निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने वर्ष 2021 में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि STET (State Teacher Eligibility Test) पास करना मात्र नियुक्ति का अधिकार नहीं देता। उम्मीदवार केवल पात्र माने जाते हैं, लेकिन यह सरकार पर निर्भर करता है कि कब और कितनी भर्ती करनी है।
याचिकाकर्ताओं (यानी उम्मीदवारों) ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने माँग की कि:
- सरकार 33,916 पदों को छठे चरण की भर्ती में जोड़े और इन्हें भी भर दे।
- 2011/2012 बैच के STET पास उम्मीदवारों को सभी खाली पदों पर पहले नियुक्त किया जाए।
- 2017 से खाली पड़े समाज विज्ञान के पदों को 2020 में पुनः स्वीकृत किया गया था—इन पर पहले इन उम्मीदवारों को नियुक्ति मिले।
सरकार ने इसका विरोध किया। उसका कहना था कि—
- कोई भी उम्मीदवार केवल STET पास करके नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता।
- भर्ती करना या न करना, कब करना और कितने पद भरना—यह सब सरकार का नीतिगत अधिकार है।
- कोर्ट को भर्ती का टाइमटेबल तय नहीं करना चाहिए क्योंकि इसमें बजट और प्रशासनिक ज़रूरतें भी शामिल होती हैं।
कोर्ट ने गहराई से दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं।
हाईकोर्ट ने कहा कि—
- केवल इसलिए कि सरकार ने कोई भर्ती कार्यक्रम घोषित किया है, इसका मतलब यह नहीं कि उम्मीदवारों को स्वतः नियुक्ति का अधिकार मिल गया।
- भर्ती कब होगी, कितने पद भरे जाएंगे—यह सब सरकार तय करेगी। अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती, जब तक कि सरकार का निर्णय मनमाना या भेदभावपूर्ण न हो।
सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया गया:
- Shankarsan Dash v. Union of India (1991) में कहा गया था कि चयनित होना मात्र एक अधिकार नहीं है। नियुक्ति तभी होती है जब सरकार प्रक्रिया पूरी करे।
- S.S. Balu v. State of Kerala (2009) में कहा गया कि चयन सूची में नाम आने से उम्मीदवार को नियुक्ति का कोई गारंटीड अधिकार नहीं मिलता।
- State of Orissa v. Raj Kishore Nanda (2010) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया शुरू करना पूरी तरह से नियोक्ता (सरकार) का अधिकार है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा था कि उनके STET पास करने की वैधता (Validity) जल्द खत्म हो जाएगी। लेकिन कोर्ट ने इसे “भविष्य की आशंका” माना और कहा कि इस पर अभी कोई आदेश नहीं दिया जा सकता। राज्य सरकार ने पहले ही पैनल की वैधता दो साल के लिए बढ़ा दी थी। अगर भविष्य में कोई नया नियम लाकर उम्मीदवारों के साथ अन्याय किया गया, तो वे अदालत का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं।
अंत में, कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि नियुक्ति नीति और समयसीमा तय करना पूरी तरह से सरकार का काम है। लेकिन साथ ही उम्मीदवारों को यह छूट दी गई कि अगर भविष्य में उनके साथ अनुचित व्यवहार हो, तो वे फिर से न्यायालय आ सकते हैं।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
- उम्मीदवारों के लिए: STET पास करना सिर्फ़ पात्रता देता है, नियुक्ति की गारंटी नहीं। भर्ती में देरी हो सकती है या चरणबद्ध नियुक्ति हो सकती है। अदालत तभी हस्तक्षेप करेगी जब सरकार भेदभावपूर्ण या अवैध काम करेगी।
- सरकार के लिए: यह फैसला बताता है कि भर्ती और नियुक्ति सरकार का नीति संबंधी अधिकार है। सरकार बजट और प्रशासनिक ज़रूरतों के अनुसार फैसला कर सकती है। लेकिन निर्णय पारदर्शी और निष्पक्ष होना चाहिए।
- आम जनता के लिए: यह फैसला संतुलन बनाता है—एक ओर स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक चाहिए, दूसरी ओर राज्य को वित्तीय और प्रशासनिक ज़रूरतों का ध्यान रखना होता है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि वह सरकार को “सभी पद तुरंत भरने” का आदेश नहीं देगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या STET पास उम्मीदवारों को नियुक्ति का स्वतः अधिकार है?
- निर्णय: नहीं। सिर्फ़ पात्रता मिलती है, नियुक्ति सरकार की भर्ती प्रक्रिया पर निर्भर करती है।
- क्या अदालत सरकार को मजबूर कर सकती है कि वह सभी खाली पद तुरंत भर दे?
- निर्णय: नहीं। यह सरकार का नीतिगत निर्णय है। अदालत तभी दखल देगी जब मनमानी या भेदभाव हो।
- क्या STET की वैधता खत्म होने का खतरा कोर्ट से आदेश दिलवा सकता है?
- निर्णय: नहीं। यह सिर्फ़ आशंका है। भविष्य में अगर वास्तविक अन्याय हुआ तो उम्मीदवार अदालत जा सकते हैं।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- P. Suseela & Ors. v. UGC (2015) 8 SCC 129 — उम्मीदवारों ने इस फैसले का हवाला दिया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Shankarsan Dash v. Union of India (1991) 3 SCC 47
- S.S. Balu v. State of Kerala (2009) 2 SCC 479
- Ranjeet Kumar v. State of Jharkhand, 2012 SCC OnLine Jhar 2102
- State of Orissa v. Raj Kishore Nanda (2010) 6 SCC 777
मामले का शीर्षक
Devendra Paswan & Ors. v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 8521 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(1) PLJR 697
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री दिनु कुमार — याचिकाकर्ताओं की ओर से
- श्री माधव प्रसाद यादव, सरकारी अधिवक्ता 23 तथा श्री संजय कुमार, सहायक अधिवक्ता — राज्य की ओर से
- श्री ज्ञान शंकर — बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की ओर से
निर्णय का लिंक
MTUjODUyMSMyMDIwIzEjTg==-qE1mqB5NOBQ=
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