निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने सृजन घोटाले से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में, एक पूर्व जिला विकास आयुक्त (DDC)-सह-जिला परिषद CEO की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया। यह घोटाला सार्वजनिक धन की ₹16 करोड़ से अधिक की कथित हेराफेरी से संबंधित है, जो 13वें वित्त आयोग की योजना के तहत पंचायत स्तर पर खर्च किया जाना था।
याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए अग्रिम जमानत की याचिका दायर की थी कि उन्हें CBI द्वारा दर्ज प्राथमिकी और चार्जशीट में आरोपी बनाया गया है। उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की कई गंभीर धाराएं और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धाराएं 13(2) और 13(1)(d) लगाई गई थीं।
मामले की पृष्ठभूमि:
- याचिकाकर्ता 28 दिसंबर 2012 से 16 अप्रैल 2013 तक जिला परिषद, भागलपुर में DDC-cum-CEO पद पर कार्यरत थे।
- इस दौरान, उन्होंने 13वें वित्त आयोग की योजना के तहत प्राप्त धन को भारतीय बैंक, भागलपुर में जमा कराने के लिए PL चेक जारी किया, जबकि उस समय कोई वैध खाता उस योजना के लिए वहाँ मौजूद नहीं था।
- बाद में, बैंक खाते में हेराफेरी कर यह धनराशि सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड (SMVSSL) के खाते में जमा कर दी गई।
CBI का आरोप है कि:
- याचिकाकर्ता की मिलीभगत से यह धनराशि NGO के खाते में स्थानांतरित की गई।
- उन्होंने बैंकिंग प्रक्रियाओं की अनदेखी की और सह-अभियुक्तों के साथ मिलकर षड्यंत्र किया।
- SMVSSL की सचिव मनोहरमा देवी और अन्य बैंक अधिकारियों के साथ मिलकर यह षड्यंत्र रचा गया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि:
- उनका कार्यकाल अप्रैल 2013 में समाप्त हो गया था, जबकि घोटाला बाद में सामने आया।
- उन्होंने निजी लाभ के लिए कोई राशि नहीं ली, न ही उनके पास असंगत संपत्ति पाई गई।
- उनके उत्तराधिकारी के खिलाफ चार्जशीट नहीं दायर की गई, जबकि उन पर समान आरोप हैं।
न्यायालय ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के सभी तर्क खारिज कर दिए और कहा:
- संबंधित चेक और निर्देश याचिकाकर्ता के कार्यकाल के दौरान जारी किए गए थे।
- बैंक खाता खोलने से पहले ही चेक जारी किया गया, जिससे यह संकेत मिलता है कि कागज़ी धोखाधड़ी की योजना पहले से बनाई गई थी।
- इतनी बड़ी आर्थिक हेराफेरी में याचिकाकर्ता की भूमिका प्रथम दृष्टया गंभीर है।
अदालत ने पी. चिदंबरम बनाम प्रवर्तन निदेशालय [2020 (1) BLJ (SC) 200] का हवाला देते हुए कहा कि:
- गंभीर आर्थिक अपराधों में जमानत देने में अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए।
- जमानत के सामान्य सिद्धांत लागू तो होते हैं, लेकिन घोटाले की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- सरकारी अधिकारियों के लिए: यह निर्णय साफ संकेत देता है कि लापरवाही या मौन समर्थन भी भ्रष्टाचार में भागीदारी मानी जा सकती है।
- जांच एजेंसियों के लिए: अदालत ने जांच एजेंसी के दृष्टिकोण को समर्थन देते हुए यह संदेश दिया कि ऐसे मामलों में कठोर रुख अपनाना आवश्यक है।
- जनता के लिए: यह फैसला भ्रष्टाचार के खिलाफ न्यायपालिका की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, खासकर जब यह धन गरीबों और पंचायत स्तर की योजनाओं के लिए आवंटित होता है।
- कानूनी दृष्टिकोण से: यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि अग्रिम जमानत का लाभ केवल इस आधार पर नहीं मिल सकता कि आरोपी से अभी तक निजी संपत्ति नहीं मिली हो।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत दी जा सकती थी?
- न्यायालय का निर्णय: नहीं। गंभीर आर्थिक अपराध और उसकी भूमिका को देखते हुए, अग्रिम जमानत उपयुक्त नहीं।
- क्या कार्यकाल की समाप्ति और व्यक्तिगत लाभ न मिलना राहत के आधार हो सकते हैं?
- न्यायालय का निर्णय: नहीं। प्रक्रिया संबंधी लापरवाही या साजिश में भागीदारी पर्याप्त कारण हैं।
- क्या बाद में घोटाला उजागर होना याचिकाकर्ता को दोषमुक्त करता है?
- न्यायालय का निर्णय: नहीं। घोटाले की शुरुआत और लेन-देन उनके कार्यकाल में हुई थी।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- पी. चिदंबरम बनाम प्रवर्तन निदेशालय, 2020 (1) BLJ (SC) 200
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- पी. चिदंबरम बनाम प्रवर्तन निदेशालय, 2020 (1) BLJ (SC) 200
मामले का शीर्षक
प्रभात कुमार सिन्हा बनाम भारत सरकार, CBI के माध्यम से
केस नंबर
Criminal Miscellaneous No. 41496 of 2019
उद्धरण (Citation)
2020 (3) PLJR 483
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति श्री चक्रधारी शरण सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री वाई.वी. गिरी, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री रजनीकांत झा — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री बिपिन कुमार सिन्हा — CBI की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiM0MTQ5NiMyMDE5IzEjTg==-l–am1–Tr7v–am1–xT7Q=
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