निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में चार ठेकेदारों द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा जारी एक सरकारी टेंडर के दो कार्य (क्रम संख्या 1 और 8) एक प्रतिद्वंद्वी ठेकेदार को दिए जाने को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि चयनित ठेकेदार की तकनीकी पात्रता और दस्तावेजों में कई खामियां थीं।
सभी याचिकाकर्ता बिहार अनुबंध पंजीकरण नियमावली, 2007 के तहत पंजीकृत ठेकेदार थे। उन्होंने आरोप लगाया कि चयनित ठेकेदार (प्रतिवादी संख्या 11):
- पात्रता से संबंधित आवश्यक शपथ-पत्र अपलोड करने में विफल रहा (धारा 20 के तहत),
- उनके द्वारा दर्ज की गई आपत्तियों पर विचार नहीं किया गया (धारा 30 के तहत),
- जिन गाड़ियों और मशीनों के दस्तावेज दिए गए थे वे या तो पुरानी थीं या पहले से बिक चुकी थीं,
- शपथ-पत्र न्यायिक स्टाम्प पेपर पर थे जो कथित तौर पर अमान्य थे।
कोर्ट ने सभी आरोपों का गंभीरता से परीक्षण किया।
जहां तक शपथ-पत्र का सवाल है, कोर्ट ने कहा कि न्यायिक स्टाम्प पेपर पर दिया गया शपथ-पत्र भी यदि स्टाम्प एक्ट के तहत ठीक से संसाधित (impounded) हो, तो वैध माना जाता है।
वाहनों और उपकरणों के बारे में कोर्ट ने पाया कि चयनित ठेकेदार ने आवश्यक तीन ट्रैक्टरों में से दो और सभी टिपर ट्रकों के वैध दस्तावेज़ जमा किए थे। तीसरे ट्रैक्टर के लिए फिटनेस प्रमाणपत्र भले ही नहीं था, लेकिन कर जमा किया गया था जिससे अनुमान लगाया गया कि फिटनेस प्रमाणपत्र नवीनीकृत किया गया होगा। इसके अलावा, ठेकेदार ने एक शपथ-पत्र भी दिया था कि LOA (कार्यादेश) जारी होने के 30 दिनों के भीतर बाकी उपकरण जुटा लिए जाएंगे, जो टेंडर शर्तों के अनुरूप है।
आपत्तियों के समय पर दायर न होने के संबंध में कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने तकनीकी मूल्यांकन के 5 दिन बाद, अर्थात वित्तीय बोली खुलने के बाद आपत्ति दर्ज की थी, जो कि नियमों के अनुसार समय-सीमा का उल्लंघन था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि मामूली और सुधार योग्य त्रुटियों के आधार पर L1 (सबसे कम बोलीदाता) को अयोग्य ठहराना न्यायसंगत नहीं है, क्योंकि इससे सार्वजनिक कार्यों में देरी और आर्थिक नुकसान होता है।
इसलिए कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और ठेकेदार को काम सौंपने के निर्णय को सही ठहराया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला सरकारी टेंडर विवादों को लेकर कई अहम बातें स्पष्ट करता है:
- टेंडर में अनिवार्य योग्यता शर्तों को तो पूरा करना जरूरी है, लेकिन मामूली तकनीकी त्रुटियों को सुधारने का अवसर दिया जाना चाहिए।
- सिर्फ तकनीकी आधारों पर सबसे कम बोलीदाता को अयोग्य ठहराने की प्रवृत्ति को कोर्ट ने हतोत्साहित किया है।
- वित्तीय नुकसान और परियोजना में देरी को रोकने के लिए न्यायिक दृष्टिकोण व्यावहारिक होना चाहिए।
- आपत्तियों को उचित समय में दायर करना अनिवार्य है — देरी से की गई शिकायत पर विचार नहीं किया जाएगा।
बिहार में कार्यरत ठेकेदारों और विभागों के लिए यह फैसला दिशा-निर्देशक है, जो यह दर्शाता है कि न्यायालय केवल वैधानिक तकनीकीता नहीं बल्कि व्यावहारिकता और परियोजना हित को भी महत्व देता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या चयनित ठेकेदार वाहन फिटनेस प्रमाणपत्र की कमी के कारण अयोग्य था?
- नहीं। आवश्यक ट्रकों के वैध दस्तावेज़ थे, और कर भुगतान से फिटनेस की पुष्टि होती है।
- क्या न्यायिक स्टाम्प पेपर पर दिए गए शपथ-पत्र अमान्य थे?
- नहीं। यदि उचित रूप से संसाधित हों, तो वैध माने जाएंगे।
- क्या वित्तीय बोली खुलने के बाद दर्ज आपत्तियां मान्य हैं?
- नहीं। धारा 30 के तहत 5 दिनों के भीतर आपत्ति दर्ज करना अनिवार्य है।
- क्या चयन में कोई अनिवार्य शर्त का उल्लंघन हुआ?
- नहीं। मूल योग्यता पूरी थी, अन्य खामियां मामूली थीं।
- क्या पुराने फैसलों जैसे Ashok Construction और Sona Engicon लागू होते हैं?
- नहीं। उन मामलों में अनिवार्य दस्तावेज़ ही अनुपस्थित थे, यहां पर्याप्त अनुपालन दिखाया गया।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Ramana Dayaram Shetty v. International Airport Authority, (1979) 3 SCC 489
- M/s Ashok Construction v. State of Bihar, CWJC No. 4139 of 2024
- Sona Engicon Pvt. Ltd. v. State of Bihar, CWJC No. 13539 of 2024
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Poddar Steel Corporation v. Ganesh Engineering Works, (1991) 3 SCC 273
- BSN Joshi & Sons Ltd. v. Nair Coal Services Ltd., (2006) 11 SCC 548
मामले का शीर्षक
M/s Jay Mata Di Enterprises & Ors. v. The State of Bihar & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 12254 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन एवं माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री आशीष गिरी, श्री सर्वेश्वर तिवारी, सुश्री प्रगति पात्रा, श्री सुमित कुमार झा, सुश्री रिया गिरी
- प्रतिवादी की ओर से: श्री पी. के. शाही (महाधिवक्ता), श्री रमाकांत शर्मा (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री विकास कुमार, श्री सौरव सुवन
निर्णय का लिंक
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।







