पटना हाई कोर्ट ने विभागीय सुनवाई में वकीलों के सम्मान और प्रक्रिया की पारदर्शिता के लिए दिशा-निर्देश जारी किए

पटना हाई कोर्ट ने विभागीय सुनवाई में वकीलों के सम्मान और प्रक्रिया की पारदर्शिता के लिए दिशा-निर्देश जारी किए

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार के विभागों द्वारा की जाने वाली अर्ध-न्यायिक (quasi-judicial) सुनवाइयों में हो रही अनियमितताओं को गंभीरता से लिया है। यह मामला एक नगर परिषद सदस्य (याचिकाकर्ता) से जुड़ा था जिन्हें पहले विभागीय आदेश से हटाया गया था, लेकिन बाद में उन्हें ‘अविश्वास प्रस्ताव’ के ज़रिए हटा दिया गया।

हालांकि याचिकाकर्ता को इस रिट याचिका में कोई सीधा राहत नहीं मिली, कोर्ट ने इस पूरे घटनाक्रम में विभाग द्वारा सुनवाई की प्रक्रिया को लेकर गंभीर आपत्ति दर्ज की। याचिकाकर्ता ने बताया कि 18 जून 2019 को मंत्री के समक्ष पेशी निर्धारित थी, लेकिन वह उस समय जेल में थे और उन्हें सूचना उसी दिन शाम में 4:55 बजे दी गई — जब सुनवाई समाप्त हो चुकी थी।

इसके अलावा, डिप्टी चीफ काउंसलर भी उसी दिन अपने वकील के साथ सुनवाई के लिए मंत्री के कार्यालय पहुंचीं, परंतु मंत्री मुज़फ्फरपुर दौरे पर थे और सुनवाई नहीं हुई। न ही उस दिन की कोई ऑर्डरशीट तैयार की गई, जिसमें यह दर्शाया जाता कि कौन उपस्थित था और मंत्री क्यों अनुपस्थित थे।

कोर्ट ने पाया कि सरकार की ओर से दाखिल जवाबी हलफनामों में स्पष्टता का अभाव था। यहां तक कि पूरक हलफनामे में भी यह नहीं बताया गया कि मंत्री उस दिन पटना में थे या नहीं, और यदि नहीं थे तो वकीलों को पहले से सूचना क्यों नहीं दी गई।

कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में वकीलों को बिना सूचना घंटों विभाग में बैठाकर रखा जाता है और उन्हें जगह-जगह जाकर उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कहा जाता है, जो पेशे की गरिमा के खिलाफ है।

यद्यपि इस विशेष मामले में याचिकाकर्ता को कोई राहत नहीं दी गई, कोर्ट ने सभी विभागों और अर्ध-न्यायिक प्राधिकरणों के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं ताकि आगे ऐसी प्रक्रिया में पारदर्शिता और वकीलों के सम्मान की रक्षा हो सके।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला सरकारी विभागों में हो रही अर्ध-न्यायिक सुनवाइयों की गुणवत्ता और निष्पक्षता को सुधारने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल वकीलों की गरिमा की रक्षा करता है, बल्कि आम नागरिकों के मामलों की निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करता है।

विभागों के लिए यह एक चेतावनी है कि वे सुनवाई के समय और स्थान की पूर्व सूचना दें, वकीलों के लिए उपयुक्त बैठने की व्यवस्था करें, और औपचारिक रूप से उनकी उपस्थिति दर्ज करें। यदि सुनवाई निर्धारित समय पर नहीं हो सकती तो इसकी जानकारी पहले ही देनी होगी।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या 18.06.2019 की सुनवाई न्यायोचित और पारदर्शी थी?
    ➤ नहीं, कोर्ट ने पाया कि इसमें गंभीर प्रक्रियागत खामियां थीं।
  • क्या बिना उचित सूचना के विभाग कार्यवाही आगे बढ़ा सकते हैं?
    ➤ नहीं, कोर्ट ने इसे वकीलों के सम्मान और न्याय प्रक्रिया के खिलाफ माना।
  • क्या अर्ध-न्यायिक सुनवाई के लिए दिशानिर्देश जरूरी हैं?
    ➤ हाँ, कोर्ट ने सभी विभागों के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए।

मामले का शीर्षक
Kaushal Kaushik बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
CWJC No. 15396 of 2019

उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 199

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री एस.बी.के. मंगला – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री किंकर कुमार (SC-9), श्री ज़की हैदर (AC to SC-9) – राज्य की ओर से
श्री संजीव निकेश – राज्य चुनाव आयोग की ओर से
श्री रंजीत कुमार और श्री कुंदन कुमार – निजी प्रतिवादी की ओर से

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/vieworder/MTUjMTUzOTYjMjAxOSM0I04=—ak1–SmyIYlTmt8=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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