निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने 6 अक्टूबर 2020 को दिए गए एक अहम फैसले में इनकम टैक्स विभाग की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें विभाग ने इनकम टैक्स सेटलमेंट कमीशन (आईटीएससी) द्वारा 2008 में पारित आदेश को चुनौती दी थी। यह मामला कुछ करदाताओं द्वारा अपने लंबित टैक्स विवादों को सुलझाने के लिए सेटलमेंट कमीशन में दायर आवेदनों से जुड़ा था, जो इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के चैप्टर XIX-A के तहत दाखिल किए गए थे।
विभाग का तर्क यह था कि सेटलमेंट कमीशन ने रिकॉर्ड और साक्ष्यों की ठीक से जांच किए बिना मामला निपटा दिया। विभाग ने आयोग के उस एक वाक्य पर आपत्ति जताई जिसमें कहा गया था—”यह संभव नहीं है कि आयोग रिकॉर्ड की जांच करे और मामलों की ठीक से जांच कर सके।”
कोर्ट ने इस आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि चैप्टर XIX-A का उद्देश्य ही टैक्स मामलों को जल्दी और निष्पक्ष रूप से सुलझाना है। यह अधिनियम करदाताओं को एक मौका देता है कि वे सच्चाई से सामने आकर टैक्स विभाग से अपने रिश्ते को साफ-सुथरा करें। सेटलमेंट कमीशन को इस प्रक्रिया का निष्पक्ष मध्यस्थ माना गया है जिसमें आयकर विभाग और करदाता दोनों की बात सुनी जाती है।
इस केस में करदाताओं ने ₹97 लाख से ज्यादा की अतिरिक्त आय घोषित की थी, जो उनकी पहले घोषित आय से 100 गुना अधिक थी। आयकर विभाग ने इस सेटलमेंट में हिस्सा लिया और कोई आपत्ति नहीं जताई। न ही उन्होंने सेटलमेंट कमीशन के सदस्यों की ईमानदारी या प्रक्रिया पर सवाल उठाए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जिस वाक्य पर आपत्ति की गई थी, उसका मतलब केवल यह था कि उपलब्ध रिकॉर्ड ही निर्णय के लिए पर्याप्त थे और आगे जांच की जरूरत नहीं थी। आयोग के पास सभी आवश्यक दस्तावेज थे और विभाग ने अपनी रिपोर्ट समय पर दी थी। कोर्ट ने यह भी माना कि यह आदेश समयसीमा (31 मार्च 2008) के भीतर दिया गया, वरना मामला समाप्त हो जाता।
याचिका 2009 में दायर की गई थी, यानी सेटलमेंट के एक साल से अधिक समय बाद। कोर्ट ने कहा कि जब विभाग ने पहले आपत्ति नहीं की और राशि स्वीकार कर ली, तब इतनी देर बाद तकनीकी आधार पर आपत्ति उठाना न्यायसंगत नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि विभाग की नीतियों में अब यह तय किया गया है कि दो करोड़ रुपये से कम के मामलों में विवाद को जल्दी खत्म किया जाए।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला स्पष्ट करता है कि अगर करदाता ईमानदारी से टैक्स सेटलमेंट के लिए आगे आते हैं और विभाग भी उसमें भाग लेता है, तो बाद में केवल एक तकनीकी पंक्ति को आधार बनाकर पूरी प्रक्रिया को अमान्य नहीं किया जा सकता। इससे यह संकेत मिलता है कि टैक्स विवादों को जल्दी और निष्पक्ष तरीके से सुलझाने की प्रक्रिया को न्यायालय का समर्थन है।
सरकार और आयकर विभाग के लिए यह फैसला यह सिखाता है कि न्यायालय उन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा जो पारदर्शिता और सहमति से निपटाए गए हैं। इससे करदाताओं का विश्वास बढ़ेगा और विवादों को निपटाने में सहूलियत होगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या सेटलमेंट कमीशन का यह कहना कि वह रिकॉर्ड की जांच नहीं कर सकता, आदेश को अमान्य करता है?
- निर्णय: नहीं। कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड पहले ही देखे जा चुके थे, इसलिए आगे जांच जरूरी नहीं थी।
- क्या विभाग एक साल बाद सेटलमेंट को चुनौती दे सकता है?
- निर्णय: नहीं। जब राशि स्वीकार कर ली गई और आपत्ति नहीं जताई गई, तब तकनीकी आधार पर पुनः चुनौती देना अनुचित है।
- क्या सेटलमेंट प्रक्रिया में कोई बड़ी चूक हुई थी?
- निर्णय: नहीं। प्रक्रिया पूरी तरह कानून के अनुसार थी और सभी पक्षों ने भाग लिया।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Ajmera Housing Corporation v. CIT, (2010) 8 SCC 739
- Union of India v. Star Television News Ltd., [2015] 373 ITR 528 (SC)
- CIT Central Jaipur v. M/s Anil Hastkala (P) Ltd. & Anr, (2010) 329 ITR 41
- CIT v. Hari Kishan Vijayvergia, (2011) 336 ITR 174
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Ritesh Tiwari & Anr v. State of UP & Ors, (2010) 10 SCC 677 — आर्टिकल 226 के तहत कोर्ट की विवेकाधीन शक्ति को समझाते हुए।
मामले का शीर्षक
The Commissioner of Income Tax (Central) & Ors. v. Income Tax Settlement Commission & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 10663 of 2009
उद्धरण (Citation)- 2021(1)PLJR 162
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्रीमती अर्चना सिन्हा — याचिकाकर्ता (आयकर विभाग) की ओर से
- श्री अजय कुमार रस्तोगी एवं श्री एस.डी. संजय (वरिष्ठ अधिवक्ता) — प्रतिवादी करदाताओं की ओर से
निर्णय का लिंक
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