पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक शिक्षक की अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपनी सेवा समाप्ति को चुनौती दी थी। शिक्षक को उत्क्रमित मध्य विद्यालय, भवानी टोला, मनेर में प्रखंड शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था, लेकिन वे आवश्यक योग्यता—डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन (D.El.Ed)—पूरा करने में असफल रहे।
उक्त परीक्षा उन्होंने 2018 में दी थी, जिसका परिणाम जनवरी 2019 में प्रकाशित हुआ। उन्हें “गणित शिक्षण पद्धति (Pedagogy in Math)” विषय में केवल 26 अंक मिले, जबकि उत्तीर्ण होने के लिए 32 अंक आवश्यक थे। उन्होंने उत्तरपुस्तिका की जांच (scrutiny) के लिए आवेदन दिया, लेकिन उसके परिणाम की प्रतीक्षा करते हुए 5 मार्च 2019 को आयोजित पूरक परीक्षा में शामिल नहीं हुए।
बाद में सूचना का अधिकार (RTI) के तहत प्राप्त उत्तरपुस्तिका में 32 अंक दर्शाए गए थे, जिससे उन्होंने यह दावा किया कि वे पास हो चुके थे और सेवा से हटाना गलत था। लेकिन बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (BSEB) ने जांच में पाया कि उनकी उत्तरपुस्तिका में अंकों की हेरफेर की गई थी—विशेषकर दो प्रश्नों में दिए गए “1” अंक को “4” में बदला गया था।
इस हेरफेर के लिए अंक-जांचकर्ता (Totalar) को ब्लैकलिस्ट किया गया और पुलिस में प्राथमिकी भी दर्ज की गई। पहले भी एकल पीठ (Single Judge) ने इस याचिका को खारिज कर दिया था।
इस अपील में न्यायालय ने उत्तर-पुस्तिका में अंकों की लिखावट का विश्लेषण किया और पाया कि “4” के रूप में दर्शाए गए अंक उस मूल्यांकनकर्ता की मूल लिखावट से मेल नहीं खाते। इससे यह स्पष्ट हुआ कि अंकों में जानबूझकर हेरफेर की गई थी।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि स्क्रूटिनी केवल अंकों की गणना में त्रुटियों को सुधारने की प्रक्रिया है, न कि उत्तरों का पुनर्मूल्यांकन। चूंकि मूल परिणाम में छात्र असफल था और उसने पूरक परीक्षा में भाग नहीं लिया, इसलिए उसे कोई लाभ नहीं मिल सकता।
अतः हाई कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए कहा कि खुद याचिकाकर्ता की लापरवाही और उत्तरपुस्तिका में हेरफेर के कारण उसे कोई राहत नहीं दी जा सकती।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और ईमानदारी बनाए रखने की दिशा में एक मजबूत संदेश है। न्यायालय ने यह साफ कर दिया कि उत्तर-पत्रों में हेरफेर को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और इसके दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
साथ ही, यह भी स्पष्ट किया गया कि किसी भी शिक्षक को निर्धारित योग्यता, जैसे कि D.El.Ed, को समय पर पूरा करना आवश्यक है। स्क्रूटिनी के परिणाम की प्रतीक्षा करते हुए पूरक परीक्षा छोड़ना खुद की जिम्मेदारी है, इसका दोष परीक्षा बोर्ड पर नहीं डाला जा सकता।
सरकारी निकायों के लिए यह निर्णय यह पुष्टि करता है कि यदि वे समय पर सख्त और वैध कदम उठाते हैं, तो न्यायपालिका उनके पक्ष में खड़ी रहेगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या याचिकाकर्ता को सेवा से हटाना गलत था?
❖ निर्णय: नहीं। उन्होंने परीक्षा में न्यूनतम अंक नहीं प्राप्त किए और पूरक परीक्षा भी नहीं दी। - क्या स्क्रूटिनी में प्राप्त 32 अंक वैध थे?
❖ निर्णय: नहीं। अंकों में हेरफेर पाई गई, और उसे बोर्ड ने खारिज किया। - क्या स्क्रूटिनी परिणाम में देरी से याचिकाकर्ता को नुकसान हुआ?
❖ निर्णय: नहीं। उसे पूरक परीक्षा में शामिल होना चाहिए था; प्रतीक्षा करना उसकी गलती थी।
मामले का शीर्षक
Vinod Pratap Narayan बनाम बिहार विद्यालय परीक्षा समिति एवं अन्य
केस नंबर
LPA No. 1088 of 2023
(संबंधित CWJC No. 6502 of 2020)
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन
माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अभिनव श्रीवास्तव, अधिवक्ता
- प्रतिवादी की ओर से:
• श्री पी.के. शाही, वरिष्ठ अधिवक्ता
• श्री ज्ञान शंकर, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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