निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि सरकारी विभाग किसी भी संवेदक (contractor) के साथ किया गया समझौता (agreement) मनमाने तरीके से रद्द नहीं कर सकता और न ही बिना उचित नोटिस दिए ब्लैकलिस्ट कर सकता है।
यह मामला उन ठेकेदारों से जुड़ा था जिनके साथ बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के अंतर्गत स्थानीय क्षेत्र अभियंत्रण संगठन (Local Area Engineering Organization) ने हैंडपंप बोरिंग कार्य हेतु समझौता किया था। विभाग ने बाद में यह कहते हुए समझौते रद्द कर दिए कि निर्धारित समय या बढ़ाए गए समय सीमा में काम पूरा नहीं हुआ। इसके साथ ही, ठेकेदारों की जमा सुरक्षा राशि जब्त कर ली गई और उन्हें भविष्य के टेंडर से वंचित करने (ब्लैकलिस्ट) की सिफारिश कर दी गई।
ठेकेदारों का कहना था कि उन्होंने काफी कार्य किया और उसके लिए बिल भी विभाग को भेजे, परंतु भुगतान नहीं मिलने के कारण आगे काम रोकना पड़ा। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि विभाग अपनी गलती (बिल भुगतान में देरी) का फायदा उठाकर उन्हें दंडित कर रहा है। समझौते में ऐसा कोई नियम नहीं था कि भुगतान सिर्फ पूर्ण कार्य के बाद ही होगा।
उनका मुख्य तर्क यह था कि कार्यपालक अभियंता (Executive Engineer), जो स्वयं समझौते का पक्ष थे, वे ही अनुबंध रद्द करने और सजा देने का आदेश नहीं दे सकते थे। साथ ही, न तो ब्लैकलिस्टिंग के लिए कोई अलग नोटिस दिया गया और न ही प्रत्येक ठेकेदार के लिए अलग-अलग कारण बताए गए।
न्यायालय ने इन तर्कों को सही पाया और कहा कि:
- कार्यपालक अभियंता, जो समझौते का पक्ष हैं, वे खुद कार्रवाई नहीं कर सकते जब तक उच्च प्राधिकृत अधिकारी इसकी अनुमति न दे।
- सरकार के आदेश (Annexure-3) में स्पष्ट कारण नहीं बताए गए और यह “mind का non-application” (यानी बिना सोच-विचार के आदेश) था।
- ब्लैकलिस्टिंग जैसा गंभीर निर्णय देने से पहले स्पष्ट नोटिस देना और जवाब का मौका देना अनिवार्य है।
इन आधारों पर न्यायालय ने Annexure-3 को रद्द कर दिया और विभाग को निर्देश दिया कि यदि वह आगे कोई कार्रवाई करना चाहता है तो:
- पहले यह तय करे कि कार्यपालक अभियंता को समझौता रद्द करने का कानूनी अधिकार था या नहीं।
- उसके बाद प्रत्येक संवेदक को अलग से कारण बताते हुए नोटिस जारी करे।
- संवेदकों से उनका पक्ष सुनने के बाद ही कोई निर्णय ले।
यह पूरी प्रक्रिया आदेश की प्रति मिलने के चार महीने के भीतर पूरी की जानी है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय सभी सरकारी प्रोजेक्ट्स में काम कर रहे ठेकेदारों के लिए राहतकारी है। यह सुनिश्चित करता है कि बिना उचित प्रक्रिया के, किसी को भी टेंडर से बाहर नहीं किया जा सकता और उसकी सुरक्षा राशि जब्त नहीं की जा सकती।
यह निर्णय सरकार को भी यह चेतावनी देता है कि विभागीय अधिकारी मनमाने तरीके से अनुबंध रद्द या ब्लैकलिस्टिंग जैसी कार्रवाई नहीं कर सकते। ब्लैकलिस्टिंग एक गंभीर कदम होता है जिससे ठेकेदार को भविष्य में कोई भी सरकारी काम मिलने से वंचित किया जा सकता है।
सरकारी विभागों के लिए यह फैसला एक मार्गदर्शक की तरह है कि वे अनुबंध संबंधी मामलों में पूरी पारदर्शिता और वैधानिक प्रक्रिया का पालन करें।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या कार्यपालक अभियंता अपने स्तर से समझौता रद्द और ब्लैकलिस्टिंग कर सकता है?
- निर्णय: नहीं
- कारण: वह खुद समझौते का पक्ष है, अतः ऐसे निर्णय के लिए सक्षम प्राधिकरण की आवश्यकता है।
- क्या बिना अलग नोटिस दिए किसी ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है?
- निर्णय: नहीं
- कारण: प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के तहत पहले नोटिस और सुनवाई देना आवश्यक है।
- क्या एक साथ सभी ठेकेदारों के लिए एक ही आदेश बिना विशेष कारण बताए मान्य है?
- निर्णय: नहीं
- कारण: प्रत्येक मामले में अलग कारण देने जरूरी हैं।
- क्या सरकार को दोबारा कार्रवाई का मौका दिया गया है?
- निर्णय: हां, परंतु उचित प्रक्रिया अपनाने की शर्त पर।
मामले का शीर्षक
Ram Japan Sahani & Ors. v. The State of Bihar & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 15056 of 2016
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- सुश्री कुमारी रश्मि, श्री सुरेश प्रसाद सिंह (नं. 1) – याचिकाकर्ताओं की ओर से
- श्री अंजनी कुमार (AAG-4), श्री दीपक सहाय जमुआर (AC to AAG-4) – प्रतिवादियों की ओर से
निर्णय का लिंक
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