निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट किया कि यदि किसी निविदा (Tender) के साथ लगाए गए हलफ़नामे पर अधिवक्ता कल्याण कोष (Advocate Welfare Fund) के स्टाम्प की कीमत निर्धारित मूल्य से कम हो, तो ऐसी त्रुटि को “सुधार योग्य” माना जाना चाहिए और सिर्फ इसी कारण तकनीकी बोली (Technical Bid) को अस्वीकार करना उचित नहीं है।
यह मामला एक ठेकेदार (याचिकाकर्ता) से जुड़ा था जिसने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के अंतर्गत ग्रामीण सड़कों के रखरखाव के लिए विभाग द्वारा जारी निविदा में भाग लिया था। उसने दो पैकेजों के लिए बोली लगाई थी। विभाग ने मई 2020 में उसका तकनीकी प्रस्ताव यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि हलफ़नामों पर केवल ₹15 के एडवोकेट वेलफेयर स्टाम्प लगे थे, जबकि ₹25 के स्टाम्प आवश्यक थे। विभाग ने इसके लिए 29 जनवरी 2020 की एक आंतरिक अधिसूचना और बिहार राज्य अधिवक्ता कल्याण कोष अधिनियम, 1983 (संशोधित 2019) की धाराओं 22 और 23 का हवाला दिया।
याचिकाकर्ता ने अदालत में दलील दी कि यदि वास्तव में स्टाम्प का मूल्य कम भी था, तो यह एक तकनीकी त्रुटि थी, और विभाग को पहले उसे सुधारने का अवसर देना चाहिए था। उसने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय Rashmi Metaliks Ltd. बनाम Kolkata Metropolitan Development Authority, (2013) 10 SCC 95 का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि निविदा की “मूलभूत” (Essential) और “सहायक” (Collateral) शर्तों में अंतर होता है, और यदि कोई कमी सहायक शर्त से जुड़ी है, तो उसे सुधारा जा सकता है।
राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि अधिनियम की धारा 23 के अनुसार कम मूल्य वाले स्टाम्प वाले दस्तावेज़ को स्वीकार नहीं किया जा सकता। निजी पक्षकारों (अन्य निविदाकारों) ने कहा कि निविदा की शर्तों में कोई रियायत देने का प्रावधान नहीं था, इसलिए याचिकाकर्ता की बोली को अस्वीकार करना उचित था।
न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पहले से ही स्पष्ट किया है कि निविदा की “मूलभूत शर्तें” (जैसे योग्यता, अनुभव, वित्तीय क्षमता आदि) और “सहायक शर्तें” (जैसे दस्तावेज़ के प्रारूप या मामूली त्रुटियाँ) अलग-अलग होती हैं। यदि कोई गलती सहायक शर्त से जुड़ी हो और निविदाकार की योग्यता या कार्य निष्पादन की क्षमता पर असर न डालती हो, तो ऐसी गलती को सुधारा जा सकता है।
इस आधार पर, न्यायालय ने माना कि एडवोकेट वेलफेयर स्टाम्प का मूल्य कम होना एक तकनीकी, सहायक त्रुटि थी — यह याचिकाकर्ता की कार्यक्षमता पर कोई प्रभाव नहीं डालती थी। इसलिए विभाग को बोली अस्वीकार करने से पहले याचिकाकर्ता को स्टाम्प की कमी पूरी करने का अवसर देना चाहिए था।
राज्य के इस तर्क पर कि यह अधिनियम द्वारा अनिवार्य शर्त है, न्यायालय ने कहा कि हाँ, उचित स्टाम्प लगाना आवश्यक है, लेकिन यदि यह कमी अनजाने में हुई हो तो उसे सुधारा जा सकता है। कोर्ट ने न्याय शुल्क अधिनियम (Court Fees Act) की धारा 28 का उदाहरण दिया, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई दस्तावेज़ कम शुल्क पर दाखिल हो गया हो, तो उचित शुल्क लगाकर उसे वैध बनाया जा सकता है।
अंततः न्यायालय ने विभाग द्वारा जारी उन ज्ञापनों (मेमो) को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया, जिनसे याचिकाकर्ता की बोली अस्वीकृत की गई थी, और आदेश दिया कि याचिकाकर्ता की तकनीकी बोली खोली जाए तथा आगे की कार्रवाई की जाए।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय सरकारी ठेकों और निविदा प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और न्यायसंगत व्यवहार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सरकारी विभागों के लिए यह एक संदेश है कि उन्हें निविदा की शर्तों को इस प्रकार लागू करना चाहिए जिससे प्रतियोगिता प्रभावित न हो। यदि किसी ठेकेदार की गलती केवल तकनीकी या सहायक स्तर की है और उसके कार्य करने की क्षमता पर कोई सवाल नहीं उठता, तो उसे सुधारने का मौका देना न्यायसंगत है। इससे निविदा प्रक्रिया अधिक निष्पक्ष बनती है और योग्य प्रतिभागियों को अनावश्यक रूप से बाहर नहीं किया जाता।
आम नागरिकों और ठेकेदारों के लिए यह निर्णय यह भरोसा देता है कि न्यायालय अत्यधिक तकनीकी कारणों से किसी को अवसर से वंचित नहीं करेगा, जब तक कि गलती गंभीर या जानबूझकर न की गई हो।
इसके अतिरिक्त, यह फैसला यह भी सुनिश्चित करता है कि सरकारी निविदाओं में भाग लेने वाले ठेकेदार ईमानदारी से प्रतिस्पर्धा कर सकें और छोटी तकनीकी गलतियों को सुधारने का अवसर पा सकें।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या केवल एडवोकेट वेलफेयर स्टाम्प के कम मूल्य के कारण तकनीकी बोली अस्वीकार की जा सकती है?
• निर्णय: नहीं। यह एक सहायक और सुधार योग्य त्रुटि है। विभाग को याचिकाकर्ता को कमी पूरी करने का अवसर देना चाहिए। - क्या अधिनियम की धाराएँ 22 और 23 ऐसी स्थिति में सुधार की अनुमति नहीं देतीं?
• निर्णय: अधिनियम का उद्देश्य वैध स्टाम्प लगाना है, परंतु यदि गलती अनजाने में हो और उसे तुरंत सुधारा जा सके तो दस्तावेज़ को अमान्य नहीं माना जा सकता। - न्यायालय ने क्या राहत दी?
• निर्णय: विभाग के मेमो आंशिक रूप से निरस्त किए गए और आदेश दिया गया कि याचिकाकर्ता की तकनीकी बोली खोली जाए तथा आगे की प्रक्रिया पूरी की जाए।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Rashmi Metaliks Ltd. बनाम Kolkata Metropolitan Development Authority, (2013) 10 SCC 95 — यह निर्णय निविदा की सहायक शर्तों को सुधार योग्य मानने पर आधारित था।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Rashmi Metaliks Ltd. & Anr. v. KMDA & Ors., (2013) 10 SCC 95
- Tata Cellular v. Union of India, (1994) 6 SCC 651
- Kanhaiya Lal Agrawal v. Union of India, (2002) 6 SCC 451
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case (CWJC) No. 6204 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 331
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति विकाश जैन
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री सुरेश प्रसाद सिंह (No.1), कु. रश्मि, श्री आदित्य राज
- राज्य की ओर से: श्री विकास कुमार, सरकारी अधिवक्ता-11
- निजी प्रतिवादियों की ओर से: श्री अंशुल, श्री चंद्र मोहन झा
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNjIwNCMyMDIwIzEjTg==-pLDdR9L7FM8=
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