निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि अदालत के आदेशों में यदि कोई टाइपिंग या लिखने की गलती हो जाती है, तो उसे ठीक किया जा सकता है ताकि सही स्थिति दर्ज हो सके।
मामला एक रिट याचिका (CWJC No. 10351 of 2020) से जुड़ा था। अदालत ने 01.11.2022 को दिए गए आदेश में पाया कि एक प्रतिवादी (प्रतिवादी संख्या 8) और उनके पिता का नाम गलती से दर्ज नहीं हो पाया या गलत दर्ज हो गया था। 20.12.2022 को अदालत ने यह निर्देश दिया कि आदेश को ठीक किया जाए और सही नाम आदेश की अपलोड की गई प्रति में दर्ज किया जाए।
यह आदेश छोटा जरूर है, लेकिन बहुत मायने रखता है। अदालत ने यह दोहराया कि न्यायालय के पास अधिकार है कि वह अपने आदेशों में हुई क्लेरिकल (यानी लिखने या टाइप करने की) गलतियों को सुधार सके। यह सुधार निर्णय की मूल भावना को नहीं बदलता, बल्कि केवल यह सुनिश्चित करता है कि जो तथ्य वास्तव में सही हैं वही आदेश में दिखें।
अगर आदेश में किसी व्यक्ति का नाम गलत दर्ज हो जाए तो इससे आगे की कार्रवाई में बड़ी दिक्कत हो सकती है। सरकारी विभाग, निचली अदालतें या राजस्व अधिकारी जब आदेश को लागू करेंगे तो गलत नाम की वजह से या तो सही व्यक्ति पर आदेश लागू नहीं होगा या गलत व्यक्ति पर कार्रवाई हो जाएगी। ऐसे में अदालत द्वारा तुरंत गलती सुधारने से भविष्य की उलझनों से बचा जा सकता है।
इस आदेश से यह भी साफ हुआ कि “सही रिकॉर्ड रखना भी न्याय का हिस्सा है।” गलत नाम या विवरण से न्याय की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है, इसलिए अदालतें इन त्रुटियों को बिना देर किए ठीक करती हैं।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- आम जनता के लिए: यह निर्णय दिखाता है कि अगर अदालत के आदेश में किसी का नाम गलत लिखा गया है तो इसे सुधरवाया जा सकता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि गलत पहचान की वजह से किसी निर्दोष पर आदेश लागू न हो।
- सरकारी अधिकारियों के लिए: विभागों को हमेशा आदेश की संशोधित (corrected) प्रति को लागू करना चाहिए। सही विवरण मिलने से प्रशासनिक कार्रवाई सही व्यक्ति पर ही हो पाएगी।
- वकीलों और पक्षकारों के लिए: आदेश अपलोड होने से पहले नाम और विवरण को ध्यान से जांचना जरूरी है। यदि गलती हो जाए तो तुरंत अदालत से सुधार के लिए आवेदन करना चाहिए।
- न्याय व्यवस्था के लिए: यह आदेश दिखाता है कि अदालतें न केवल बड़े मुद्दों पर, बल्कि छोटी-छोटी त्रुटियों पर भी ध्यान देती हैं ताकि न्यायिक प्रक्रिया पारदर्शी और सही बनी रहे।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- मुद्दा: क्या अदालत रिट आदेश में दर्ज टाइपिंग या लिखने की गलती को सुधार सकती है?
- निर्णय: हाँ। अदालत ने प्रतिवादी संख्या 8 और उनके पिता का सही नाम दर्ज करने का निर्देश दिया। यह केवल क्लेरिकल सुधार था, निर्णय की मूल बात में कोई बदलाव नहीं किया गया।
- मुद्दा: सुधार का प्रभाव किस तारीख से होगा?
- निर्णय: 20.12.2022 से, जब सुधार का आदेश दिया गया। इसके बाद सभी प्रशासनिक अधिकारी और पक्षकारों को यही सुधरी हुई प्रति माननी होगी।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (नाम गोपनीय रखे गए)
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 10351 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(1) PLJR 819
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री सुमित शेखर पांडे
- प्रतिवादी / राज्य की ओर से: श्री ललित किशोर, महाधिवक्ता (Advocate General)
निर्णय का लिंक
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