पंजीकरण के बाद ज़मीन को "विकसित" मानकर लगाया गया स्टाम्प ड्यूटी जुर्माना रद्द – पटना हाई कोर्ट का अहम फैसला

पंजीकरण के बाद ज़मीन को “विकसित” मानकर लगाया गया स्टाम्प ड्यूटी जुर्माना रद्द – पटना हाई कोर्ट का अहम फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में एक ऐसे ज़मीन खरीदार को राहत दी, जिसे ज़मीन खरीदने और रजिस्ट्री के एक साल बाद अचानक अतिरिक्त स्टाम्प ड्यूटी और जुर्माने का सामना करना पड़ा। इस मामले में, याचिकाकर्ता ने कृषि भूमि खरीदी थी और उसकी रजिस्ट्री 9 मार्च 2017 को पूरी वैधता और आवश्यक शुल्क जमा करके करवाई थी।

रजिस्ट्री के समय भूमि को “धानहर” (कृषि भूमि) के रूप में दर्ज किया गया था। लेकिन एक साल बाद, 2 अप्रैल 2018 को जिला उप-पंजीयक द्वारा एक निरीक्षण के आधार पर भूमि को “विकसित भूमि” की श्रेणी में डाल दिया गया और इसे महंगे दर पर मूल्यांकित किया गया। इस आधार पर सहायक महानिरीक्षक, पंजीकरण (उत्तरदाता संख्या 3) ने 17 अप्रैल 2018 को एक आदेश पारित किया, जिसमें याचिकाकर्ता को ₹1,24,680 की स्टाम्प शुल्क की कमी और ₹12,468 जुर्माना जमा करने को कहा गया — कुल ₹1,37,148।

याचिकाकर्ता ने इस आदेश को चुनौती दी। उनका तर्क था कि भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 47A(1) के अनुसार, अगर पंजीकरण अधिकारी को संदेह होता है कि संपत्ति का वर्गीकरण या उसका मूल्यांकन गलत है, तो वह रजिस्ट्री से पहले ही कलेक्टर को संदर्भ भेज सकता है। पंजीकरण के बाद ऐसा करना अवैध है। साथ ही, अगर कलेक्टर खुद संज्ञान लेकर कार्यवाही करना चाहें, तो उन्हें भी रजिस्ट्री के दो साल के भीतर ऐसा करना होता है।

याचिकाकर्ता ने पटना हाई कोर्ट के दो फैसलों — राज्य बनाम सुमति देवी (2018(3) PLJR 136) और शहनाज़ बेगम बनाम बिहार राज्य (2018(2) PLJR 293) — का हवाला दिया, जिसमें अदालत ने इसी तरह की परिस्थितियों में राज्य की कार्रवाई को अवैध ठहराया था।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों से सहमति जताते हुए पाया कि रजिस्ट्री के बाद संदर्भ भेजना कानून के विपरीत है और अधिकारियों का यह कदम मनमाना और गैरकानूनी है। इसलिए, 17 अप्रैल 2018 का आदेश रद्द कर दिया गया और यदि याचिकाकर्ता ने इस आदेश के तहत कोई राशि जमा की हो, तो उसे 8 सप्ताह के भीतर वापस करने का निर्देश दिया गया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बिहार में ज़मीन खरीदने वाले आम नागरिकों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है। यह स्पष्ट करता है कि जब एक बार ज़मीन की रजिस्ट्री पूरी प्रक्रिया और शुल्क भुगतान के बाद हो जाती है, तो बाद में अधिकारियों द्वारा ज़मीन का पुनः मूल्यांकन कर अतिरिक्त शुल्क और जुर्माना नहीं लगाया जा सकता।

यह निर्णय पंजीकरण अधिकारियों को यह सख्त संदेश देता है कि उन्हें भारतीय स्टाम्प अधिनियम के नियमों का पालन करना होगा और किसी रजिस्ट्री के बाद मनमाने ढंग से नागरिकों पर वित्तीय बोझ नहीं डाला जा सकता।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या पंजीकरण के बाद उप-पंजीयक ज़मीन का मूल्यांकन दोबारा करवाकर स्टाम्प शुल्क बढ़ा सकता है?
    • नहीं। अदालत ने कहा कि धारा 47A(1) के तहत ऐसा केवल रजिस्ट्री से पहले किया जा सकता है।
  • क्या कलेक्टर स्वयं संज्ञान लेकर ऐसा कर सकते हैं?
    • हाँ, लेकिन केवल दो साल के भीतर और यदि पहले से कोई संदर्भ नहीं भेजा गया हो।
  • क्या ज़मीन का कृषि से विकसित वर्ग में परिवर्तन केवल पास की सड़क की दूरी के आधार पर हो सकता है?
    • नहीं। केवल 400 मीटर की दूरी के आधार पर भूमि को “विकसित” मान लेना तर्कसंगत नहीं है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • राज्य बनाम सुमति देवी, 2018 (3) PLJR 136
  • शहनाज़ बेगम बनाम बिहार राज्य, 2018 (2) PLJR 293

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • राज्य बनाम सुमति देवी, 2018 (3) PLJR 136
  • शहनाज़ बेगम बनाम बिहार राज्य, 2018 (2) PLJR 293

मामले का शीर्षक
अभिकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No.13172 of 2018

उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 69

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री गोपाल कृष्ण, याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री पी.एन. शाही (AAG-6) एवं श्री मनीष कुमार (AC to AAG-6), राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक
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“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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