निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 22 मार्च 2021 को एक महत्वपूर्ण फैसला दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि यूएपीए (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत संपत्ति की जब्ती केवल तभी वैध है जब अपराध “आतंकी गतिविधियों” (Terrorist Acts) से जुड़ा हो।
यह मामला नया राम नगर थाना कांड संख्या 93/2012, जिला मुंगेर से जुड़ा था। पुलिस ने यह केस दर्ज किया था कि कुछ लोग नक्सलियों को हथियार और विस्फोटक सामग्री पहुँचाने के लिए इलाके में घूम रहे थे। एक वाहन को रोकने पर पुलिस ने दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया और एक पिस्तौल तथा कुछ नक्सल साहित्य बरामद करने का दावा किया। बाद में आरोपी के घर पर छापेमारी कर पुलिस ने लैपटॉप, नकद राशि, एटीएम कार्ड, सहारा इंडिया के निवेश बांड, और बैंक पासबुक जब्त कर लिए।
पुलिस ने इन वस्तुओं की जब्ती को यूएपीए की धारा 25 के तहत “Designated Authority” से बाद में स्वीकृति दिलाई, जबकि कानून में पहले से मंजूरी लेना जरूरी है। यह मंजूरी गृह विभाग, बिहार सरकार के प्रधान सचिव द्वारा दी गई थी।
याचिकाकर्ता — जो मुख्य आरोपी के माता-पिता, भाई और पत्नी थे — ने दलील दी कि यह जब्ती पूरी तरह अवैध और अधिकार क्षेत्र से बाहर थी। उन्होंने कहा कि धारा 25 केवल आतंकी गतिविधियों (Chapters IV और VI) से जुड़ी संपत्तियों पर लागू होती है, जबकि उनके खिलाफ ऐसा कोई मामला नहीं था।
न्यायमूर्ति बिरेन्द्र कुमार ने विस्तार से सुनवाई के बाद यह पाया कि इस केस में आतंकी कृत्य या संगठन से जुड़ी कोई बात सामने नहीं आई, इसलिए पुलिस को धारा 25 का प्रयोग करने का कोई अधिकार नहीं था। अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस अधिकारी ने “आतंकवाद से अर्जित संपत्ति” होने का कोई ठोस या विश्वसनीय कारण नहीं बताया। इस प्रकार, जब्ती और उसकी पुष्टि दोनों कानूनी रूप से अस्थिर हैं।
अदालत ने पाया कि Designated Authority ने भी बिना विचार किए जब्ती को मंजूरी दे दी — यह केवल औपचारिक आदेश था, न कि विवेकपूर्ण निर्णय।
इसके अलावा, पुलिस यह भी नहीं बता सकी कि जिस संगठन को “अवैध संघ” कहा गया, क्या वह वास्तव में सरकार द्वारा धारा 3 के तहत प्रतिबंधित (notified) किया गया था। इसलिए यूएपीए की धारा 10 और 13 के आरोप भी टिक नहीं पाए।
अंततः, अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला देते हुए आदेश दिया कि सभी जब्त की गई संपत्ति तुरंत लौटाई जाए, और यदि 10 दिनों के भीतर ऐसा नहीं होता, तो प्रति दिन ₹10,000 का मुआवजा दिया जाए। साथ ही, याचिकाकर्ताओं को यह स्वतंत्रता दी गई कि वे क्षतिपूर्ति (damages) के लिए संबंधित अधिकारियों पर मुकदमा चला सकते हैं।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बिहार पुलिस और अन्य एजेंसियों के लिए एक महत्वपूर्ण दिशानिर्देश है कि यूएपीए जैसी विशेष कानूनों की शक्तियों का प्रयोग मनमाने ढंग से नहीं किया जा सकता।
अदालत ने साफ कहा कि धारा 25 के तहत जब्ती करने से पहले आवश्यक शर्तें पूरी होना अनिवार्य है — जैसे कि:
- अपराध का संबंध आतंकवाद या आतंकी संगठन से हो,
- संपत्ति के “आतंकी आय” होने का ठोस सबूत हो,
- और पुलिस को पहले से डीजीपी की लिखित स्वीकृति प्राप्त हो।
अगर इनमें से कोई भी शर्त पूरी नहीं होती, तो ऐसी जब्ती पूर्णतः अवैध मानी जाएगी।
आम नागरिकों के लिए यह निर्णय एक राहत का संदेश है कि कानून के नाम पर उनकी संपत्ति जब्त नहीं की जा सकती, जब तक कि अपराध और संपत्ति के बीच प्रत्यक्ष संबंध साबित न हो।
यह फैसला यह भी दिखाता है कि न्यायालय यह सुनिश्चित करने के लिए सतर्क है कि कानून का दुरुपयोग न हो और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हो।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या यूएपीए की धारा 25 इस मामले पर लागू होती है?
❌ नहीं। अदालत ने कहा कि यह धारा केवल आतंकी अपराधों (Chapters IV और VI) पर लागू होती है, जबकि इस मामले में धारा 10 और 13 के तहत “अवैध गतिविधियों” के आरोप थे। - क्या जांच अधिकारी ने जब्ती के लिए उचित अधिकार और पूर्व-स्वीकृति प्राप्त की थी?
❌ नहीं। कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी, इसलिए पूरी कार्रवाई अवैध थी। - क्या यह साबित हुआ कि जब्त संपत्ति आतंकवाद से जुड़ी “आय” थी?
❌ नहीं। कोई ठोस सबूत या जानकारी नहीं दी गई। - क्या Designated Authority ने अपना विवेक प्रयोग किया?
❌ नहीं। उसने केवल औपचारिक मंजूरी दी, बिना पर्याप्त कारण दर्ज किए। - अंतिम निर्णय:
✅ जब्ती आदेश और अपीलीय अदालत का आदेश रद्द।
✅ संपत्ति तुरंत लौटाने का निर्देश।
✅ देरी होने पर ₹10,000 प्रतिदिन मुआवजा।
✅ याचिकाकर्ता अधिकारियों के विरुद्ध हर्जाने का दावा दायर कर सकते हैं।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
अदालत ने मुख्य रूप से यूएपीए की धारा 25 के कानूनी प्रावधानों का विश्लेषण किया।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Criminal Revision No. 14 of 2019
(Arising out of Naya Ram Nagar P.S. Case No. 93 of 2012, Munger)
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 710
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति बिरेन्द्र कुमार
निर्णय की तिथि: 22 मार्च 2021
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संदीप कुमार, श्री अरविंद कुमार, श्री अनिल कुमार राय, अधिवक्ता
- प्रतिवादी की ओर से: श्री उमनाथ मिश्रा, अपर लोक अभियोजक (A.P.P.)
निर्णय का लिंक
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