पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: अल्पसंख्यक कॉलेज में शिक्षक बहाली रद्द, धारा 57-B का उल्लंघन (2024)

पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: अल्पसंख्यक कॉलेज में शिक्षक बहाली रद्द, धारा 57-B का उल्लंघन (2024)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2024 में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें गया जिले के एक अल्पसंख्यक सहायता प्राप्त संबद्ध कॉलेज द्वारा किए गए शिक्षक बहाली की प्रक्रिया को अवैध ठहराया गया।

घटना की पृष्ठभूमि यह है कि कॉलेज ने 2018 में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था और फरवरी 2019 में इंटरव्यू भी हुए थे। उस समय मेरिट सूची भी तैयार कर ली गई थी, लेकिन किसी को नियुक्ति नहीं दी गई। इसके बाद, अक्टूबर 2019 में कॉलेज ने यह कहकर नया विज्ञापन प्रकाशित किया कि पिछली प्रक्रिया “अनिवार्य कारणों से” रद्द कर दी गई है।

यही मामला अदालत तक पहुंचा। याचिकाकर्ताओं (एक रसायनशास्त्र विभाग से और एक फ़ारसी विभाग से) का कहना था कि:

  1. चयन समिति (Selection Committee) धारा 57-B के अनुसार गठित नहीं की गई थी।
  2. कॉलेज ने पहले की बहाली मनमाने तरीके से रद्द कर दी।
  3. पूरी प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण और अनुचित थी।

अदालत ने सबसे पहले यह देखा कि क्या याचिकाकर्ता यह मामला उठा सकते हैं (जिसे “लोकस स्टैंडी” कहा जाता है)। अदालत ने कहा कि जिन उम्मीदवारों पर सीधा असर पड़ा है, वे निश्चित रूप से “पीड़ित पक्ष” हैं और उन्हें न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाने का अधिकार है।

इसके बाद अदालत ने ध्यान दिया कि बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 57-B के अनुसार अल्पसंख्यक संबद्ध कॉलेजों में शिक्षक की नियुक्ति के लिए चयन समिति में ये लोग होने चाहिए:

  • गवर्निंग बॉडी का अध्यक्ष (Chairman)
  • कॉलेज का प्रिंसिपल
  • संबंधित विभाग का प्रमुख (HoD)
  • कुलपति द्वारा शैक्षणिक परिषद (Academic Council) से चुने गए विशेषज्ञों की सूची में से 3 विषय-विशेषज्ञ

इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि चयन प्रक्रिया पारदर्शी और योग्यता आधारित हो।

लेकिन रिकॉर्ड से पता चला कि 2019 में गठित चयन समिति अधूरी थी और इसमें जरूरी सदस्य व विशेषज्ञ शामिल नहीं थे। कुलपति द्वारा अनुशंसित सूची से विशेषज्ञों का चयन नहीं किया गया था। इसका मतलब हुआ कि समिति का गठन ही अवैध था।

कॉलेज की ओर से कहा गया कि अल्पसंख्यक संस्थानों को अपने कर्मचारियों को चुनने का अधिकार है और याचिकाकर्ता, खुद इंटरव्यू में भाग लेने के बाद, अब इस प्रक्रिया को चुनौती नहीं दे सकते। लेकिन अदालत ने यह तर्क खारिज कर दिया और कहा कि संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक संस्थानों को जरूर अधिकार देता है, लेकिन अगर संस्था राज्य से सहायता प्राप्त कर रही है और विश्वविद्यालय से संबद्ध है, तो उसे न्यूनतम कानूनी ढांचे का पालन करना होगा।

अंत में अदालत ने कहा कि 2019 का विज्ञापन और पूरी चयन प्रक्रिया अवैध और मनमानी थी। इसलिए इसे रद्द किया जाता है और गवर्निंग बॉडी को निर्देश दिया गया कि नया विज्ञापन प्रकाशित किया जाए और चयन समिति धारा 57-B के अनुसार ही बनाई जाए।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

यह फैसला अल्पसंख्यक सहायता प्राप्त कॉलेजों के लिए बहुत अहम है। अदालत ने साफ कर दिया कि:

  • कॉलेजों को शिक्षक बहाली करते समय कानूनी नियमों का पालन करना ही होगा।
  • अल्पसंख्यक अधिकार (Article 30) का मतलब यह नहीं है कि पारदर्शिता और योग्यता को नजरअंदाज किया जा सकता है।
  • यदि चयन समिति सही तरीके से गठित नहीं होगी, तो पूरी प्रक्रिया अवैध मानी जाएगी।

आम जनता और प्रतियोगी परीक्षार्थियों के लिए यह फैसला भरोसा दिलाता है कि अदालत निष्पक्षता और पारदर्शिता की रक्षा करेगी। सरकार और विश्वविद्यालयों के लिए यह याद दिलाने जैसा है कि वे विशेषज्ञों की सूची समय पर उपलब्ध कराएं और कॉलेजों को नियमों का पालन करने के लिए बाध्य करें।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या याचिकाकर्ता यह मामला उठा सकते थे?
    ✔ हां। वे सीधे प्रभावित उम्मीदवार थे और इसीलिए उन्हें अदालत में आने का अधिकार था।
  • क्या चयन समिति धारा 57-B के अनुसार गठित हुई थी?
    ✘ नहीं। समिति में जरूरी सदस्य और विशेषज्ञ मौजूद नहीं थे।
  • अदालत का अंतिम आदेश
    ✔ 06.10.2019 का विज्ञापन और पूरी चयन प्रक्रिया रद्द।
    ✔ गवर्निंग बॉडी को नया विज्ञापन निकालने और धारा 57-B के तहत समिति बनाने का आदेश।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Dhananjay Malik बनाम State of Uttaranchal, (2008) 4 SCC 171
  • Ramesh Chandra Shah बनाम Anil Joshi, (2013) 11 SCC 309
  • Sajeesh Babu K. बनाम N.K. Santhosh, (2012) 12 SCC 106
  • Dr. (Major) Meeta Sahay बनाम State of Bihar, (2019) 20 SCC 17

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Calcutta Gas Co. बनाम State of West Bengal, AIR 1962 SC 1044
  • Mani Subrat Jain बनाम State of Haryana, (1977) 1 SCC 486
  • Ghulam Qadir बनाम Special Tribunal, (2002) 1 SCC 33
  • Jasbhai Motibhai Desai बनाम Roshan Kumar, (1976) 1 SCC 671
  • T.M.A. Pai Foundation बनाम State of Karnataka, (2002) 8 SCC 481
  • Ahmedabad St. Xavier’s College Society बनाम State of Gujarat, (1974) 1 SCC 717
  • Sk. Md. Rafique बनाम Managing Committee, (2020) 6 SCC 689

मामले का शीर्षक

Reena Kumari & Anr. बनाम State of Bihar & Ors.

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 10935 of 2021

उद्धरण (Citation)

2025 (1) PLJR 334

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति अंजनी कुमार शरण (निर्णय दिनांक 08.10.2024)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता: श्री तेज बहादुर सिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री प्रिंस कुमार मिश्रा
  • उत्तरदायी 7 से 11: श्री वाई.वी. गिरी (वरिष्ठ अधिवक्ता), सुश्री श्रृष्टि सिंह, श्री आशीष गिरी
  • मगध विश्वविद्यालय: श्री सिद्धार्थ प्रसाद
  • मिर्ज़ा ग़ालिब कॉलेज: श्री अभिनव श्रीवास्तव
  • राज्य सरकार: श्री प्रभाकर झा (GP-27), श्री उमेश नारायण दुबे (AC to GP-27)

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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