पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: शारीरिक शिक्षा कर्मियों के यूजीसी वेतनमान, पदोन्नति और पदनाम परिवर्तन पर महत्वपूर्ण फैसला (2024)

पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: शारीरिक शिक्षा कर्मियों के यूजीसी वेतनमान, पदोन्नति और पदनाम परिवर्तन पर महत्वपूर्ण फैसला (2024)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने बिहार के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में कार्यरत शारीरिक शिक्षा कर्मियों (Physical Education Personnel) के वेतनमान, कैरियर उन्नति (Career Advancement Scheme – CAS) और पदनाम परिवर्तन से जुड़े एक महत्वपूर्ण विवाद पर अपना निर्णय दिया है।

यह मामला एक याचिकाकर्ता द्वारा दायर किया गया था जो वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय (वी.के.एस.यू.) के एक अंगीभूत कॉलेज में Physical Training Instructor (PTI) के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने अदालत से यह आग्रह किया कि—

  1. उन्हें यूजीसी वेतनमान (UGC Pay Scale) के अंतर्गत उचित वरिष्ठता और पदोन्नति का लाभ दिया जाए,
  2. उन्हें शिक्षकों की तरह कैरियर उन्नति योजना (CAS) का लाभ मिले, और
  3. उनके पदनाम को “PTI” से बदलकर “Director” या “Assistant Director of Physical Education” किया जाए, जैसा कि यूजीसी नियमों में है।

न्यायालय (माननीय श्री न्यायमूर्ति बिबेक चौधरी) ने 17 दिसंबर 2024 को मौखिक निर्णय सुनाया।

याचिकाकर्ता की सेवा का इतिहास इस प्रकार था —
उन्हें 5 अगस्त 1985 को महिला कॉलेज, रोहतास में शारीरिक प्रशिक्षण प्रशिक्षक (PTI) के रूप में नियुक्त किया गया था। उनकी सेवा 6 अगस्त 1985 से नियमित मानी गई। उन्होंने 1991 में बी.पी.एड. (B.P.Ed.) और 1994 में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की।

यूजीसी द्वारा समय-समय पर वेतनमान संशोधित किए गए और बिहार सरकार तथा विश्वविद्यालयों ने भी उन्हें अपनाया, लेकिन याचिकाकर्ता को समय पर वेतनमान और पदनाम परिवर्तन का लाभ नहीं मिला।

राज्य सरकार ने कहा कि विश्वविद्यालय ही वेतन निर्धारण की सक्षम प्राधिकारी है और यूजीसी वेतनमान उन्हीं को मिल सकता है जिनके पास निर्धारित योग्यता हो। विश्वविद्यालय ने कहा कि “Director of Physical Education” का कोई स्वीकृत पद मौजूद नहीं है और इसलिए पदनाम परिवर्तन नहीं हो सकता। इसके अलावा, विश्वविद्यालय का तर्क था कि Career Advancement Scheme (CAS) केवल शिक्षकों पर लागू होती है, PTI जैसे गैर-शिक्षण कर्मचारियों पर नहीं।

न्यायालय ने विस्तार से यूजीसी की 22 जुलाई 1988 की अधिसूचना का उल्लेख किया, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि —

  • शिक्षकों, पुस्तकालयाध्यक्षों और शारीरिक शिक्षा कर्मियों का वेतनमान समान होगा,
  • लेकिन लाभ केवल पदनाम से नहीं बल्कि निर्धारित योग्यता और सेवा की स्थिति पर निर्भर करेगा।

अधिसूचना के परिशिष्ट-II के खंड-8 में यह भी उल्लेख है कि Assistant Director/Director of Physical Education को 8 वर्ष की सेवा, आवश्यक प्रशिक्षण और संतोषजनक कार्य निष्पादन पर “Senior Scale” का लाभ दिया जा सकता है।

