निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम (BSFC) द्वारा निकाले गए “हैंडलिंग और ट्रांसपोर्टेशन” टेंडर से जुड़ा था। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से शिकायत की कि उसे पिछले टेंडर में अनुचित तरीके से बाहर कर दिया गया, जबकि बाद में सफल बोलीदाताओं को ऐसे लाभ दिए गए जो उसे नहीं मिले।
याचिकाकर्ता पहले वाले टेंडर में चुनी गई थी लेकिन अनुबंध (Agreement) पर हस्ताक्षर नहीं कर सकी। कारण यह था कि जिन ट्रक मालिकों से उसने गाड़ियां किराए पर ली थीं, उन्होंने अचानक अनुबंध रद्द कर दिया। निगम ने समय भी बढ़ाया, लेकिन याचिकाकर्ता फिर भी आवश्यक वाहनों की व्यवस्था करके अनुबंध नहीं कर पाई। नतीजा यह हुआ कि उसका चयन रद्द हो गया और उसे 5 साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया गया। इस ब्लैकलिस्टिंग को पहले भी हाई कोर्ट ने सही ठहराया था।
बाद में निगम ने नया टेंडर जारी किया। इसमें अन्य बोलीदाता सफल हुए और उन्होंने अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के बाद कुछ गाड़ियों को बदलने की अनुमति मांगी। याचिकाकर्ता ने कहा कि उसे भी पहले वाले टेंडर में ऐसा मौका दिया जाना चाहिए था। उसने यह तर्क रखा कि टेंडर की क्लॉज 11(xxv) के तहत गाड़ियां बदली जा सकती हैं।
कोर्ट ने इस क्लॉज को ध्यान से पढ़ा और साफ कहा कि गाड़ियों को बदलने की अनुमति केवल अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के बाद मिल सकती है, उससे पहले नहीं। यानी अगर किसी बोलीदाता ने पहले ही अनुबंध पर साइन कर लिया है, तभी वह किसी गाड़ी को बदलने की मांग कर सकता है। यहां सफल बोलीदाता ने 25 अक्टूबर 2024 को अनुबंध पर हस्ताक्षर किए और अगले ही दिन 26 अक्टूबर को गाड़ी बदलने का आवेदन दिया। यह पूरी तरह से नियम के अंदर था। लेकिन याचिकाकर्ता तो पहले ही अनुबंध तक नहीं पहुंच पाई थी, इसलिए वह इस क्लॉज का लाभ नहीं ले सकती थी।
एक और बड़ी कमी यह थी कि याचिकाकर्ता ने जिन सफल बोलीदाताओं पर आरोप लगाए, उन्हें केस में पक्षकार ही नहीं बनाया। कोर्ट ने कहा कि यह गंभीर त्रुटि है क्योंकि किसी पर आरोप लगाने से पहले उसे सुना जाना चाहिए। ऐसे में याचिका तकनीकी रूप से भी सही नहीं थी।
अंत में कोर्ट ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता पहले से ही 5 साल के लिए ब्लैकलिस्ट है और नए टेंडर में उसने भाग भी नहीं लिया, इसलिए वह यह नहीं कह सकती कि उसे इस प्रक्रिया में अन्याय हुआ है। यह याचिका केवल “पुरानी नाराजगी” की वजह से दायर की गई है। नतीजतन, कोर्ट ने याचिका को भ्रमित करने वाली और अस्वीकार्य मानकर खारिज कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
इस फैसले से कुछ अहम बातें निकलकर सामने आती हैं:
- ब्लैकलिस्टिंग के गंभीर परिणाम होते हैं। अगर कोई ठेकेदार या बोलीदाता ब्लैकलिस्ट हो गया है, तो वह आगे आने वाले टेंडरों को चुनौती नहीं दे सकता, जब तक कि ब्लैकलिस्टिंग को ही कोर्ट से हटवाया न जाए।
- टेंडर की शर्तें जैसे लिखी जाती हैं, वैसी ही लागू होती हैं। क्लॉज 11(xxv) जैसे नियम का गलत अर्थ नहीं निकाला जा सकता। वह नियम सिर्फ अनुबंध पर साइन होने के बाद लागू होता है।
- जरूरी पक्षकार को केस में शामिल करना ज़रूरी है। अगर आप किसी पर आरोप लगा रहे हैं तो उसे केस में जोड़ना पड़ेगा, वरना केस सुनवाई योग्य नहीं होगा।
- आर्टिकल 226 (रिट याचिका का अधिकार) केवल गंभीर और वैध मामलों के लिए है। कोई भी व्यक्ति केवल गुस्से या असंतोष की वजह से कोर्ट नहीं जा सकता। कोर्ट केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप करेगा जहां साफ तौर पर कानून का उल्लंघन हुआ हो।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या ब्लैकलिस्ट बोलीदाता बाद के टेंडर को चुनौती दे सकता है?
❌ नहीं। कोर्ट ने कहा कि ब्लैकलिस्ट व्यक्ति का कोई “लॉकस” (अधिकार) नहीं बनता कि वह बाद की प्रक्रिया को चुनौती दे। - क्या क्लॉज 11(xxv) अनुबंध से पहले गाड़ियां बदलने की अनुमति देता है?
❌ नहीं। यह क्लॉज केवल अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के बाद ही लागू होता है। - क्या सफल बोलीदाताओं को केस में न जोड़ना याचिका को प्रभावित करता है?
✅ हाँ। कोर्ट ने कहा कि बिना जरूरी पक्षकारों को जोड़े केस की सुनवाई नहीं की जा सकती। - क्या इस मामले में आर्टिकल 226 का इस्तेमाल होना चाहिए था?
❌ नहीं। कोर्ट ने कहा कि यह याचिका केवल पुराने विवाद से जुड़ी नाराजगी थी और इसमें कोई कानूनी आधार नहीं था।
मामले का शीर्षक
सीता देवी बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case (CWJC) No. 19215 of 2024
उद्धरण (Citation)
2025 (1) PLJR 558
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश; माननीय न्यायमूर्ति नानी तागिया
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री राजेंद्र नारायण, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री उदय कुमार, अधिवक्ता
- बीएसएफसी की ओर से: श्री अंजनी कुमार, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री अमित प्रकाश, सरकारी अधिवक्ता-13; श्री डी.के. सिंह, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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