सिविल विवाद में आपराधिक मामला दर्ज करना गलत: पटना हाई कोर्ट का अहम फैसला

सिविल विवाद में आपराधिक मामला दर्ज करना गलत: पटना हाई कोर्ट का अहम फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में दो पूर्व कर्मचारियों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला रद्द कर दिया। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि केवल पैसे की वसूली के लिए आपराधिक मुकदमा चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, खासकर तब जब विवाद का स्वरूप पूरी तरह सिविल हो।

यह मामला एक निजी फर्म के ठेकेदार द्वारा दायर की गई शिकायत से जुड़ा है। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसने मंझे हुए कंपनी “पंज लॉयड प्राइवेट लिमिटेड” के लिए सोलर प्लांट लगाने का काम किया था, परंतु ₹10.75 लाख का भुगतान अब तक नहीं हुआ।

पहले यह शिकायत थाना को भेजी गई थी लेकिन पुलिस जांच के बाद इसे ‘तथ्यात्मक भूल’ मानते हुए अंतिम रिपोर्ट सौंप दी गई। इसके बाद शिकायतकर्ता ने विरोध याचिका दायर की, जिसे नया मामला मानकर अदालत ने संज्ञान लेते हुए दोनों याचिकाकर्ताओं को समन भेजा।

इन दोनों याचिकाकर्ताओं पर आरोप था कि वे उस समय कंपनी में मैनेजर और प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर थे। शिकायतकर्ता ने कंपनी को तो पार्टी नहीं बनाया, बल्कि इन पूर्व कर्मचारियों को सीधे आरोपित बना दिया। कोर्ट ने इस बात को विशेष रूप से नोट किया कि न तो शिकायत में और न ही शपथ पत्र में यह आरोप है कि याचिकाकर्ताओं को कोई संपत्ति सौपी गई थी या उन्होंने कोई गबन किया था।

भारतीय दंड संहिता की धारा 406 केवल तब लागू होती है जब कोई व्यक्ति को सौपी गई संपत्ति का बेईमानी से दुरुपयोग करता है। यहां ऐसा कोई तथ्य सामने नहीं आया।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय “इंडियन ऑयल बनाम NEPC इंडिया” (AIR 2006 SC 2780) का हवाला देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि सिविल विवाद को आपराधिक मुकदमे में बदलने की प्रवृत्ति खतरनाक है और इसे हतोत्साहित किया जाना चाहिए।

अंततः, हाई कोर्ट ने यह मानते हुए कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं बनता, निचली अदालत के संज्ञान आदेश और पुनरीक्षण आदेश दोनों को रद्द कर दिया और याचिकाओं को मंजूर कर लिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय खासतौर पर उन व्यवसायियों और कर्मचारियों के लिए राहत भरा है जिनके खिलाफ अनुचित रूप से आपराधिक मामले दायर कर दिए जाते हैं। यह निर्णय साफ करता है कि जब मामला पूरी तरह सिविल हो—जैसे भुगतान न होना या अनुबंध का उल्लंघन—तो उसके लिए आपराधिक कानून का सहारा नहीं लिया जा सकता। इससे व्यवसायिक लेन-देन में पारदर्शिता और कानूनी शुचिता को बढ़ावा मिलेगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या सिविल अनुबंध में बकाया राशि के लिए धारा 406 IPC के तहत आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है?
    • न्यायालय का निर्णय: नहीं। इसमें आपराधिक विश्वासघात के आवश्यक तत्व मौजूद नहीं थे।
  • क्या पूर्व कर्मचारी कंपनी के पैसे न चुकाने पर व्यक्तिगत रूप से आपराधिक रूप से जिम्मेदार हो सकते हैं?
    • न्यायालय का निर्णय: नहीं। न ही कोई सौंपा गया दायित्व था, न ही कोई गबन।
  • क्या सिविल विवादों में दबाव बनाने के लिए आपराधिक मुकदमा किया जा सकता है?
    • न्यायालय का निर्णय: नहीं। यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • State of Haryana v. Bhajan Lal, (1992) Supp (1) SCC 335
  • Indian Oil v. NEPC India Ltd., AIR 2006 SC 2780

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Indian Oil v. NEPC India Ltd., AIR 2006 SC 2780
  • G. Sagar Suri v. State of U.P., (2000) 2 SCC 636

मामले का शीर्षक
Rahul Siddhartha बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
Pratyush Kumar बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
Criminal Miscellaneous Nos. 49848 and 30534 of 2018

उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 218

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री साकेत गुप्ता, श्री प्रकाश कुमार, श्री अनुराग सिंह — याचिकाकर्ता राहुल सिद्धार्थ की ओर से
  • श्री विकास कुमार शर्मा, श्री अतुल चंद्र — याचिकाकर्ता प्रत्युष कुमार की ओर से
  • श्री पंचानंद पंडित एवं श्री फहीमुद्दीन — राज्य सरकार की ओर से
  • श्री पुष्पेन्द्र कुमार सिंह — विपक्षी पक्षकार संख्या 2 की ओर से

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiM0OTg0OCMyMDE4IzEjTg==-5ZPjIUaBVDw=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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