाहों के बयान भरोसेमंद हैं, तो अभियोजन का केस कमजोर नहीं माना जा सकता।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या अभियोजन पक्ष ने आरोपी की पहचान और अपराध साबित किया?
✔ हाँ, घायल की गवाही और मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर। - क्या गवाहों के परस्पर विरोधी बयान केस को कमजोर करते हैं?
✘ नहीं, कोर्ट ने उन्हें मामूली अंतर माना। - क्या पुलिस की लापरवाही (जैसे कपड़े/कारतूस न बरामद होना) केस पर असर डालती है?
✘ नहीं, मुख्य गवाही और मेडिकल सबूत पर्याप्त थे। - क्या रिश्तेदार गवाहों की गवाही अविश्वसनीय मानी जाती है?
✘ नहीं, कोर्ट ने कहा कि रिश्तेदारी कोई अविश्वास का आधार नहीं है।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Smt. Shamim vs. State (GNCT of Delhi), 2018 (4) PLJR 160 (SC)
- Kuna @ Sanjaya Behera vs. State of Odisha, 2018 (1) PLJR 5 (SC)
- Motiram Padu Joshi vs. State of Maharashtra, 2018 (3) PLJR 349 (SC)
- Lahu Kamlakar Patil vs. State of Maharashtra, (2013) 6 SCC 417
- Gian Chand vs. State of Haryana, 2013 (4) PLJR 7 (SC)
मामले का शीर्षक
Mintu @ Tulsi Rai बनाम बिहार राज्य
केस नंबर
Criminal Appeal (SJ) No.1923 of 2017
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 474
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति आदित्य कुमार त्रिवेदी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री मनोज कुमार, अधिवक्ता — अभियुक्त की ओर से
- श्री सुजीत कुमार सिंह, एपीपी — राज्य की ओर से
- श्री प्रवीण कुमार, अधिवक्ता — सूचक/पीड़ित की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MjQjMTkyMyMyMDE3IzEjTg==-U5W3Ek7Y6l0=
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