पटना हाई कोर्ट ने 10 साल की ठेकेदार की ब्लैकलिस्टिंग को रद्द किया, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन बताया

पटना हाई कोर्ट ने 10 साल की ठेकेदार की ब्लैकलिस्टिंग को रद्द किया, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन बताया

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में ग्रामीण कार्य विभाग, बिहार सरकार द्वारा एक ठेकेदार फर्म पर लगाई गई 10 साल की डिबारमेंट (ब्लैकलिस्टिंग) को रद्द कर दिया। यह मामला बताता है कि किसी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ कड़ी प्रशासनिक कार्रवाई करने से पहले उचित प्रक्रिया और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना अनिवार्य है।

याचिकाकर्ता एक पंजीकृत साझेदारी फर्म है, जिसने 26 सितंबर 2017 को एक समझौते के तहत कुछ सड़कों के रखरखाव का कार्य लिया था। इनमें बेतिया रामनगर रोड से सिखटा (धोबनी और रामौली होते हुए) और PWD रोड, नरवल से खिरिया तक के कार्य शामिल थे।

16 जुलाई 2021 को ग्रामीण कार्य विभाग के अभियंता प्रमुख ने पत्र संख्या 2100 जारी कर याचिकाकर्ता और अन्य दो फर्मों को यह कहते हुए 10 साल के लिए सरकारी ठेकों में भाग लेने से रोक दिया कि उन्होंने समय पर सड़क रखरखाव का काम नहीं किया।

याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में अपील करते हुए कहा —

  • उन्हें कोई शो-कॉज नोटिस (कारण बताओ नोटिस) नहीं दिया गया।
  • आदेश संविधान के अनुच्छेद 14 और 19(1)(g) का उल्लंघन करता है, जो समानता का अधिकार और व्यापार/पेशा करने की स्वतंत्रता देता है।
  • 10 साल की पाबंदी बिना कारण बताए लगाना अनुपातहीन और गलत है।
  • पहले के एक फैसले (रमन कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम, CWJC No. 16989/2017) का पालन नहीं किया गया, जिसमें इसी तरह की अनिश्चितकालीन ब्लैकलिस्टिंग रद्द की गई थी।

हाई कोर्ट ने आदेश की जांच कर पाया कि —

  1. प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ, क्योंकि ठेकेदार को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया।
  2. आदेश में कोई ठोस कारण नहीं दिया गया था।
  3. पहले दिए गए कोर्ट के निर्देशों को नजरअंदाज किया गया।
  4. सजा अनुपातहीन थी — 10 साल का प्रतिबंध एक बेहद कठोर कदम है, जिससे ठेकेदार की आजीविका पर सीधा असर पड़ता है।

कोर्ट ने कहा कि ब्लैकलिस्टिंग जैसे फैसले के गंभीर परिणाम होते हैं और ऐसे में हमेशा नोटिस देना, उचित कारण बताना और सजा का अनुपात देखना जरूरी है। चूंकि इन सिद्धांतों का पालन नहीं हुआ, इसलिए आदेश कानूनी रूप से टिक नहीं सकता।

अंततः कोर्ट ने 16 जुलाई 2021 का आदेश रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को पुनः सरकारी निविदाओं में भाग लेने की अनुमति दे दी। कोर्ट ने यह भी माना कि आदेश के बाद से ठेकेदार पहले ही कई निविदाओं से वंचित हो चुका है और आर्थिक नुकसान झेल चुका है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला स्पष्ट करता है कि बिना उचित प्रक्रिया के किसी को भी दंडित नहीं किया जा सकता। सरकारी विभागों के साथ काम करने वाले ठेकेदारों, सप्लायरों और सेवा प्रदाताओं के लिए यह निर्णय अहम है क्योंकि —

  • ब्लैकलिस्टिंग से पहले कारण बताओ नोटिस देना अनिवार्य है।
  • सजा अनुपातिक होनी चाहिए।
  • हर दंडात्मक आदेश में स्पष्ट कारण होना जरूरी है।
  • पहले के कोर्ट के फैसलों का पालन करना प्रशासनिक जिम्मेदारी है।

सरकार के लिए यह निर्णय एक चेतावनी है कि प्रशासनिक कार्यवाही में संवैधानिक अधिकारों की अनदेखी से आदेश रद्द हो सकते हैं, जिससे न केवल कानूनी प्रतिष्ठा को नुकसान होता है बल्कि सरकारी कार्य में भी देरी होती है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या बिना नोटिस दिए ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है?
    ⮕ नहीं, यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
  • क्या सजा तय करते समय अनुपात का ध्यान रखना जरूरी है?
    ⮕ हां, सजा अपराध के अनुपात में होनी चाहिए।
  • क्या पहले के हाई कोर्ट के फैसले विभाग पर बाध्यकारी होते हैं?
    ⮕ हां, पूर्व के आदेशों की अवहेलना नहीं की जा सकती।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • रमन कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम एवं अन्य, CWJC No. 16989 of 2017 (20.02.2018)

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • रमन कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम, CWJC No. 16989 of 2017

मामले का शीर्षक

M/s Chandra Mohan Ojha बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 14295 of 2022

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अशिष गिरी, अधिवक्ता
प्रतिवादी की ओर से: श्रीमती अर्चना मीनाक्षी, GP 6

निर्णय का लिंक

https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/3978d8ef-e670-4c5a-bd97-5bd3715a6677.pdf&search=Debarment

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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