पटना हाईकोर्ट ने शिक्षक की सेवा समाप्ति को निरस्त किया — 2024

पटना हाईकोर्ट ने शिक्षक की सेवा समाप्ति को निरस्त किया — 2024

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया कि किसी भी सरकारी कर्मचारी या संविदा पर कार्यरत शिक्षक की सेवा बिना नोटिस और बिना सुने समाप्त नहीं की जा सकती। इस मामले में एक प्राथमिक विद्यालय के संविदा शिक्षक (याचिकाकर्ता) की सेवा समाप्त कर दी गई थी। आरोप लगाया गया था कि उन्होंने नौकरी पाने के लिए BETET-2011 का फर्जी प्रमाणपत्र इस्तेमाल किया है।

28 जुलाई 2023 को पंचायत रोजगार इकाई ने यह आदेश जारी किया था, जो ज़िला कार्यक्रम पदाधिकारी की सिफारिश और सतर्कता जाँच रिपोर्ट के आधार पर दिया गया था। याचिकाकर्ता को न तो कोई कारण बताओ नोटिस (show-cause notice) दिया गया, न ही अपनी सफाई देने का अवसर दिया गया।

याचिकाकर्ता ने इस आदेश को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने पाया कि:

  1. आदेश जारी करने से पहले याचिकाकर्ता को सुनने का मौका नहीं दिया गया।
  2. पंचायत रोजगार इकाई ने स्वतंत्र रूप से विचार नहीं किया बल्कि सिर्फ़ ज़िला कार्यक्रम पदाधिकारी के कहने पर आदेश जारी कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि यह दोनों बातें प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत (natural justice) का उल्लंघन हैं। इसलिए सेवा समाप्ति का आदेश क़ानूनी रूप से टिक नहीं सकता।

हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार चाहे तो याचिकाकर्ता के खिलाफ़ दोबारा जांच कर सकती है, लेकिन इस बार पूरा कानूनी प्रक्रिया अपनानी होगी — यानी नोटिस देना, जवाब लेना, सबूत दिखाना और फिर कारण सहित आदेश देना।

फिलहाल कोर्ट ने सेवा समाप्ति का आदेश निरस्त कर दिया और तुरंत बहाली का निर्देश दिया। आर्थिक लाभ (बकाया वेतन आदि) का सवाल इस बात पर निर्भर करेगा कि भविष्य में अगर जांच होती है तो उसका परिणाम क्या आता है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

  • यह फैसला बताता है कि नौकरी से हटाने जैसे गंभीर निर्णयों में कानूनी प्रक्रिया और सुनवाई ज़रूरी है।
  • बिहार में कई शिक्षकों की नियुक्तियों को लेकर सतर्कता जांच चल रही है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सिर्फ़ रिपोर्ट के आधार पर तुरंत कार्रवाई नहीं की जा सकती।
  • पंचायत स्तर के अधिकारियों को याद रखना होगा कि वे आदेश जारी करते समय स्वतंत्र रूप से सोचें और कारण लिखें।
  • यह फैसला शिक्षकों और अन्य सरकारी कर्मचारियों को यह भरोसा देता है कि बिना सुने उनकी नौकरी नहीं छीनी जा सकती।
  • सरकार के लिए भी यह संकेत है कि अगर कोई वाकई फर्जी प्रमाणपत्र से नौकरी कर रहा है, तो उसे हटाने का सही तरीका है — नोटिस, जवाब और निष्पक्ष जांच।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या बिना नोटिस और सुनवाई के सेवा समाप्त की जा सकती है?
    • कोर्ट का निर्णय: नहीं। यह आदेश अवैध है।
    • कारण: नौकरी छीनने जैसे फैसले का नागरिक जीवन पर गंभीर असर पड़ता है। ऐसे मामलों में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत लागू होते हैं।
  • क्या पंचायत रोजगार इकाई सिर्फ़ ज़िला पदाधिकारी के निर्देश पर सेवा समाप्त कर सकती है?
    • कोर्ट का निर्णय: नहीं।
    • कारण: आदेश से यह साफ़ दिख रहा था कि अधिकारी ने खुद विचार नहीं किया, सिर्फ़ ऊपर से आई रिपोर्ट पर हस्ताक्षर कर दिया।
  • क्या राहत दी गई?
    • कोर्ट का निर्णय: सेवा समाप्ति का आदेश निरस्त किया गया, याचिकाकर्ता को तुरंत बहाल करने का निर्देश।
    • वेतन और अन्य लाभ भविष्य की जांच के परिणाम पर निर्भर करेंगे।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • रंजीत पंडित बनाम बिहार राज्य (CWJC No. 15459/2014, आदेश दिनांक 22.06.2015) — राज्य पक्ष ने इस पुराने आदेश का हवाला दिया, जिसमें शिक्षकों की नियुक्ति प्रमाणपत्रों की जांच का निर्देश दिया गया था।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • कोई विशेष सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट का हवाला नहीं दिया गया। कोर्ट ने प्राकृतिक न्याय के सामान्य सिद्धांतों पर भरोसा किया।

मामले का शीर्षक

  • याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

  • Civil Writ Jurisdiction Case No. 4874 of 2024

उद्धरण (Citation)

2025 (1) PLJR 274

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय न्यायमूर्ति प्रभात कुमार सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: अधिवक्ता बिपिन बिहारी सिंह
  • राज्य/प्रतिवादी की ओर से: अधिवक्ता (Standing Counsel – 16)

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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