पटना उच्च न्यायालय : सम्मन की सेवा और एकतरफा डिक्री की वैधता पर महत्वपूर्ण फैसला (2025)

पटना उच्च न्यायालय : सम्मन की सेवा और एकतरफा डिक्री की वैधता पर महत्वपूर्ण फैसला (2025)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए यह स्पष्ट किया कि अगर प्रतिवादी सम्मन (Summons) लेने से इंकार करता है या जानबूझकर छिपता है, तो घर पर सम्मन चिपकाना (Affixation) एक वैध प्रक्रिया मानी जाएगी — बशर्ते अदालत के कर्मचारी ने उचित तरीके से यह काम किया हो।

यह मामला एक जमीन के बिक्री अनुबंध (Baibeyana) को लेकर शुरू हुआ था। वादी ने 1997 में एक टाइटल सूट दायर किया जिसमें उसने जमीन की रजिस्ट्री कराने का आदेश मांगा। प्रतिवादी को बार-बार सम्मन भेजे गए, पर वह अदालत में उपस्थित नहीं हुआ। अंततः अदालत ने 5 अगस्त 1999 को एकतरफा (Ex-Parte) फैसला वादी के पक्ष में दे दिया।

बाद में, वादी ने डिक्री को लागू करने के लिए निष्पादन मामला (Execution Case) दायर किया। इसमें प्रतिवादी के बेटे ने मई 2001 में पेशी दी और आवेदन भी दायर किया, लेकिन फिर अदालत में नहीं आया।

इसके बाद प्रतिवादी ने ऑर्डर 9 रूल 13, सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के तहत आवेदन देकर कहा कि उसे मुकदमे की जानकारी नहीं थी, इसलिए एकतरफा डिक्री को रद्द किया जाए।

ट्रायल कोर्ट ने 14 सितम्बर 2011 को यह आवेदन खारिज कर दिया और कहा कि प्रतिवादी को मुकदमे की जानकारी थी और उसने जानबूझकर अदालत से दूरी बनाई।

लेकिन पहली अपीलीय अदालत (First Appellate Court) ने 1 सितम्बर 2016 को ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और एकतरफा डिक्री को निरस्त कर दिया।
इसी आदेश को वादी ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी।

उच्च न्यायालय के समक्ष वादियों ने कहा कि —

  • सम्मन की सेवा सही तरीके से की गई थी,
  • प्रॉसेस सर्वर की रिपोर्ट और नाजिर (Nazir) की गवाही ने यह साबित कर दिया था कि सेवा हो चुकी थी,
  • निष्पादन मामले में प्रतिवादी का बेटा भी उपस्थित हुआ था,
  • अदालत के आदेश से 18 जनवरी 2003 को रजिस्ट्री और 12 मार्च 2004 को कब्जा दिलाया गया।

दूसरी ओर, प्रतिवादी ने कहा कि —

  • सम्मन की सेवा दोषपूर्ण थी,
  • न तो पब्लिक नोटिस दिया गया और न ही रजिस्टर्ड डाक से भेजा गया,
  • जो लोग गवाह बताए गए थे, उन्हें अदालत में नहीं बुलाया गया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला आम लोगों और सरकारी विभागों दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे यह स्पष्ट होता है कि सम्मन की सेवा (Service of Summons) और एकतरफा फैसलों को रद्द करने (Ex-Parte Decree) के मामलों में अदालतें किन बातों को निर्णायक मानती हैं।

  1. अगर कोई व्यक्ति सम्मन लेने से बचता है या मना करता है, तो अदालत का कर्मचारी उसके घर पर सम्मन चिपका सकता है। यह तरीका पूरी तरह वैध है, यदि प्रॉसेस सर्वर ने यह काम ईमानदारी से और नियमानुसार किया है।
  2. अदालती रिकॉर्ड सर्वोच्च साक्ष्य होते हैं। नाजिर, प्रॉसेस सर्वर जैसे सरकारी कर्मचारियों की रिपोर्ट को बिना ठोस कारण के नकारा नहीं जा सकता।
  3. जानबूझकर अदालत से दूर रहना जोखिम भरा है। अगर किसी को मुकदमे की जानकारी है और वह अदालत नहीं आता, तो बाद में “मुझे पता नहीं था” कहकर एकतरफा डिक्री रद्द नहीं करवा सकता।

यह फैसला सरकारी अधिकारियों और आम नागरिकों दोनों के लिए संदेश देता है कि अदालत के आदेश और रिकॉर्ड का सम्मान करना जरूरी है। साथ ही, अदालतों को यह मार्गदर्शन भी मिला कि कैसे वे सम्मन की सेवा से जुड़े मामलों में साक्ष्य का मूल्यांकन करें।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या ऑर्डर 5 रूल 17 CPC के तहत सम्मन की सेवा वैध थी?
    ✔️ निर्णय: हाँ। प्रॉसेस सर्वर ने बयान दिया कि प्रतिवादी ने सम्मन लेने से मना किया, इसलिए उसने घर के पूर्वी दरवाजे पर सम्मन चिपकाया। यह प्रक्रिया वैध है।
    कारण: नियम 17 में यह नहीं कहा गया कि हर बार गवाहों के नाम और पते लिखना जरूरी है। अगर सेवा करने वाले अधिकारी की गवाही विश्वसनीय है तो सेवा मान्य है।
  • क्या अपीलीय अदालत ने नाजिर और प्रॉसेस सर्वर की गवाही को गलत तरीके से नजरअंदाज किया?
    ✔️ निर्णय: हाँ। अदालत ने बिना किसी ठोस वजह के सरकारी साक्ष्य को अस्वीकार कर दिया।
    कारण: अदालत का रिकॉर्ड “सत्य के दस्तावेज” माने जाते हैं और इन्हें केवल दुर्भावना सिद्ध होने पर ही नकारा जा सकता है।
  • क्या एकतरफा डिक्री को रद्द किया जाना चाहिए था?
    निर्णय: नहीं। ट्रायल कोर्ट ने सही कहा था कि प्रतिवादी को मुकदमे की जानकारी थी और उसने जानबूझकर भागीदारी नहीं की।
    कारण: सम्मन की वैध सेवा हो चुकी थी और बाद में निष्पादन कार्यवाही में उसके परिवार के सदस्य की उपस्थिति से यह स्पष्ट हो गया था।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • पबित्री देवी बनाम रश बिहारी गोपे, 2010 (2) PLJR 942 — न्यायिक अभिलेख और आदेश-पत्र विश्वसनीय होते हैं; इन्हें केवल दुर्भावना सिद्ध होने पर ही खारिज किया जा सकता है।

मामले का शीर्षक

Bechani Devi Vs. Sri Kanshi Rai

केस नंबर

Civil Miscellaneous Jurisdiction No. 881 of 2017

उद्धरण (Citation)

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न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा (निर्णय दिनांक 07.01.2025)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • वादियों की ओर से: श्री अजय कुमार सिंह, अधिवक्ता
  • प्रतिवादियों की ओर से: श्री जितेन्द्र कुमार राय-1, अधिवक्ता; श्रीमती उषा कुमारी सिंह, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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