न्यायालय ने सभी तथ्यों और दस्तावेजों पर विचार कर तीन मुख्य दिशा-निर्देश दिए —

  1. पदनाम परिवर्तन (Re-designation):
    विश्वविद्यालय को निर्देश दिया गया कि याचिकाकर्ता का मामला Syndicate की बैठक में रखा जाए और दो महीने के भीतर निर्णय लिया जाए। यदि आवश्यक हो, तो राज्य सरकार की अनुमति लेकर Director of Physical Education का पद सृजित किया जाए और याचिकाकर्ता को पात्रता अनुसार नया पदनाम दिया जाए।
  2. कैरियर उन्नति योजना (CAS):
    विश्वविद्यालय का यह तर्क कि CAS केवल शिक्षकों के लिए है, न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि यूजीसी की अधिसूचना के परिशिष्ट-II के अनुसार शारीरिक शिक्षा कर्मियों पर भी CAS लागू होती है।
  3. यूजीसी वेतनमान लागू होने की तिथि:
    याचिकाकर्ता का कहना था कि उन्हें 1991 से ही वेतनमान का लाभ मिलना चाहिए क्योंकि उन्होंने उसी वर्ष आवश्यक योग्यता प्राप्त कर ली थी। न्यायालय ने विश्वविद्यालय की सिंडिकेट को निर्देश दिया कि वह दो महीने के भीतर सही तिथि का निर्धारण करे।

इन निर्देशों के साथ याचिका का निस्तारण किया गया और कोई लागत (cost) नहीं लगाई गई।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बिहार के सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में कार्यरत शारीरिक शिक्षा कर्मियों के लिए एक मार्गदर्शक की तरह है।

  1. वेतनमान समानता:
    न्यायालय ने स्पष्ट किया कि शारीरिक शिक्षा कर्मी यूजीसी की 1988 की अधिसूचना के तहत शिक्षकों के समान वेतनमान पाने के हकदार हैं, यदि वे निर्धारित योग्यता पूरी करते हैं। इससे वेतन संबंधी असमानता दूर होगी।
  2. CAS का लाभ:
    अब यह विवाद समाप्त हो गया कि CAS केवल शिक्षकों के लिए है। यह फैसला सुनिश्चित करता है कि योग्य शारीरिक शिक्षा कर्मियों को भी समय-समय पर पदोन्नति का अवसर मिलेगा।
  3. पदनाम परिवर्तन:
    यह निर्णय विश्वविद्यालयों को यह जिम्मेदारी देता है कि यदि किसी विभाग में स्वीकृत पद नहीं है तो राज्य सरकार की अनुमति से नया पद सृजित किया जाए। इससे सेवा संरचना में सुधार और सम्मानजनक पदनाम का लाभ मिलेगा।
  4. समयबद्ध निर्णय:
    न्यायालय ने विश्वविद्यालय को दो महीने की समयसीमा देकर यह सुनिश्चित किया कि कर्मचारियों को उनके अधिकारों के लिए वर्षों तक इंतजार न करना पड़े।

इस तरह यह निर्णय न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि पूरे राज्य के विश्वविद्यालय कर्मियों के लिए एक सकारात्मक मिसाल है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या शारीरिक शिक्षा कर्मी शिक्षकों के समान यूजीसी वेतनमान के हकदार हैं?
    — हाँ, यूजीसी अधिसूचना 22 जुलाई 1988 के तहत वे शिक्षकों के समान वेतनमान के पात्र हैं, बशर्ते वे योग्यता पूरी करें।
  • क्या CAS योजना केवल शिक्षकों के लिए है?
    — नहीं, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि CAS योजना शारीरिक शिक्षा कर्मियों पर भी लागू होती है।
  • क्या विश्वविद्यालय पदनाम परिवर्तन से मना कर सकता है क्योंकि स्वीकृत पद नहीं है?
    — नहीं, विश्वविद्यालय को सिंडिकेट के समक्ष प्रस्ताव रखकर और आवश्यकता होने पर राज्य से अनुमति लेकर नया पद सृजित करना होगा।
  • यूजीसी वेतनमान लागू होने की सही तिथि कौन तय करेगा?
    — विश्वविद्यालय की सिंडिकेट समिति दो महीने के भीतर तिथि का निर्णय करेगी।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

यूजीसी अधिसूचना दिनांक 22 जुलाई 1988 (Clause 4 एवं Appendix-II, Clause 8)

मामले का शीर्षक

हृदय प्रकाश गुप्ता v. बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

C.W.J.C. No. 1824 of 2020 (with C.W.J.C. No. 5641 of 2021)

उद्धरण (Citation)

2025 (1) PLJR 536

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति बिबेक चौधरी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री सुनील कुमार सिंह, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से (CWJC 1824/2020): श्री माधव प्रसाद यादव (GP-23) एवं श्री राजेश कुमार सिन्हा, सहायक अधिवक्ता
  • विश्वविद्यालय की ओर से: श्री राजेश प्रसाद चौधरी, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से (CWJC 5641/2021): श्री समीर कुमार, सहायक अधिवक्ता GP-20

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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